मंत्रों का नाम - ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥

‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे मुमुक्षु के लक्षण । संकेत से किये कथन । अब सुनो होकर सावधान । साधक वह कैसा ॥१॥
अवगुणों का करके त्याग । जिसने धरा सत्संग । उसे कहिये तब । साधक ऐसे ॥२॥
जो संतों को शरण गया । संत जनों से आश्वस्त हुआ । तब वह साधक कहा गया । ग्रंथातर में ॥३॥
उपदेश किया आत्मज्ञान । टूटा संसारबंधन । दृढता के कारण करे साधन । इसका नाम साधक ॥४॥
धरे प्रीति श्रवण में । चाहत अद्वैतनिरूपण में । खोजे अर्थांतर मनन में । इसका नाम साधक ॥५॥
होते ही सारासार विचार । सुने होकर तत्पर । संदेह छेदकर दृढोत्तर । आत्मज्ञान देखे ॥६॥
नाना संदेह निवृत्ति । होने के लिये धरे सत्संगति । आत्मशास्त्रगुरूप्रचीति । में लाये ऐक्यता ॥७॥
देहबुद्धि विवेक से दूर करे । आत्मबुद्धि सुदृढ धरे । श्रवण मनन निरंतर करे । इसका नाम साधक ॥८॥
भूलकर दृश्यभान । धरे दृढता से आत्मज्ञान । विचार से रखे समाधान । इसका नाम साधक ॥९॥
तोडकर द्वैत की उपाधि । अद्वैत वस्तु साधन से साधे । लगाये एकता की समाधि । इसका नाम साधक ॥१०॥
आत्मज्ञान जीर्ण जर्जर । उसका करे जीर्णोद्धार । विवेक से पाये भवपार । इसका नाम साधक ॥११॥
उत्तम लक्षण साधु के । अंगीकार करे निरूपण में । स्वरूपाकार होता बलपूर्वक से । इसका नाम साधक ॥१२॥
असत्क्रिया छोड़ दी । और सत्क्रिया बढाई । स्वरूप स्थिति दृढ की । इसका नाम साधक ॥१३॥
अवगुण त्यागे दिवसेदिवस । करे उत्तम गुणों का अभ्यास । स्वरूप में लगाये निजध्यास । इसका नाम साधक ॥१४॥
दृढ निश्चय के बल पर ही । ना विचलित हो दृश्य रहने पर भी । मिला रहे स्वरूप में ही । इसका नाम साधक ॥१५॥
प्रत्यक्ष माया अलक्ष्य करे । अलक्ष्य वस्तु पर लक्ष्य करे । आत्मस्थिति की धारणा धरे । इसका नाम साधक ॥१६॥
जो इन जनों के लिये गुप्त रहा । मन से कभी ना अनुमानित हुआ। वही जिसने दृढ किया । इसका नाम साधक ॥१७॥
जो बोलते समय बाचा धरे । देखते समय अंधत्व लाये । उसे साधे नाना तरह से । इसका नाम साधक ॥१८॥
साधने जाओ तो साधे ना । लक्ष्य करने पर जो लक्ष्य आये ना । उसका ही अनुभव मन में लाना । इसका नाम साधक ॥१९॥
जहां मन का होता अस्त । जहां तर्क ही पाता पंगुत्व । वही अनुभव करे बलपूर्वक । इसका नाम साधक ॥२०॥
स्वानुभव के ही योग से । तत्काल ही वस्तु साधे । वही वस्तु होता स्वभाव से । इसका नाम साधक ॥२१॥
जाने अंग अनुभव के । दृढ करे चिन्ह योगियों के । रहे कुछ भी ना हो के । इसका नाम साधक ॥२२॥
दूर कर के उपाधि । असाध्य वस्तु साधन से साधे । स्वरूप में करे दृढ बुद्धि । इसका नाम साधक ॥२३॥
देवभक्त के मूल । खोजकर देखे सकल । साध्य ही होता तत्काल । इसका नाम साधक ॥२४॥
विवेक बल से गुप्त हुआ । अपने आप में लय हुआ । दिखता परंतु नही देखा । किसी को भी ॥२५॥
मैंपन पीछे छोड़ा । स्वयं अपने को खोजा । तुर्या को भी पार किया । इसका नाम साधक ॥२६॥
आगे उन्मनी के अंत में । स्वयं से स्वयं अखंड मिले । अखंड अनुभव पर जो दृष्टि रखे । इसका नाम साधक ॥२७॥
द्वैत का बंधन तोड़ा । भास के भास का खंडन किया । देह में रहकर विदेही हुआ । इसका नाम साधक ॥२८॥
जिसकी अखंड स्वरूपस्थिति । नहीं देह की अहंकृति । सकल संदेहनिवृत्ति । इसका नाम साधक ॥२९॥
पंचभूतों का विस्तार । जिसे लगे स्वप्नाकार । निर्गुण में जिसका निर्धार । इसका नाम साधक ॥३०॥
स्वप्न में जो भय लगा । वह जागृति में न लगा । सकल मिथ्या निर्धार किया । इसका नाम साधक ॥३१॥
माया का जो प्रत्यक्षपन । जनों को लगे यह प्रमाण । स्वानुभव से अप्रमाण । साधक ने किया ॥३२॥
निद्रा त्यागकर जाग गया । वह स्वप्न भय से छूट गया । त्यागकर माया वैसे ही गया । साधक स्वरूप में ॥३३॥
ऐसे अंतरस्थिति सुदृढ की । बाह्य निस्पृहता अंगीकृत की । संसार उपाधि त्याग दी । इसका नाम साधक ॥३४॥
छूटा काम के चंगुल से । हुआ दूर क्रोध से । मद मत्सर त्यागा ऐसे । एक ओर ॥३५॥
त्यागा कुलाभिमान को । लजाया लोकलज्जा को । बलवत्तर किया परमार्थ को । विरक्ति बल से ॥३६॥
अविद्या से बच निकला । प्रपंच से छूट गया । लोभ के हांथ से निकल गया । अकस्मात् ॥३७॥
बडप्पन को पटक दिया । वैभव को झटक दिया । महत्त्व को झिंजोड दिया । विरक्तिबल से ॥३८॥
भेद का आसरा तोडा । अहंकार त्याग कर गिराया । पैर पकड़कर पटक दिया । संदेहशत्रु ॥३९॥
विकल्प का किया वध । प्रहार से भवसिंधु मृत । सकल भूतों का विरोध । तोड़ दिया ॥४०॥
भवभय को मारा चांटा । काल के टांगे तोड़ा । मस्तक चीरकर फोड़ा । जन्म मृत्यु के ॥४१॥
देहसंबंध पर हमला किया । संकल्प से विद्रोह किया । कल्पना का घात किया । अकस्मात् ॥४२॥
निजभय को ताड़ित किया । लिंगदेह को पराजित किया । पाखंड मत को पछाड़ दिया । विवेकबल से ॥४३॥
गर्व पर गर्व किया । स्वार्थ का अनर्थ किया । अनर्थ का भी निर्दलन किया । नीतिन्याय से ॥४४॥
मोह को बीच में ही तोड़ा । दुःख दुःधड़ किया । शोक का खंडन कर छोड़ा । एक ओर ॥४५॥
द्वेष को देश निकाला दिया । अभाव का गला दबाया । डर से उदर कापनें लगा । कुतर्क का ॥४६॥
बलवान हुआ ज्ञानविवेक से । दृढ हुआ निश्चय जिससे । किया संहार वैराग्यबल से । अवगुणों का ॥४७॥
अधर्म को स्वधर्म से लूटा । कुकर्मों को सत्कर्मों से दुत्कारा । कुचल कर रास्ता दिखलाया । अविचार को विचार से ॥४८॥
तिरस्कार को चीर दिया । द्वेष को छील कर त्याग दिया । विषाद को अविषाद से डाल दिया । पैरों तले ॥४९॥
क्रोध पर प्रहार किया । कापट्य को भीतर कूट किया । सख्य अपना मान लिया । विश्वजनों में ॥५०॥
प्रवृत्ति का किया त्याग । सहृदयों का छोड़ा संग । निवृत्तिपथ से ज्ञानयोग । साध्य किया ॥५१॥
विषय ठगों को ठगाया । कुविद्या को घेर लिया । स्वयं को छुडाया । आप्त तस्करों से ॥५२॥
पराधीनता पर कुपित हुआ । ममता पर संतप्त हुआ । दुराशा को त्याग दिया । एकाएक ॥५३॥
स्वरूप में लगाया मन । यातना को दी यातना । साक्षेप और प्रयत्न । प्रतिष्ठित किये ॥५४॥
अभ्यास का संग किया । साक्षेप के साथ निकला । प्रयत्न का संग भला । साधन पथ पर ॥५५॥
सावध दक्ष वह साधक । देखे नित्यानित्यविवेक । संग त्यागकर एक । सत्संग धरे ॥५६॥
बलपूर्वक हटाया संसार । विवेक से फेंका संसारभार । शुद्धाचार से अनाचार । भ्रष्ट किया ॥५७॥
विस्मरण को भुला दिया । आलस का आलस किया। सावधान नहीं दुश्चित हुआ । दुश्चित पन से ॥५८॥
अब रहने दो यह कथन । निरूपण से जो त्यागे अवगुण । वह साधक ऐसा यह प्रमाण । से जानिये ॥५९॥
बल से ही समस्त त्याग कीजिये । इसलिये साधक कहिये। अब सिद्ध वह जानिये । अगले समास में ॥६०॥
यहां संशय उठा । निस्पृह वही साधक हुआ । संसारिक से त्याग नहीं होता । तो क्या वह साधक नहीं ॥६१॥
ऐसा श्रोता कहे उत्तर । इसका कैसा प्रत्योत्तर । अगले समास में तत्पर । होकर सुनो ॥६२॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे साधकलक्षण निरूपणनाम समास नववां ॥९॥

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Last Updated : December 01, 2023

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