हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|मंत्रों का नाम| ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ मंत्रों का नाम ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ ॥ समास दूसरा - गुरुलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - शिष्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास चौथा - उपदेशनाम ॥ ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ ॥ समास छठवां - शुद्धज्ञाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवा - बद्धलक्षणनाम ॥ ॥ समास आठवां - मुमुक्षुलक्षणनाम ॥ ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धलक्षणनाम ॥ मंत्रों का नाम - ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ जबतक वह ज्ञान नहीं प्रांजल । तबतक सभी कुछ निर्फल । ज्ञानरहित तलमल । जायेगी नहीं ॥१॥ ज्ञान कहते ही होता भ्रम । क्या होगा रे उसका मर्म । इस कारण अनुक्रम । अब कहा जाता ॥२॥ भूत भविष्य वर्तमान । ज्ञात है परिछिन्न । इसे भी कहते ज्ञान । मगर यह ज्ञान नहीं ॥३॥ बहुत किया विद्या पठन । संगीतशास्त्र रागज्ञान । वैदिक शास्त्र वेदाध्ययन । यह भी ज्ञान नहीं ॥४॥ नाना व्यवसाओं का ज्ञान । नाना दीक्षाओं का ज्ञान । नाना परीक्षाओं का ज्ञान । यह ज्ञान नहीं ॥५॥ नाना वनिताओं की परीक्षा । नाना सरिताओं की परीक्षा । नाना मनुष्यों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥६॥ नाना अश्वों की परीक्षा । नाना गजों की परीक्षा । नाना श्वापदों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥७॥ नाना पशुओं की परीक्षा । नाना पक्षियों की परीक्षा । नाना भूतों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥८॥ नाना यानों की परीक्षा । नाना वस्त्रों की परीक्षा । नाना शस्त्रों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥९॥ नाना धातुओं की परीक्षा । नाना सिक्कों की परीक्षा । नाना रत्नों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१०॥ नाना पाषाणपरीक्षा । नाना काष्ठों की परीक्षा । नाना वाद्यों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥११॥नाना भूमि की परीक्षा । नाना जलों की परीक्षा । नाना सतेज परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१२॥ नाना रसों की परीक्षा । नाना बीजों की परीक्षा । नाना अंकुरपरीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१३॥ नाना पुष्पों की परीक्षा । नाना फलों की परीक्षा । नाना वल्लरियों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१४॥ नाना दुःखों की परीक्षा । नाना रोगों की परीक्षा । नाना चिन्हों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१५॥ नाना मंत्रों की परीक्षा । नाना यंत्रों की परीक्षा । नाना मुहूर्तों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१६॥ नाना क्षेत्रों की परीक्षा । नाना गृहों की परीक्षा । नाना पात्रों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१७॥ नाना होनी की परीक्षा । नाना समयों की परीक्षा । नाना तर्कों की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१८॥ नाना अनुमानपरीक्षा । नाना नियमित परीक्षा । नानाप्रकार की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥१९॥ नाना विद्याओं की परीक्षा । नाना कलाओं की परीक्षा । नाना चातुर्यपरीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२०॥ नाना शब्दों की परीक्षा । नाना अर्थों की परीक्षा । नाना भाषाओं की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२१॥ नाना स्वरों की परीक्षा । नाना वर्णों की परीक्षा । नाना लेखन परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२२॥ नाना मतों की परीक्षा । नाना ज्ञानों की परीक्षा । नाना वृत्तिओं की परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२३॥ नाना रूपों की परीक्षा । नाना रसनाओं की परीक्षा । नाना सुगंधपरीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२४॥ नाना सृष्टिओं की परीक्षा । नाना विस्तारपरीक्षा । नाना पदार्थ परीक्षा । यह ज्ञान नहीं ॥२५॥ सुनिश्चित ही बोलना । तत्काल ही प्रत्युत्तर देना । शीघ्र ही कवित्व करना । यह ज्ञान नहीं ॥२६॥ नेत्रपल्लवी नादकला । करपल्लवी भेदकला । स्वरपल्लवी संकेतकला । यह ज्ञान नहीं ॥२७॥काव्यकुशल संगीतकला । गीत प्रबंध नृत्यकला । सभाचातुर्य शब्दकला । यह ज्ञान नहीं ॥२८॥ वाग्विलास मोहनकला । रम्य रसाल गायनकला । हास्य विनोद कामकला । यह ज्ञान नहीं ॥२९॥ नाना लाघव चित्रकला । नाना वाद्य संगीतकला । नाना प्रकार की विचित्र कला । यह ज्ञान नहीं ॥३०॥ आदि से लेकर चौंसठ कला । इनसे भी अलग नाना कला । चौदह विद्या सिद्धि सकल । यह ज्ञान नहीं ॥३१॥ अस्तु सकलकलाप्रवीण । विद्यामात्र परिपूर्ण । फिर भी वह कौशल परंतु उसे ज्ञान । कहें ही नहीं ॥३२॥यह ज्ञान है ऐसा भास होता । परंतु मुख्य ज्ञान तो अलग ही होता । जहां प्रकृति का भ्रम होता । समूल नष्ट ॥३३॥दुसरों के जी की बात जानता । यह ज्ञान सच लगता । परंतु यह आत्मज्ञान का । लक्षण नहीं ॥ ३४॥महानुभाव महाभला । मानसपूजा करते चूका । किसी एक ने पुकारकर कहा । ऐसी नहीं करते ॥३५॥ ऐसी जाने अंतरस्थिति । उसे कहते परम ज्ञाता की स्थिति । मगर जिससे मोक्ष प्राप्ति । वह ये ज्ञान नहीं ॥३६॥बहुत प्रकार के ज्ञान । कहने में असाधारण । सायुज्य प्राप्ति होती जिस कारण । वह ज्ञान अलग ॥३७॥ फिर वह कैसा है ज्ञान । समाधान के लक्षण । वे सब विस्तार से कथन । मुझे निरूपित करें ॥३८॥ ऐसा पूछा जो शुद्ध ज्ञान । उसका किया अगले समास में निरूपण । श्रोताओं ने ध्यान । देना चाहिये आगे ॥३९॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे बहुधाज्ञाननाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : December 01, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP