मंत्रों का नाम - ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥

‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।

॥ श्रीरामसमर्थ ॥
जय जयाजी सद्गुरु पूर्णकामा । परमपुरुषा आत्मारामा । अनिर्वाच्य आपकी महिमा । वर्णन न संभव ॥ १॥
जो वेदों को अगम्य । शब्दों से जानना कठिन । वही सत्‌शिष्य के लिये सुगम । अलभ्य लाभ रोकडा ॥२॥
जो योगियों का निजमर्म । जो शंकर का निजधाम । जो विश्रांति का निजविश्राम । परम गुह्य अगाध ॥३॥
वह ब्रह्म आपके ही योग से । स्वयं हमही होते शरीर से । दुर्घट संसार के दुःख से । दुःखी न होते सर्वथा ॥४॥
अब स्वामी के ही स्नेह प्रेम से । गुरुशिष्यों के लक्षण कैसे । कहता हूं जिस प्रकार से । मुमुक्षु शरण में जायें ॥५॥
गुरु वह समस्तों का ब्राह्मण । अगर हुआ भी वह क्रियाहीन । तो भी उसकी शरण । में रहें अनन्यभाव से ॥६॥
अहो ! इस ब्राह्मण के कारण। लेते अवतार नारायण । विष्णु श्रीवत्स होकर करते भ्रमण । वहां अन्य वे कितने ॥७॥
ब्राह्मणवचन प्रमाण । होते शूद्रों के ब्राह्मण । देवत्व पाते धातु पाषाण । ब्राह्मणों के ही मंत्रो से ॥८॥
उपनयन बंधन विरहित । वह शूद्र ही निभ्रांत । द्विजन्म के कारण होते संतत । द्विज नाम उनके ॥९॥
सकलों को पूज्य ब्राह्मण । यह मुख्य वेदाज्ञा प्रमाण । वेदविरहित वह अप्रमाण । अप्रिय भगवान को ॥१०॥
ब्राह्मण से योग याग व्रत दान । ब्राह्मण से सकल तीर्थाटन । कर्ममार्ग ब्राह्मण के बिन । होगा नहीं ॥११॥
ब्राह्मण वेद मूर्तिमंत । ब्राह्मण वही भगवंत । पूर्ण होते मनोरथ । विप्रवाक्यों से ॥१२॥
ब्राह्मणपूजन से शुद्ध वृत्ति । होकर दृढ हो भगवंती । ब्राह्मणतीर्थ से उत्तम गति । पाते प्राणी ॥१३॥
लक्ष भोजन में पूज्य ब्राह्मण । अन्य जाति को पूछे कौन । मगर भगवंत को भाव प्रमाण । अन्यों को माने व्यर्थ ॥१४॥
अस्तु ब्राह्मण को वंदन करते सुरवर । वहां कितना बेचारा नर । ब्राह्मण मूढमति भी अगर । तब भी वह जगद्वंद्य ॥१५॥
अंत्यज शब्दज्ञाता अच्छा । परंतु वह लेकर क्या करना । ब्राह्मण सन्निध उसकी पूजा । हो ही नहीं सकती ॥१६॥
जनों से हटकर जो किया । उसे वेदों ने अमान्य किया । इस कारण उसे नाम दिया । पाखंड मत ॥१७॥
अस्तु जो होते हरिदास । उनका ब्राह्मण पर विश्वास । ब्राह्मणभोजन से अधिकांश । को पावन किये ॥१८॥
ब्राह्मण से पायें देवाधिदेव अगर । तो किमर्थ करे सद्गुरुवर । ऐसा कहें भी निजनिधान मगर । सद्गुरु बिन न मिले ॥१९॥
स्वधर्मकर्मी पूज्य ब्राह्मण । परंतु ज्ञान नहीं सद्गुरु बिन । ब्रह्मज्ञान न होने पर थकान । जन्म मृत्यु चूके ना ॥२०॥
सद्गुरु बिन ज्ञान कुछ भी । सर्वथा होता नहीं । प्रवाह में अज्ञान प्राणी । बहते ही गये ॥२१॥
ज्ञान विरहित जो जो किया । वह सब जन्म का मूल हुआ । इस कारण सद्गुरु चरण धरना । सदृढता से ॥२२॥
जिसे लगे देव को देखे । वह सत्संग धरे । देवाधिदेव बिन सत्संग के । प्राप्त होते नहीं ॥२३॥
नाना साधन हीन । करते पागल सद्गुरु बिन । दुःखी गुरुकृपा बिन । व्यर्थ ही होते ॥२४॥
कार्तिकस्नान माघस्नान । व्रत उद्यापन दान । गौरांजन धूम्रपान । साधते पंचाग्नि ॥२५॥
हरिकथा पुराणश्रवण । आदर से करते निरूपण । सर्व तीर्थ परम कठिन । घूमते प्राणी ॥२६॥
झगमगाते देवतार्चन । स्नान संध्या दर्भासन । तिलक माला गोपीचंदन । छाप श्रीमुद्रा के ॥२७॥
अर्घ्यपात्र संपुष्ट गोकर्ण । मंत्र तंत्र के ताम्रपर्ण । नाना प्रकार के उपकरण । साहित्य शोभा ॥२८॥
घंटा बजाये घन घन । स्तोत्र स्तुति और स्तवन । आसन मुद्रा धरते ध्यान । प्रदक्षिणा नमस्कार ॥२९॥
पंचायतन पूजा की । मृत्तिका के लिंग बनाये लक्ष भी । बेल श्रीफल से की । संपूर्ण कथन पूजा ॥३०॥
उपवास निष्ठा नियम । परम सायास से किया कर्म । फल भी पाते मर्म । चूकते प्राणी ॥३१॥
यज्ञादि कर्म किये । हृदय में फलाशा कल्पित किये । अपनी इच्छा से अपनाये । सूत्र जन्म का ॥३२॥
करके नाना सायास । किया चौदह विद्याओं का अभ्यास । रिद्धि सिद्धि यथावकाश । आती वश में भी अगर ॥३३॥
फिर भी सद्गुरुकृपा विरहित । सर्वथा न होता स्वहित । यमपुरी का अनर्थ । चूके न इससे ॥३४॥
जब तक नहीं ज्ञान प्राप्ति । तब तक चूके ना यातायाति । गुरुकृपा बिन अधोगति । गर्भवास चूके ना ॥३५॥
ध्यानधारणा मुद्रा आसन । भक्तिभाव और भजन । सकल ही व्यर्थ ब्रह्मज्ञान । जब तक ना होता वह प्राप्त ॥३६॥
सद्गुरु कृपा न मिले । और कहीं भी भटके । जैसे अंधा लड़खड़ाकर गिरे । कीचड और गड्ढे में ॥३७॥
जैसे नेत्रों में लगाते ही अंजन । दिखे दृष्टि से निधान । वैसे सद्गुरुवचनों से ज्ञान । प्रकाश होता ॥३८॥
सद्गुरु बिन जन्म निर्फल । सद्गुरु बिन दुःख सकल । सद्गुरू बिन तलमल । जाती नहीं ॥३९॥
सद्गुरु का ही हो अभयकर । प्रकट होता है ईश्वर । संसार दुःख अपार । होते हैं नष्ट ॥४०॥
पहले हुये विभूति महत्तर । संत महंत मुनेश्वर । उन्हें भी ज्ञानविज्ञान विचार । सद्गुरु से ही ॥ ४१॥
श्रीरामकृष्ण आदि समय से ही । अति तत्पर गुरुभजनी । सिद्ध साधु और संत जन भी । गुरुदास्य किये ॥ ४२॥
सकल सृष्टि के चालक । हरिहरब्रह्मादिक । वे भी सद्गुरु पद में रंक । दिखा न पाते महत्त्व ॥४३॥
अस्तु जिसे हो मोक्ष पाना । उसने सद्गुरु है करना । मोक्ष पाये सद्गुरु बिना । यह तो कल्पांत में न होगा ॥४४॥
अब सद्गुरु कैसे । न होते अन्य गुरु जैसे । जिनकी कृपा से प्रकट होये । शुद्ध ज्ञान ॥ ४५॥
उस सद्गुरु की पहचान । अगले समास में निरुपण । कहा जो श्रोता श्रवण । अनुक्रम से करें ॥४६॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे गुरुनिश्चयनाम समास पहला ॥१॥

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Last Updated : December 01, 2023

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