हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|मंत्रों का नाम| ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ मंत्रों का नाम ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ ॥ समास दूसरा - गुरुलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - शिष्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास चौथा - उपदेशनाम ॥ ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ ॥ समास छठवां - शुद्धज्ञाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवा - बद्धलक्षणनाम ॥ ॥ समास आठवां - मुमुक्षुलक्षणनाम ॥ ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धलक्षणनाम ॥ मंत्रों का नाम - ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ जय जयाजी सद्गुरु पूर्णकामा । परमपुरुषा आत्मारामा । अनिर्वाच्य आपकी महिमा । वर्णन न संभव ॥ १॥ जो वेदों को अगम्य । शब्दों से जानना कठिन । वही सत्शिष्य के लिये सुगम । अलभ्य लाभ रोकडा ॥२॥ जो योगियों का निजमर्म । जो शंकर का निजधाम । जो विश्रांति का निजविश्राम । परम गुह्य अगाध ॥३॥ वह ब्रह्म आपके ही योग से । स्वयं हमही होते शरीर से । दुर्घट संसार के दुःख से । दुःखी न होते सर्वथा ॥४॥ अब स्वामी के ही स्नेह प्रेम से । गुरुशिष्यों के लक्षण कैसे । कहता हूं जिस प्रकार से । मुमुक्षु शरण में जायें ॥५॥गुरु वह समस्तों का ब्राह्मण । अगर हुआ भी वह क्रियाहीन । तो भी उसकी शरण । में रहें अनन्यभाव से ॥६॥ अहो ! इस ब्राह्मण के कारण। लेते अवतार नारायण । विष्णु श्रीवत्स होकर करते भ्रमण । वहां अन्य वे कितने ॥७॥ब्राह्मणवचन प्रमाण । होते शूद्रों के ब्राह्मण । देवत्व पाते धातु पाषाण । ब्राह्मणों के ही मंत्रो से ॥८॥ उपनयन बंधन विरहित । वह शूद्र ही निभ्रांत । द्विजन्म के कारण होते संतत । द्विज नाम उनके ॥९॥ सकलों को पूज्य ब्राह्मण । यह मुख्य वेदाज्ञा प्रमाण । वेदविरहित वह अप्रमाण । अप्रिय भगवान को ॥१०॥ ब्राह्मण से योग याग व्रत दान । ब्राह्मण से सकल तीर्थाटन । कर्ममार्ग ब्राह्मण के बिन । होगा नहीं ॥११॥ ब्राह्मण वेद मूर्तिमंत । ब्राह्मण वही भगवंत । पूर्ण होते मनोरथ । विप्रवाक्यों से ॥१२॥ ब्राह्मणपूजन से शुद्ध वृत्ति । होकर दृढ हो भगवंती । ब्राह्मणतीर्थ से उत्तम गति । पाते प्राणी ॥१३॥ लक्ष भोजन में पूज्य ब्राह्मण । अन्य जाति को पूछे कौन । मगर भगवंत को भाव प्रमाण । अन्यों को माने व्यर्थ ॥१४॥ अस्तु ब्राह्मण को वंदन करते सुरवर । वहां कितना बेचारा नर । ब्राह्मण मूढमति भी अगर । तब भी वह जगद्वंद्य ॥१५॥ अंत्यज शब्दज्ञाता अच्छा । परंतु वह लेकर क्या करना । ब्राह्मण सन्निध उसकी पूजा । हो ही नहीं सकती ॥१६॥ जनों से हटकर जो किया । उसे वेदों ने अमान्य किया । इस कारण उसे नाम दिया । पाखंड मत ॥१७॥ अस्तु जो होते हरिदास । उनका ब्राह्मण पर विश्वास । ब्राह्मणभोजन से अधिकांश । को पावन किये ॥१८॥ ब्राह्मण से पायें देवाधिदेव अगर । तो किमर्थ करे सद्गुरुवर । ऐसा कहें भी निजनिधान मगर । सद्गुरु बिन न मिले ॥१९॥ स्वधर्मकर्मी पूज्य ब्राह्मण । परंतु ज्ञान नहीं सद्गुरु बिन । ब्रह्मज्ञान न होने पर थकान । जन्म मृत्यु चूके ना ॥२०॥सद्गुरु बिन ज्ञान कुछ भी । सर्वथा होता नहीं । प्रवाह में अज्ञान प्राणी । बहते ही गये ॥२१॥ ज्ञान विरहित जो जो किया । वह सब जन्म का मूल हुआ । इस कारण सद्गुरु चरण धरना । सदृढता से ॥२२॥ जिसे लगे देव को देखे । वह सत्संग धरे । देवाधिदेव बिन सत्संग के । प्राप्त होते नहीं ॥२३॥ नाना साधन हीन । करते पागल सद्गुरु बिन । दुःखी गुरुकृपा बिन । व्यर्थ ही होते ॥२४॥ कार्तिकस्नान माघस्नान । व्रत उद्यापन दान । गौरांजन धूम्रपान । साधते पंचाग्नि ॥२५॥ हरिकथा पुराणश्रवण । आदर से करते निरूपण । सर्व तीर्थ परम कठिन । घूमते प्राणी ॥२६॥ झगमगाते देवतार्चन । स्नान संध्या दर्भासन । तिलक माला गोपीचंदन । छाप श्रीमुद्रा के ॥२७॥ अर्घ्यपात्र संपुष्ट गोकर्ण । मंत्र तंत्र के ताम्रपर्ण । नाना प्रकार के उपकरण । साहित्य शोभा ॥२८॥ घंटा बजाये घन घन । स्तोत्र स्तुति और स्तवन । आसन मुद्रा धरते ध्यान । प्रदक्षिणा नमस्कार ॥२९॥पंचायतन पूजा की । मृत्तिका के लिंग बनाये लक्ष भी । बेल श्रीफल से की । संपूर्ण कथन पूजा ॥३०॥ उपवास निष्ठा नियम । परम सायास से किया कर्म । फल भी पाते मर्म । चूकते प्राणी ॥३१॥ यज्ञादि कर्म किये । हृदय में फलाशा कल्पित किये । अपनी इच्छा से अपनाये । सूत्र जन्म का ॥३२॥ करके नाना सायास । किया चौदह विद्याओं का अभ्यास । रिद्धि सिद्धि यथावकाश । आती वश में भी अगर ॥३३॥ फिर भी सद्गुरुकृपा विरहित । सर्वथा न होता स्वहित । यमपुरी का अनर्थ । चूके न इससे ॥३४॥ जब तक नहीं ज्ञान प्राप्ति । तब तक चूके ना यातायाति । गुरुकृपा बिन अधोगति । गर्भवास चूके ना ॥३५॥ध्यानधारणा मुद्रा आसन । भक्तिभाव और भजन । सकल ही व्यर्थ ब्रह्मज्ञान । जब तक ना होता वह प्राप्त ॥३६॥सद्गुरु कृपा न मिले । और कहीं भी भटके । जैसे अंधा लड़खड़ाकर गिरे । कीचड और गड्ढे में ॥३७॥ जैसे नेत्रों में लगाते ही अंजन । दिखे दृष्टि से निधान । वैसे सद्गुरुवचनों से ज्ञान । प्रकाश होता ॥३८॥ सद्गुरु बिन जन्म निर्फल । सद्गुरु बिन दुःख सकल । सद्गुरू बिन तलमल । जाती नहीं ॥३९॥ सद्गुरु का ही हो अभयकर । प्रकट होता है ईश्वर । संसार दुःख अपार । होते हैं नष्ट ॥४०॥ पहले हुये विभूति महत्तर । संत महंत मुनेश्वर । उन्हें भी ज्ञानविज्ञान विचार । सद्गुरु से ही ॥ ४१॥ श्रीरामकृष्ण आदि समय से ही । अति तत्पर गुरुभजनी । सिद्ध साधु और संत जन भी । गुरुदास्य किये ॥ ४२॥सकल सृष्टि के चालक । हरिहरब्रह्मादिक । वे भी सद्गुरु पद में रंक । दिखा न पाते महत्त्व ॥४३॥ अस्तु जिसे हो मोक्ष पाना । उसने सद्गुरु है करना । मोक्ष पाये सद्गुरु बिना । यह तो कल्पांत में न होगा ॥४४॥ अब सद्गुरु कैसे । न होते अन्य गुरु जैसे । जिनकी कृपा से प्रकट होये । शुद्ध ज्ञान ॥ ४५॥ उस सद्गुरु की पहचान । अगले समास में निरुपण । कहा जो श्रोता श्रवण । अनुक्रम से करें ॥४६॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे गुरुनिश्चयनाम समास पहला ॥१॥ N/A References : N/A Last Updated : December 01, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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