मंत्रों का नाम - ॥ समास चौथा - उपदेशनाम ॥

‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सुनो उपदेश के लक्षण । बहुविध कौन कौन । कहने में वे असाधारण । परंतु कुछ एक कहता हूं ॥१॥
बहुत मंत्र उपदेश देते । कोई नाममात्र बताते । एक वह जप करवाते । ओंकार का ॥२॥
शिवमंत्र भवानीमंत्र । विष्णुमंत्र महालक्ष्मीमंत्र । अवधूतमंत्र गणेशमंत्र । मार्तंडमंत्र कहते ॥३॥
मत्स्यकूर्मवराहमंत्र । नृसिंहमंत्र वामनमंत्र । भार्गवमंत्र रघुनाथमंत्र । कृष्णमंत्र कहते ॥४॥
भैरवमंत्र मल्लारीमंत्र । हनुमंतमंत्र यक्षिणीमंत्र । नारायणमंत्र पांडुरंगमंत्र । अघोरमंत्र कहते ॥५॥
शेषमंत्र गरूडमंत्र । वायुमंत्र वेतालमंत्र । झोटिंगमंत्र बहुधा मंत्र । कहे कितने कहां तक ॥६॥
बालामंत्र बगुलामंत्र । कालीमंत्र कंकालीमंत्र । बटुकमंत्र नाना मंत्र । नाना शक्ति के ॥७॥
पृथकाकार से स्वतंत्र । जितने देव उतने मंत्र । सरल कठिन विचित्र । खेचर दारूण बीज के ॥८॥
देखने जाओ तो धरतीपर । कौन गिने कितने ईश्वर । उतने मंत्र उतनी बार । वैखरी करे कथन ॥९॥
असंख्य मंत्रमाला । एक से एक निराला । विचित्र माया की कला । कौन जाने ॥१०॥
कितने ही मंत्रों से भूत भागते । नष्ट होती व्यथा कितने एक मंत्रों से । उतरते अनेक मंत्रों से । हिंवताप बिच्छू और जहर ॥११॥
ऐसे नानाविध मंत्र । कर्णपात्र में करते उपदेशित । जप ध्यान पूजा यंत्र । विधानयुक्त कहते ॥१२॥
कोई शिव शिव बताते । कोई हरि हरि कहलवाते । कोई उपदेश देते । विठ्ठल विठ्ठल कहकर ॥१३॥
कोई बताता कृष्ण कृष्ण । कोई बताता विष्णु विष्णु । कोई नारायण नारायण । कहकर उपदेश करते ॥१४॥
कोई कहता अच्युत अच्युत । कोई कहता अनंत अनंत । कोई कहता दत्त दत्त । कहते जाओ ॥१५॥
कोई कहता राम राम । कोई कहता ॐ ॐ । कोई कहता मेघश्याम । स्मरण करे बहुत नामों से ॥१६॥
कोई बताता गुरु गुरु । कोई बताता परमेश्वरु । कोई कहता विघ्नहरु । का चिंतन करते जायें ॥१७॥
कोई कहता श्यामराज । कोई कहता गरुडध्वज । कोई कहता अधोक्षज । कहते जायें ॥१८॥
कोई कहता देव देव । कोई कहता केशव केशव । कोई कहता भार्गव भार्गव । कहते जायें ॥१९॥
कोई विश्वनाथ कहलवाता । एक मल्हारी कहता । एक वह जप करवाता । तुकाई तुकाई कहकर ॥२०॥
ये कितने करे कथन । शिवशक्ति के अनंत नाम । स्वभाव से इच्छासमान । उपदेश देते ॥२१॥
एक बताता मुद्रा चार । खेचर भूचर चाचर अगोचर । एक आसनों के अनेक प्रकार । उपदेश देता ॥२२॥
एक दिखाते दर्शनीय । एक अनाहत ध्वनि । कोई गुरू पिंडज्ञानी । पिंडज्ञान बताता ॥२३॥
कोई बताता कर्ममार्ग । कोई उपासनामार्ग । कोई बताता अष्टांग योग । नाना चक्र ॥२४॥
कोई तप बताता । कोई अजपा निरूपित करता । कोई तत्त्वों को विस्तारित करता । तत्त्वज्ञानी ॥२५॥
कोई बताता सगुण । कोई निरूपित करता निर्गुण । एक उपदेश करे तीर्थाटन । घूमो कहकर ॥२६॥
कोई महावाक्यों को बताता । उनका जप करो कहता । कोई उपदेश करता । सर्व ब्रह्म कहकर ॥२७॥
कोई शाक्तमार्ग बताता । कोई मुक्तमार्ग प्रतिष्ठित करता । कोई इंद्रियपूजन करवाता । एकभाव से ॥२८॥
कोई कहता वशीकरण । स्तंबनमोहनउच्चाटन । नाना जादू टोने स्वयं । करता निरूपित ॥२९॥
उपदेशों की यह स्थिति । बहुत हुआ कहें कितनी । ऐसी यह उपदेशकों की गिनती । असंख्यात् ॥३०॥
ऐसे उपदेशक अनेक । परंतु ज्ञान के बिना निरर्थक । इस संबंध में एक । भगवद्वचन ॥३१॥

॥ श्लोक ॥    
नानाशास्त्रं पठेल्लोको नानादैवतपूजनम् ।
आत्मज्ञानं विना पार्थ सर्वकर्म निरर्थकम् ॥ छ ॥
शैवशाक्तागमाद्या ये अन्ये च बहवो मताः ।
अपभ्रंशसमास्तेऽपि जीवानां भ्रान्तचेतसाम् ॥ छ ॥
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिदमुत्तमम् ॥छ॥

इस कारण ज्ञानसमान । पवित्र उत्तम न दिखे अन्य । इस कारण पहले आत्मज्ञान । साधना चाहिये ॥३२॥
सभी उपदेशों में विशेष । आत्मज्ञान का उपदेश । इस संबंध में जगदीश । बोले बहुत जगह ॥३३॥

॥ श्लोक ॥    
यस्य कस्य च वर्णस्य ज्ञानं देहे प्रतिष्ठितम् ।
तस्य दासस्य दासोहं भवे जन्मनि जन्मनि ॥छ॥

आत्मज्ञान की महिमा । न जाने चतुर्मुख ब्रह्मा । प्राणी बेचारा जीवात्मा । क्या जाने ॥३४॥
सभी तीर्थों की संगति । स्नानदान की फलश्रुति । इनसे बढकर ज्ञान की स्थिति । विशेष कोटि गुनों से ॥३५॥

॥ श्लोक ॥    
पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्नानदानेषु यत्फलम् ।
तत्फलं कोटिगुणितं ब्रह्मज्ञानसमोपमम् ॥ छ ॥

इस कारण जो आत्मज्ञान । वह गहन से भी गहन । सुनो उसके लक्षण । निरूपित हैं ॥३६॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उपदेशनाम समास चौथा ॥४॥

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Last Updated : December 01, 2023

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