Dictionaries | References
अं

आंग उदकान नितळ, मन सतान

   
Script: Devanagari
See also:  अंग उदकान नितळ, मन सतान

आंग उदकान नितळ, मन सतान

   नितळ.
   (गो.) अंग जसें पाण्याने स्वच्छ होतें तसें मन सत्यानें शुद्ध होतें.

Related Words

आंग उदकान नितळ, मन सतान   अंग उदकान नितळ, मन सतान   नितळ   मन   आंग   मन मारप   मन मारना   मन मारणे   नितळ करप   नितळ जावप   सबंद आंग   वस्तू आंग   आख्खें आंग   सकयलें आंग   चडावत आंग   पेशींपुंजुलो आंग   जनन आंग   पुराय आंग   अंग   ഊറൽ ഇല്ലാത്ത   करमणे   मन राजा, मन प्रजा   धर्मसावर्णि मन   ಸ್ವಚ್ಛವಾದ   स्वच्छ   मन मनाविणें   मन गडबडणें   मन मुंडणें   मन घालणे   मन घालणें   मन जाणें   मन देणें   मन लावणें   नितळ हवा   मन बसणें   मन लागणें   शुद्ध मन   मन कांपणें   मन-काळीज   मन तुटणें   मन नपर्दो   मन विटणें   मन धरणें   मन लगना   मन उठणें   मन उडणें   मन मोडणें   मन भरना   ആലോചിക്കുക   ಇಷ್ಟವಾಗು   साफ़   तापल्‍या उदकान घरां लासनात   वनस्पती आंग   वस्तूचें आंग   आंग काडप   आंग भास   भायलें आंग   भितरलें आंग   आवैचे मन कांतली, भुर्ग्याचे मन करटी   उद्योगानें मन स्वच्छ राहते, आळसानें मन खातें   मन पळोन धन   मन राजा, मन परजा, मनाले कोण वरजा   संशयि मन सावळेक भित्ता   संशयी मन सावळेक भित्ता   अंदाधुंद मन हरा गाय   खालीवर मन होणें   मन दुग्ध्यांत पडणें   रिकामें मन सैतानाचं धन   रिकामें मन सैतानाचं सदन   मन मानेल तो सौदा   नापसंद   तुझें मन माझे साक्षीशी आणि माझें मन तुझे परीक्षेशी   देव मन पाळौन धन दिता   दिलो-दिमाग़   دِلو دٮ۪ماغ   ಮನಸ್ಸು-ಬುದ್ಧಿ   psyche   रिकामें मन आणि कुविचाराची धन   ज्‍याचें मन त्‍याला ग्‍वाही देतें   मन चिंती तें वैरी चिंतीना   विटलें मन आणि फुटलें मोतीं सांधत नाहीं   वैरी न चिंती तें मन चिंती   कपटी मित्राचें मन, अधिक दुष्‍ट सर्पाहून   आपले मन जिंकी, तो धन्य म्हणावा लोकीं   मन नाहीं थिरी, उगीच तीर्थ करी   मन नाहीं स्थिरी, बहु तीर्थ करी   देवु जाला लागी, मन गेलें दूर   एक उत्रानें मोळ्ळोलें मन, धा उत्राने समजाइना   भोंवचें गेलो तीर्थांतु, मन उरलें घरांतु   भोवचा गेलो तीर्थांतु, मन उरलें घरांतु   पिसो मन मेकळता, बुदवंतु बांदुन दवरता   ज्‍याचें जया ध्यान, तेंच होय त्‍याचें मन   दुष्ट संगतीनें मन, दोषी न करिती सुजन   रायागेलें मन आनि रुक्का सावळी तत्तावळी परतता   आंग भिजल्याबगर नुस्तें धरूं नज   उदार मन ठेव संपत्तिकाळीं, स्थीर असावें विपत्तिवेळीं   ठेवी मन स्‍वाधीन, राहे प्रगट डौलानं   मन नाहीं राजी, तो क्या करेगा काजी   सोवलें बांयत पडलें, पुण कोवळें नितळ जालें   मन चिंती तें वैरीही न चिंती   
Folder  Page  Word/Phrase  Person

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP