श्रीवृन्दावनसूक्तिः

भगवान के प्रती सूक्ति मे श्रवण-सुखद,सुन्दर शब्दविन्यास और प्रसाद माधुर्य आदि गुणोंसे समन्वित सारभूत श्लोकोंका संचय किया जाता है।


वृन्दारण्ये चर चरण दृक् पश्य वृन्दावनश्री-

र्जिह्वे वृन्दावनगुणगुणान् कीर्त्तय श्रोत्रदृष्टान् ।

वृन्दाटवया भज परिमलं घ्राण गात्र त्वमस्मिन्

वृन्दारण्ये लुठ पुलकितं कृष्णकेलिस्थलीषु ॥२३०॥

कदा नु वृन्दावनकुञ्जमण्डले भ्रमम्भ्रमं हेमहरिन्मणिप्रभम् ।

संस्मृत्य संस्मृत्य तदद्‌भुतं प्रियं द्वयंद्वयं विस्मृतिमेतु मेऽखिलम्

कदा नु वृन्दावनवीथिकास्वहं परिभ्रमञ्च्छयामलगौरमद्‌भुतम्

किशोरमूर्तिद्वयमेकजीवनं पुरःस्फुरद्वीक्ष्यपतामि मूर्छितः ॥२३२॥

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Last Updated : March 14, 2008

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