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जीव बटाऊ रे बहता मारग माई...

भजन - जीव बटाऊ रे बहता मारग माई...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जीव बटाऊ रे बहता मारग माईं ।

आठ पहरका चालना, घड़ी इक ठहरै नाईं ॥

गरभ जनम बालक भयो रे, तरुनाई गरबान ।

बृद्ध मृतक फिर गर्भबसेरा, यह मारग परमान व

पाप-पुन्य सुख-दुःखकी करनी, बेड़ी थारे लागी पाँय ।

पञ्च ठगोंके बसमें पड़ो रे, कब घर पहुँचै जाय ॥

चौरासी बासो तू बस्यो रे, अपना कर-कर जान ।

निस्चय निस्चल होयगो रे, तूँ पद पहुँचै निर्बान ॥

राम बिना तोको ठौर नहीं रे, जहँ जावै तहँ काल ।

जन दरिया मन उलट जगतसूँ, अपना राम सँभाल ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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