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सब जग सोता सुध नहिं पावै ...

भजन - सब जग सोता सुध नहिं पावै ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


सब जग सोता सुध नहिं पावै, बोलै सो सोता बरड़ावै ॥

संसय मोह भरमकी रैन, अंध धुंध होय सोते ऐन ।

जप तप संजय औ आचार, यह सब सुपनेके ब्यौहार ॥

तीर्थ दान जग प्रतिमा-सेवा, यह सब सुपना-लेवा-देवा ।

कहना-सुनना, हार औ जीत, पछा-पछी सुपनो बिपरीत ॥

चार बरन और आश्रम चार, सुपना-अंतर सब ब्यौहार ॥

षट दरसन आदी भेद-भाव, सुपना-अंतर सब दरसाथ ॥

राजा राना तप बलवंता, सुपना माहिं सब बरतंता ।

पीर औलिया सबै सयाना, ख्वाबमाहिं बरतें निधि नाना ।

काजी सैयद औ सुलतना, ख्वाबमाहिं सब करत पयाना ।

सांख्य, जोग औ नौधा भकती, सुपनामें इनकी एक बिरती ॥

काया-कसनी दया औ धर्म सुपने सूर्ग औ बंधन कर्म ।

काम क्रोध हत्या पर-नास, सुपनामाहीं नरक निवास ॥

आदि भवानी संकर देवा, यह सब सुपना देवा-लेवा ।

ब्रह्मा बिस्नू दस औतार, सुपना-अंतर सब ब्यौहर ॥

उद्भिज सेदज जेरज अंडा, सुपन रूप बरतै ब्रह्मंडा ।

उपजे बरतै अरु बिनसावै, सुपने-अंतर सब दरसावै ॥

त्याग-ग्रहन सुपना-ब्यौहारा, जो जागा सो सबसे न्यारा ।

जो कोई साध जागिया चावै, सो सतगुरुके सरनै आवै ॥

कृत-कृतबिरला जोगसभागी, गुरुमुख चेत सब्द मुखजागी ।

संसय मोह भरम निसि नास, आतमराम सहज परकास ॥

राम सँभाल सहज धर ध्यान, पाछे सहज प्रकासै ज्ञान ।

जन 'दरिया' सोइ बड़भागी, जाकी सुरत ब्रह्म सँग लागी ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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