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साधो , राम अनूपम बानी । ...

भजन - साधो , राम अनूपम बानी । ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


साधो, राम अनूपम बानी ।

पूरा मिला तो वह पद पाया, मिट गई खैंचातानी ॥

मूल चाँप दृढ़ आसन बैठा, ध्यान धनीसे लाया ।

उलटा नाद कँवलके मारग, गगना माहिं समाया ॥

गुरुके सब्दकी कूंजी सेती, अनंत कोठरी खोली ।

ध्रू के लोकपै कलस बिराजै, ररंकार धुन बोली ॥

बसत अगाध अगम सुख-सागर, देख सुरत बौराई ।

बस्तु घनी, पर बरतन ओछा, उलट अपूठी आई ॥

सुरत सब्द मिल परचा हुआ, मेरु मद्धका पाया ।

तामें पैसा गगनमें आया, जायके अलख लखाया ॥

पण बिन पातुर, कर बिन बाजा, बिन मुख गावैं नारी ।

बिन बादल जहँ मेहा बरसै, ढुमक-ढुमक सुख क्यारी ॥

जन दरियाव, प्रेम गुन गाया, वह मेरा अरट चलाया ।

मेरुदंड होय नाल चली है, गगन-बाग जहँ पाया ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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