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मेरे गति एक आप , दूजो कोऊ...

भजन - मेरे गति एक आप , दूजो कोऊ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मेरे गति एक आप, दूजो कोऊ और ना ।

स्त्रीको तन मलीन, कर्म अधिकार ना ॥

चपल बुद्धि बरनी कबि होत हिये ज्ञान ना ।

मंद-भाग्य मंदकर्म बनत नाहिं साधना ॥

बिद्या गुन हीन दीन, नैक भक्ति भाव न ।

नेम ध्यान धर्म कछू होत ना उपासना ॥

गेह फँसी ग्रसी रोग, एकहू उपाय ना ।

करूँ कहाँ जाऊँ कहाँ काहू पै बसाय ना ॥

इतने पै द्रोह करत, तातभ्रात साजना ।

जुगलप्रिया तऊँ तुम्हें प्यारे प्रिय लाज ना ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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