हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|चालीसा| श्री गुरु चरण सरोज रज, नि... चालीसा दोहा मात श्री महाकालिका ध... जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल ... ॥ स्तुति ॥ मात शैल्सुतास ... दोहा सुमिर चित्रगुप्त ईश ... ॥ दोहा ॥ मातु लक्ष्मी करि... ॥ दोहा ॥ गणपति गिरजा पुत्... जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल ... दोहा एकदन्त शुभ गज वदन वि... ॥ दोहा ॥ ॐ श्री वरुणाय नम... ॥ दोहा ॥ श्री गणपति गुरुप... जय गनेश गिरिजा सुवन । मंग... ॥ दोहा ॥ जय ... ॥ दोहा ॥ जय ... जयति सूर्य नारायण स्... श्री विष्णु चालीसा बंशी शोभित कर मधुर, नील ज... जय गणपति सदगुणसदन, कविवर ... नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।... श्री गणपति, गुरु गौरि पद,... श्री रघुवीर भक्त हितकारी ... सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तो... नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नम... जयति जयति शनिदेव दयाला । ... जय श्रीसकल बुद्घि बलरासी ... श्री गुरु चरण सरोज रज, नि... ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्... पहले साई के चरणों में, अप... दोहा- वन्दो वीरभद्र शरणो... श्री हनुमान चालीसा - श्री गुरु चरण सरोज रज, नि... चालीसा, देवी देवतांची काव्यात्मक स्तुती असून, भक्ताच्या आयुष्यातील सर्व संकटे दूर होण्यासाठी मदतीची याचना केली जाते. Tags : chalisadevidevtahanumanmarutiचालीसादेवतादेवीमारूतीहनुमान श्री हनुमान चालीसा Translation - भाषांतर श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि । बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ॥ बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥ ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुं लोग उजागर ॥ रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ॥ हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ॥ शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगवन्दन ॥ विघावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा । विकट रुप धरि लंक जरावा ॥ भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचन्द्रजी के काज संवारे ॥ लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो यश गावै । अस कहि श्री पति कंठ लगावै ॥ सनकादिक ब्रहादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ यह कुबेर दिकपाल जहां ते । कवि कोबिद कहि सके कहां ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥ तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥ जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही । जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ॥ दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक ते कांपै ॥ भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥ नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥ संकट ते हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्घ जगत उजियारा ॥ साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता । अस वर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अन्तकाल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ॥ और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्व सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ जय जय जय हनुमान गुसांई । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ जो शत बार पाठ कर सोई । छूटहिं बंदि महासुख होई ॥ जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्घि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महं डेरा ॥ ॥ दोहा ॥ पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥ N/A References : http://www.spiritualindia.org/wiki/Chalisa Last Updated : September 03, 2017 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP