जयति
सूर्य नारायण स्वामी। करहु कृपा प्रभु
अन्तर्यामी ॥
॥
दोहा ॥
श्री
गणपति पद कमल महँ ,
प्रेम सहित धरि ध्यान
।
सूरज
चालीसा कहौं , द्रवौ दया करि नाथ
॥
जय दिनकर जय दिवाकर , दीनदयाल
दिनेश।
जय जग पालक प्रभाकर ,
कीजै हरण कलेश ॥
॥
चौपाई ॥
जयति
सूर्य नारायण स्वामी।
करहु
कृपा प्रभु अन्तर्यामी ॥
अगन
कांति धर गगन बिहारी।
अनुपम
ज्योति कला छबि न्यारी
॥
युग
सहस्त्र योजन तनु राजै ।
माथे
कनक मुकुट - मणि साजै ॥
कुण्डल
कलित कपोलन सोहै।
सो लखि तेज तेज - पति मोहै ॥
श्वेत
वर्ण षट् - दश हय नाधे।
अरुण
सारथी रजु कर - साधे ॥
नौ लख योजन रथ
चौड़ाई।
सो छत्तीस लक्ष लम्बाई ॥
रत्न
जड़ित रथ पर प्रभु राजित।
लखि
गति सहस चंचला लाजित ॥
नौ करोड़ इक्यावन लाखा।
परिक्रमा
रवि की श्रुति भाखा
॥
अगणित
दैत्य नित्य संहारहिं।
जग
भक्तन कर कष्ट निवारहिं ॥
उदय
होत निशि कहँ तम
भाजै।
तब सतयुग कर डंका बाजै
॥
धनि
हो धन्य भानु भगवाना।
तब
महिमा प्रत्यक्ष बखाना ॥
तेजराशि
अतुलित बल धारी।
तब महिमा वरणत त्रिपुरारी ॥
सुनहु
उमा शुभ चरित दिनेशा।
सकल
हरण जन कष्ट कलेशा ॥
कुष्ट
वरण जिनके तन होई।
रवि
पर ध्यान धेरै नित जोई
॥
व्रत
बिनु लोन करै रविवारा।
ब्रह्मचर्य
युत धारि विचारा ॥
द्विज
सन रविकर सुनै पुराना।
पूजन
करै राखि उर ध्याना
॥
हवन
कराइ धेरै मन धीरा।
सोइ
भस्म लै मलै शरीरा ॥
निश्चय
छूटै कुष्ट कलेशा।
ऐसे
दीन दयालु दिनेशा ॥
अन्धहु
प्रभु महँ ध्यान लगावै ।
निश्चय
दिव्य दृष्टि को पावै ॥
जो निश्चय कर प्रेम प्रतीती।
निशदिन
रवि पर धारै प्रीती
॥
रवि
दिन प्रेम सहित चित लाई।
सूर्य
पुराण सुनै सुखदाई ॥
करै
नेम द्वादश रविवारा।
रहे
लोन बिनु एक अहारा
॥
करै
शयन कुश कास डसाई।
हर्षित
सदा सूर्य गुण गाई ॥
जो अस प्रभु महँ
ध्यान लगावै ।
बन्ध्यहु
नारि पुत्र सुख पावै ॥
कह
शिव संशय करै न कोई।
सत्य
वचन मम मृषा न होई ॥
जग हित लागि प्रेम
रस बानी।
मुनि
अस गौरि हृदय हर्षानी
॥
धन्य - धन्य सूरज अघनाशी।
दीन
दयानिधि मंगल राशी ॥
महा
अधिन कहँ तारण वाले
।
नारद
शाप निवारण वाले ॥
सत्राजित
के मान रखैया।
मणि
ते स्वर्ण मेह वर्षेया ॥
प्रात
रूप धारे चतुरानन ।
राजे
तवण विष्णु रूप मध्यानन ॥
शम्भु
रूप धरि सायंकाला।
त्रिभुवन
माहि करै प्रति पाला ॥
वर्ष
बीच पुनि बारह नामा।
धरि
भक्तन कर पूजहि कामा
॥
षट
ऋतु दिन तिथि वर्ष महीना।
पलक
मुहूर्त तुम्हें आधीना ॥
खग मृग जीव जन्तु
नर नारी।
घन गर्जत नभ वर्षत बारी
॥
वृक्ष
लतादिक प्रभु तव जानत।
फूलत
फरत झरत पुनि जामत ॥
चन्द्रादिक
नवग्रह नभ तारें।
ये सब तुम्हरहि नाथ
सहारें ॥
धन्य
सूर्य नारायण स्वामी।
दिव्य
दृष्टि दै अन्तर्यामी ॥
करहु
वेगि अब पूरण आशा।
होइ
हृदय मम ज्ञान प्रकाशा
॥
जो
यह चरित सूर्य को गावै ।
सब
सुख भोग परम पद पावै ॥
नमत
राम सुन्दर प्रभु दासा ।
लग प्रयाग आश्रम दुर्वासा ॥
॥
दोहा ॥
रवि
चालीसा प्रेम युत , पाठ करे
धरि ध्यान।
सुख
सम्पत्ति आयु बढ़े , होई
सदा कल्यान ॥