हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|सहजोबाईजी| निर्गुण और सगुण सहजोबाईजी अल्प परिचय विषय सूची जीवन सतगुरु की दया परमात्मा निर्गुण और सगुण मनुष्य-जन्म और प्रभुभक्ति शरीर और संसार की वास्तविकता नश्वर शरीर जगत् झूठा है कर्म और कर्मफल जीव की अवस्था बचपन युवावस्था वृद्ध अवस्था सहजोबाईजी - निर्गुण और सगुण सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है । Tags : bhajansahajobaiभजनसहजोबाई निर्गुण और सगुण Translation - भाषांतर निर्गुन सूँ सर्गुन भये, भक्त उधारनहार । सहजो की दंडौत है, ता कूँ बारम्बार ॥==निर्गुन सर्गुन एक प्रभु, देख्यौ समझ बिचार । सतगुरु ने आँखी दई, निस्चै कियौ निहार ॥ सहजो हरि बहु रंग है, वही प्रगट वहि गूप । जल पाले में भेद ना, ज्यों सूरज अरु धूप ॥ चरनदास गुरु की दया, गयो सकल सन्देह । छूटे बाद बिबाद सब, भई सहज गति लेह ॥==हाज़िर-नाज़िररूप नाम गुन सूँ रहित, पाँच तत्त सूँ दूर । चरनदास गुरु ने कही, सहजो छिपा हजूर ॥ आपा खोजे पाइये, और जतन नहिं कोय । नीर छीर निर्ताय के, सहजो सुरति समोय ॥==यही भाव मीराबाई ने भी अपनी बानी में व्यक्त किया है:मैं तो हरि चरणन की दासी, अब मैं काहे को जाऊं कासी । घट ही में गंगा घट ही में जमना, घट घट हैं अबिनासी ।==नैनों लख लैनी साईं तैंड़े हजूर । आगे पीछे दहिने बायें, सकल रहा भरपूर ॥ जिन को ज्ञान गुरू को नाहीं, सो जानत हैं दूर । जोग जज्ञ तीरथ व्रत साथै, पावत नाहीं कूर ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल जिमीं में, सोई हरि का नूर । चरनदास गुरु मोहिं बतायौ, सेहजो सब का मूर ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 19, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP