पूर्णदशक - ॥ समास सातवां - आत्मनिरूपणनाम ॥

इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
अनिर्वाच्य हुआ समाधान । उसे करना चाहिये कथन । कहने से गया समाधान । यह तो होता नहीं ॥१॥
कुछ छोडना पडता नहीं । कुछ जोडना पडता नहीं । एक विचार खोजकर देखें सही । तो समझे ॥२॥
मुख्य काशीविश्वेश्वर । श्वेतबंद रामेश्वर । मलकार्जुन भीमाशंकर । गुण आत्मा के ॥३॥
जैसे मुख्य बारह लिंग । इनके अतिरिक्त अनंत लिंग । प्रचीति से जानता जग । गुण आत्मा के ॥४॥
भूमंडल में अनंत शक्ति । नाना साक्षात्कार चमत्कार होते । नाना देवों की सामर्थ्य मूर्ति । गुण आत्मा के ॥५॥
नाना सिद्धों के सामर्थ्य । नाना मंत्रों के सामर्थ्य । नाना मोहर वनस्पति में सामर्थ्य । गुण आत्मा के ॥६॥
नाना तीर्थों के सामर्थ्य । नाना क्षेत्रों के सामर्थ्य । नाना भूमंडल के सामर्थ्य । गुण आत्मा के ॥७॥
जितने कुछ उत्तम गुण । उतने आत्मा के लक्षण । भले बुरे उतने जान । आत्मा के कारण ॥८॥
शुद्ध आत्मा उत्तमगुणी। सबल आत्मा अवलक्षणी । भली बुरी सारी करनी । आत्मा की ॥९॥
नाना साभिमान धरना । नाना प्रतिसृष्टि करना । श्रापउश्राप लक्षण नाना । गुण आत्मा के ॥१०॥
पिंड का भली भांति शोध लीजिये । तत्त्वों का पिंड अच्छे से खोजिये । तत्त्व खोजने पर पिंड सारा ये । समझ में आये ॥११॥
जड देह भूतों का । चंचल गुण आत्मा का । निश्चल ब्रह्म का अलग ठांव कैसा । जहां वहां ॥१२॥
निश्चल चंचल और जड । पिंड में करें निर्णय । प्रत्यय से अलग जाड । कथन नहीं ॥१३॥
पिंड से आत्मा चला जाता । तब निर्णय समझ में आता । देह जड यह गिर जाता। देखते देखते ॥१४॥
जड उतना गिर गया । चंचल उतना निकल गया । जड चंचल का रूप आया । प्रत्यय में ॥१५॥
निश्चल है सकल ठाई । इसे देखने की जरुरत नहीं । गुणविकार वहां नहीं । निश्चल को ॥१६॥
जैसे पिंड वैसा ब्रह्मांड । विचार दिखता स्पष्ट । जड चंचल जानें पर श्रेष्ठ । परब्रह्म ही है ॥१७॥
महाभूतों का खंबीर किया । आत्मा डालकर पुतला हुआ । चल रहा सृष्टि का पसारा । इसी तरह ॥१८॥
आत्मा माया विकार करे । ब्रह्म पर आरोप करे । प्रत्यय से सब कुछ विवरण करे । वही भला ॥१९॥
ब्रह्म व्यापक अखंड । अन्य व्यापकता खंड । खोजकर देखें तो जड । कुछ भी नहीं ॥२०॥
गगन को खंडित ना कर सके । गगन का नष्ट क्या होये । हुआ भी अगर महाप्रलय । सृष्टिसंहार ॥२१॥
जो संहार में उलझ गये । वे सहज ही नाशवान हुये । ज्ञाता लोगों ने सुलझाना चाहिये । यह उलझन ॥२२॥
न समझने पर उलझन लगे । समझने पर सारा स्पष्ट दिखे । इस कारण निर्णय एकांत में । विचार देखें ॥२३॥
मिलने पर प्रत्यय के संत । एकांत से परे एकांत । करनी चाहिये सावधचित्त से । नाना चर्चा ॥२४॥
देखे बिना समझता नहीं । समझते समझते संदेह नहीं। विवेक से देखो तो कहीं भी नहीं । मायाजाल ॥२५॥
गगन में मेघ आये । बाद में सारे ही उड़ गये । आत्मा के कारण ही दृश्य हुये । उड़ जाते वैसे ही ॥२६॥
मूल से लेकर अंत तक । विवेकी विवेक से करें विवरण । वहीं करे स्थिर निश्चय । चलित ना हो ऐसा ॥२७॥
ऊपरी उपर निश्चय अनुमान का । अनुमान से बोलने पर क्या जाता । ज्ञाता पुरुष प्रचीति का । वे तो इसे ना माने ॥२८॥
व्यर्थ ही बोलना अनुमान का । अनुमान के किस काम का । यहां सारे विचारों का । काम ही नहीं ।॥२९॥
उथला विचार यह अविचार । कई कहते कि एकाकार । एकाकार भ्रष्टाकार । करें नहीं ॥३०॥
कृत्रिम सारे छोड दें । कुछ शुद्ध ग्रहण करें । जान जानकर चयन करें । सारासार ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥

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Last Updated : December 09, 2023

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