पूर्णदशक - ॥ समास छठवां - आत्मागुणनिरूपणनाम ॥

इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
देखने जाओ भूमंडल । ठाई ठाई है जल । कई एक वे पठार निर्मल । जल बिन पृथ्वी ॥१॥
वैसे दृश्य हुआ विस्तारित । कुछ ज्ञातृत्व से हुआ शोभित । शेष रहा ज्ञातृत्वरहित । कई एक दृश्य ॥२॥
चारों खानि चारों वाणी । चौरासी लक्ष जीवयोनि । शास्त्रों में सारी कथनी । नियमबद्ध है ॥३॥

॥ श्लोक ॥ जलजा नवलक्षाश्च दशलक्षाश्च पक्षिणः ।
कृमयो रुद्रलक्षाश्च विंशल्लक्षा गवादयः ।
स्थावरास्त्रिंशल्लक्षाश्च चतुर्लक्षाश्च मानवाः ।
पापपुण्यं समं कृत्वा नरयोनिषु जायते ॥छ॥

मनुष्य चार लाख । पशु बीस लाख । कृमि ग्यारह लाख । कहे हैं शास्त्रों में ॥४॥
दस लाख वे खेचर । नौ लाख जलचर । तीस लाख स्थावर । कहे हैं शास्त्रों में ॥५॥
ऐसे चौरासी लाख योनि । जितनी उतना जानता प्राणी । प्रस्तुति अनंत देहों की । मर्यादा कैसी ॥६॥
होते जाते अनंत प्राणी । उनका अधिष्ठान धरती । धरती से अलग स्थिति । उन्हें कैसी ॥७॥
आगे देखने पर पंचभूत । स्पष्ट दशा किये प्राप्त । कोई विद्यमान कोई स्थित । यूं ही रहते ॥८॥
अंतरात्मा की पहचान । वहीं जहां है चपलपन । ज्ञातृत्व का अधिष्ठान । सावधानी से सुनें ॥९॥
सुख दुःख जानता जीव । वैसे ही जानिये सदा शिव । अंतःकरणपंचक अपूर्व । अंश आत्मा का ॥१०॥
स्थूल में आकाश के गुण । अंश आत्मा के जान । सत्त्व रज तमोगुण । गुण आत्मा के ॥११॥
नाना विचार नाना धृति । नवविधा भक्ति चतुर्विधा मुक्ति । अलिप्तपन सहजस्थिति । गुण आत्मा के ॥१२॥
द्रष्टा साक्षी ज्ञानघन । सत्ता चैतन्य पुरातन । श्रवण मनन विवरण । गुण आत्मा के ॥१३॥
दृश्य द्रष्टा दर्शन । ध्येय ध्याता ध्यान । ज्ञेय ज्ञाता ज्ञान । गुण आत्मा के ॥१४॥
वेदशास्त्रपुराणअर्थ । गुप्त चला परमार्थ । सर्वज्ञता से समर्थ । गुण आत्मा के ॥१५॥
बद्ध मुमुक्ष साधक सिद्ध । विचार देखना शुद्ध । बोध और प्रबोध । गुण आत्मा के ॥१६॥
जागृति स्वप्न सुषुप्ति तुर्या । प्रकृतिपुरुष मूलमाया । पिंड ब्रह्मांड अष्टकाया । गुण आत्मा के ॥१७॥
परमात्मा और परमेश्वरी । जगदात्मा और जगदेश्वरी । महेश और माहेश्वरी । गुण आत्मा के ॥१८॥
सूक्ष्म जितने नामरूप । उतने आत्मा के स्वरूप । संकेत नामाभिधान अनाप । सीमा नहीं ॥१९॥
आदि शक्ति शिवशक्ति । मुख्य मूलमाया सर्वशक्ति । नाना जिनस उत्पत्ति स्थिति । उतने गुण आत्मा के ॥२०॥
पूर्वपक्ष और सिद्धांत । गाना बजाना संगीत । नाना विद्या अद्भुत । गुण आत्मा के ॥२१॥
ज्ञान अज्ञान विपरीत ज्ञान । असद्वृत्ति सवृत्ति जान । ज्ञप्तिमात्र अलिप्तपन । गुण आत्मा के ॥२२॥
पिंड ब्रह्मांड तत्त्वनिरसन । नाना तत्त्वों का निर्णय । विचार देखना स्पष्ट । गुण आत्मा के ॥२३॥
नाना ध्यान अनुसंधान । नाना स्थिति नाना ज्ञान । अन्वय आत्मनिवेदन । गुण आत्मा के ॥२४॥
तैंतीस कोटि सुरवर । अठ्यासी सहस्र ऋषेश्वर । भूत खेचर अपार । गुण आत्मा के ॥२५॥
भूतावली साढे तीन कोटि । चामुंडा छप्पन कोटि । कात्यायनी नौ कोटि । गुण आत्मा के ॥२६॥
चंद्र सूर्य तारामंडल । नाना नक्षत्र ग्रहमंडल । शेष कूर्म मेघमंडल । गुण आत्मा के ॥२७॥
देव दानव मानव । नाना प्रकारों के जीव । देखो तो सकल भावाभाव । गुण आत्मा के ॥२८॥
आत्मा के नाना गुण । ब्रह्म निर्विकार निर्गुण । जानना एकदेशीय पूर्ण । गुण आत्मा के ॥२९॥
आत्माराम उपासना । उससे पा लिये निरंजना । निःसंदेह अनुमान का । ठांव ही नहीं ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मागुणनिरूपणनाम समास छठवां ॥६॥

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Last Updated : December 09, 2023

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