हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|प्रकृतिपुरुष का| ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - अनुमाननिरसननाम ॥ ॥ समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - देहात्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जगज्जीवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ आवरणोदक' में हटकेश्वर । उसे होये नमस्कार । महिमा अत्यंत ही महान । उस पाताललिंग की ॥१॥ परंतु वहां पहुंच ना पाये। शरीर से दर्शन हो ना पाये । विवेक से अनुमान में लाये। उस ईश्वर को ॥२॥सात समुद्रों के घेरे । उदंड भूमि उसके परे । अंत में टूटी कगारे । भूमंडल की ॥३॥ सात समुद्र पार करें । वहां कैसे जा सके । इस कारण विवेकी रहें । साधुजन ॥४॥ जो स्वयं ना जाने । वह ज्ञाता से पूछें । मनोवेग से तन घूमे । यह तो होता नहीं ॥५॥ चर्मदृष्टि ना देखे जिसे । देखें उसे ज्ञानदृष्टि से । ब्रह्मांड का विवरण कर रहें । समाधान से ॥६॥ मध्य में है भूमि का पटल । इस कारण आकाश और पाताल । पटल न रहते अंतराल । चारों ओर ॥७॥कहें परब्रह्म उसे । जो उपाधि अलग स्वाभाविकता से । जहां दृश्य माया के नाम से । शून्याकार ॥८॥दृष्टि का देखना दृश्य । मन का देखना भास । मनातीत निराभास । विवेक से जानें ॥९॥ दृश्य भास सारा बिगडे । वहां विवेक प्रविष्ठ होये । भूमंडल में ज्ञाता थोडे । सूक्ष्मदृष्टि के ॥१०॥ वाचा से कहें वाच्यांश । ना बोलते जानें लक्ष्यांश । अनुभव में लाये निर्गुण । गुण के ही योग से ॥११॥नाना गुणों को है नाश । निर्गुण वह अविनाश । स्थूल से विशेष । सूक्ष्म देखना ॥१२॥ जो ना देख पायें दृष्टि से । सुनकर जानें उसे । श्रवण मनन से समझे । सब कुछ ॥१३॥ अष्टधा के जिन्नस नाना । उदंड देखें तो भी समझे ना । सभी को एकसमान मानें ना । कोई एक ॥१४॥सबकी समान स्थिति हुई । वहां परीक्षा ही डूब गई । जैसे स्वादक ने मिलायी । नाना प्रकार के अन्न ॥१५॥ टोणपा नहीं गुणग्राहक । मूर्ख को समझेना विवेक । विवेक और अविवेक । एक ही कहते ॥१६॥ ऊंच नीच ना समझे जिसे । वहां अभ्यास ही डूबे । प्राणी को विविध अभ्यास से । मुक्ति कैसी ॥१७॥ मैले हुये पागलपन से । सारे समान ही लगे उसे । समझें बडबड़ उसे । विवेकी नहीं ॥१८॥ जिसका हो रहा अखंड नाश । उसे ही कहते अविनाश । वाचाल लोगों से । कहें भी क्या ॥१९॥ ईश्वर ने नाना भेद किये । भेद से सकल सृष्टि चले । अंधे परीक्षावंत मिले । वहां परीक्षा कैसी ॥२०॥ जहां परीक्षा का अभाव । बह टोणपा समुदाव । गुण ही नहीं गौरव । होगा कैसे ॥२१॥ खरा खोटा एक हुआ । विवेक ने क्या किया । असार त्यागकर सार लिया । साधुजनों ने ॥२२॥ उत्तम वस्तु की परीक्षा । कैसे करेगा नतद्रक्षा । दीक्षाहीन के पास दीक्षा । आयेगी कैसे ॥२३॥ अपने ही मैलेपन से । दिशा के बाद शौच ले जाये । वेदशास्त्र पुराण उसे । क्या करेंगे ॥२४॥ पहले सम्हालें आचार । फिर देखें विचार । आचार विचार से भवपार । प्राप्त होता ॥२५॥ जो अचूक को ना समझे । वह बड़बड़ को कैसे समझे । आंखवाले फंसते अंधे । किस काम के ॥२६॥पापपुण्य स्वर्गनर्क । सभी को माना एक । विवेक और अविवेक । क्या मानें ॥२७॥ अमृत विष एक कहते । मगर विष लेते ही प्राण जाते । कुकर्मो से फजीहत पाते । सत्कर्मो से बढ़े कीर्ति ॥२८॥ इहलोक और परलोक । जहां नहीं साकल्य विवेक । वहा सारा ही निरर्थक । सब कुछ ॥२९॥ इस कारण सत्संग मे जायें । सच्छास्त्र ही श्रवण करें । उत्तम गुणों का अभ्यास करें । नाना प्रयत्नों से ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे टोणपसिद्धलक्षणनाम समास दसवा ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP