हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|प्रकृतिपुरुष का| ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - अनुमाननिरसननाम ॥ ॥ समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - देहात्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जगज्जीवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥निश्चल ब्रह्म में चंचल आत्मा । सकलों से परे जो परमात्मा । चैतन्य साक्षी ज्ञानात्मा । षड्गुणैश्वरु ॥१॥ सकल जग का ईश्वरु । इस कारण नाम जगदीश्वरु । उससे हुआ विस्तारु । विस्तारित हुआ ॥२॥शिवशक्ति जगदीश्वरी । प्रकृतिपुरुष परमेश्वरी । मूलमाया गुणेश्वरी। गुणक्षोभिणी ॥३॥ क्षेत्रज्ञ द्रष्टा कूटस्थ साक्षी । अंतरात्मा सर्वलक्ष्यी । शुद्धसत्त्व महतत्त्व पारखी । ज्ञाता साधु ॥४॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वर । नाना पिंडों में जीवेश्वर । उसे भासते प्राणिमात्र । छोटे बडे ॥५॥ देह मंदिर में बैठा । न भजने पर देह को मारता । इस भय से उसका । भजन करते लोग ॥६॥ जो समय पर भजन से चूके । वे सब तब पछाडे गये । चाह से भजन करने लगे । विश्वजन ॥७॥ जो जो जब आक्षेप किया । वह सब तत्काल ही दिया । त्रैलोक भजने लगा । इस प्रकार ॥८॥ पांचों विषयों का नैवेद्य । जब चाहे तब सिद्ध । ऐसा न करने पर सद्य । रोग होते ॥९॥ जिस समय नैवेद्य पाये ना । उस समय देव रहे ना । भाग्य वैभव पदार्थ नाना । त्यागकर जाता ॥१०॥ जाता वह पता लगने दे ना । किसी को पता चले ना । देव के बिना अनुमान होता ना । किसी को देव का ॥११॥ देव देखने के लिये । देवालय देखने पडते । कहीं तो देवालय के गुण से । देव प्रकटे ॥१२॥ देवालय याने नाना शरीर । वहां रहता जीवेश्वर । नाना शरीर नाना प्रकार । अनंत भेद ॥१३॥ चलते बोलते देवालय । उसमें रहता रावल । जितने देवालय उतने सर्व । समझने चाहिये ॥१४॥मत्स्य कूर्म वराह देवालय । भूगोल धरा है सर्वकाल । कराल विक्राल निर्मल । कितने सारे ॥१५॥ कई मंदिरों में सौख्य देखे । सारे सिंधू को भरती आई। परंतु वह सर्वकाल न रहे । अशाश्वत ॥१६॥अशाश्वत का मस्तकमणि । जिसकी इतनी करनी । दिखे ना तो क्या हुआ धनी । उसे ही कहें ॥१७॥उद्भवोन्मुख' होने पर अभेद । विमुख होये तो उदंड खेद । ऐसा अधोर्ध्व संवाद । होते रहता ॥१८॥सकलों का मूल दिखे ना । भव्य भारी और भासे ना । निमिष एक रहे ना । एक स्थान पर ॥१९॥ऐसा अगाध परमात्मा । कौन जाने उसकी महिमा । तेरी लीला सर्वोत्तमा । तू ही जाने ॥२०॥ संसार में आने का सार्थक । जहां नित्यानित्यविवेक । इहलोक और परलोक । दोनों साधे ॥२१॥मननशील लोगों के पास है । अखंड देव अहर्निशी' । देखें उनकी पूर्वसंचित राशि । जोड नहीं ॥२२॥अखंड योग अतः योगी । योग नहीं वह वियोगी। वियोगी वह भी योगी । योग बल से ॥२३॥ भलों की महिमा ऐसे । जो लोगों को सन्मार्ग दिखाये । तैराक हो तो डूबने ना दे । डूबनेवाले को ॥२४॥ स्थूलसूक्ष्म तत्त्वनिरसन । पिंडब्रह्मांड का चयन । प्रचीत देखते ऐसे कम । भूमंडल में ॥२५॥ वेदांत का पंचीकरण । अखंड उसका विवरण । महावाक्य में अंतःकरण - । रहस्य देखे ॥२६॥ इस पृथ्वी में रहते विवेकी । धन्य उनकी संगति । श्रवणमात्र से पाते गति । प्राणीमात्र ॥२७॥ सत्संग और सच्छास्त्रश्रवण । अखंड होते रहता विवरण । नाना सत्संग और उत्तम गुण । परोपकार के ॥२८॥ जो सत्कीर्ति के पुरुष । वे परमेश्वर के अंश । धर्मस्थापना की आस । उन्हें ही होती ॥२९॥ विशेष सारासार विचार । जिससे होता जगदुद्धार । संगत्याग से निरंतर । हो गये ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देवबलात्कारनाम समास पहला ॥१॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP