हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|प्रकृतिपुरुष का| ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का ॥ समास पहला - देवबलात्कारनाम ॥ ॥ समास दूसरा - शिवशक्तिनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - श्रवणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - अनुमाननिरसननाम ॥ ॥ समास पांचवां - अजपानिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - देहात्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - जगज्जीवननिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥ प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ स्थूल सूक्ष्म कारण महाकारण । ऐसे ये चत्वार देह जान । जागृति स्वप्न सुषुप्ति पूर्ण । तुर्या जानिये ॥१॥ विश्व तैजस प्राज्ञ । प्रत्यगात्मा ये अभिमान । नेत्रस्थान कंठस्थान हृदयस्थान । और मूर्धनी ॥२॥स्थूलभोग प्रविविक्तभोग । आनंदभोग आनंदावभासयोग । ऐसे ये चत्वार भोग । चार देहों के ॥३॥ अकार उकार मकार । अर्धमात्रा वह ईश्वर । ऐसी मात्रा चत्वार । चार देहों की ॥४॥ तमोगुण रजोगुण । सत्त्वगुण शुद्धसत्वगुण । ऐसे ये चत्वार गुण । चार देहों के ॥५॥ क्रियाशक्ति द्रव्यशक्ति । इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति । ऐसी चत्वार शक्ति । चार देहों की ॥६॥ ऐसे ये बत्तीस तत्त्व । दोनों के पचास तत्त्व । सारे मिलाकर बयासी तत्त्व । अज्ञान और ज्ञान ॥७॥ ऐसे ये तत्त्व जानो । जानकर मायिक पहचानो । स्वयं साक्षी निरसन करो । इसप्रकार से ॥८॥ साक्षी याने ज्ञान । ज्ञान से पहचानें अज्ञान । ज्ञानाज्ञान का निरसन । देह के संग ॥९॥ ब्रह्मांड में देह कल्पित किया । विराट हिरण्यगर्भ कहा । उसका विवेक से निरसन किया । आत्मज्ञान से ॥१०॥ करने पर आत्मानात्मविवेक । देखने पर सारासार विचार । पंचभूतों की वार्ता मायिक । प्रचीति में आई ॥११॥ अस्थि मांस त्वचा नाडी रोम । ये पांचों ही पृथ्वी के गुणधर्म । प्रत्यक्ष शरीर में यह मर्म । खोजकर देखें ॥१२॥ शुक्लीत श्रोणीत लार मूत्र स्वेद । ये आप के पंचभेद । तत्त्व समझकर विशद । करके लीजिये ॥१३॥ क्षुधा तृष्णा आलस्य निद्रा मैथुन । ये पांचों भी तेज के गुण । इन तत्त्वों का निरूपण । पुनः पुनः करें ॥१४॥ चलन मोड प्रसारण । निरोध और आकुंचन । ये पांचों भी वायु के गुण । श्रोताओं जानिये ॥१५॥ काम क्रोध शोक मोह भय । ये आकाश के पर्याय । विवरण के बिना इन्हें क्या । समझ पायेंगे ॥१६॥अस्तु ऐसा यह स्थूल शरीर । पच्चीस तत्त्वों का विस्तार । अब सूक्ष्मदेह का विचार । है कहा जाता ॥१७॥ अंतःकरण मन बुद्धि चित्त अहंकार । आकाश पंचक का विचार । आगे वायु निरुत्तर । होकर सुनें ॥१८॥व्यान समान उदान । प्राण और अपान । ऐसे ये पांचों भी गुण । वायुतत्त्व के ॥१९॥ श्रोत्र त्वचा चक्षु जिव्हा घ्राण । ये पांचों भी तेज के गुण । अब आप सावधान । होकर सुनें ॥२०॥ वाचा पाणि पाद शिस्न गुद । ये आप के गुण प्रसिद्ध । अब पृथ्वी विशद । है निरूपित ॥२१॥ शब्द स्पर्श रूप रस गंध । ये पृथ्वी के गुण विशद । ऐसे ये पच्चीस तत्त्वभेद । सूक्ष्म देह के ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे तनुचतुष्टयनाम समास नववां ॥९॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP