हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|विवेकवैराग्यनाम| ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥ विवेकवैराग्यनाम ॥ समास पहला - विमललक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - प्रत्ययनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - भक्तनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - विवेकवैराग्यनाम ॥ ॥ समास पांचवां - आत्मनिवेदननाम ॥ ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - कालरूपनाम ॥ ॥ समास नववां- येत्नसिकवणनाम ॥ ॥ समास दसवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥ विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥ इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास छठवां - सृष्टिक्रमनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ब्रह्म निर्मल निश्चल । शाश्वत सार अमल विमल । अवकाश घन खोखल । गगन जैसा ॥१॥ उसे करना ना धरना । उसे जन्म ना मरना । वहां जानना ना जानना । शून्यातीत ॥२॥ वह रचेना ना मिटेना । वह होयेना ना जायेना । मायातीत निरंजना । पार ही नहीं ॥३॥ संकल्प खड़ा हुआ आगे । षडगुणेश्वर कहते उसे । अर्धनारीनटेश्वर को ऐसे । कहते हैं ॥४॥ सर्वेश्वर सर्वज्ञ । साक्षी द्रष्टा ज्ञानघन । परेश परमात्मा जगजीवन । मूलपुरुष ॥५॥ वह मूलमाया बहुगुणी । अधोमुख से गुणक्षोभिणी । गुणत्रय उससे ही । निर्माण हुये ॥६॥ आगे विष्णु हुआ निर्माण । ज्ञातृत्वकला सत्त्वगुण । जो करता है पालन । त्रैलोक्य का ॥७॥ आगे समझ नासमझ मिश्रित । ब्रह्मा जानिये निश्चित । उत्पत्ति होती जिसके कारण । भुवनत्रयों में ॥८॥ आगे रुद्र तमोगुण । सकल संहार का कारण । सभीकुछ कर्तापन । आया वहीं ॥९॥ वहां से आगे पंचभूत । पायें दशा व्यक्त । अष्टधा प्रकृति का यह स्वरूप । है मूलतः ही ॥१०॥ निश्चल में हुआ चलन । वही वायु का लक्षण । पंचभूत और त्रिगुण । सूक्ष्म अष्टधा ॥११॥ आकाश याने अंतरात्मा । प्रत्यय से देखे महिमा । उस आकाश से जन्मा । वायु ॥१२॥उस वायु के झोंके दो । उष्ण शीतल सुनो । शीतल से तारे चंद्र दोनो । जन्म पाये ॥१३॥ रवि वन्हि उष्ण से । विद्युल्लता आदि ऐसे । शीतल उष्ण मिला के । तेज जानिये ॥१४॥ उस तेज से हुआ आप । आप सूखकर पृथ्वी का रूप । आगे औषधियां अमाप । निर्माण हुई ॥१५॥औषधियों से नाना रस । नाना बीज अन्नरस । चौरासी लाख योनियों का वास । भूमंडल में ॥१६॥ ऐसी हुई सृष्टिरचना । मन में चाहिये विचार लाना । प्रत्यय बिना अनुमान । के पात्र होते ॥१७॥ ऐसा हुआ आकार । इसी न्याय से संहार । सारासार विचार । कहते इसे ॥१८॥ जो जो जहां से निर्माण हुआ । वह वहीं विलीन हुआ । इसी न्याय से संहार हुआ । महाप्रलय में ॥१९॥आद्य मध्य अवसान । में जो शाश्वत निरंजन । वहां लगायें अनुसंधान । ज्ञाता पुरुष ॥२०॥ होती रहती नाना रचना । परंतु वह कुछ भी टिकेना । सारासार विचारणा । इस कारण से ॥२१॥ द्रष्टा साक्षी अंतरात्मा । सर्वत्र कहते महिमा । परंतु इस सर्वसाक्षिणी अवस्था का । देखें प्रत्यय स्वतः ॥२२॥मूल से लेकर अंत तक । माया का विस्तार समस्त । विद्या कला कौशल अनेक । उसमें है ॥२३॥ जो उपाधि का अंत पायेगा । उसे भ्रम ऐसे लगेगा । जो उपाधि में उलझेगा । उसे छुड़ाये कौन ॥२४॥विवेक से प्रत्यय के काम ऐसे । कैसे होंगे अनुमान भ्रम से । सारासार विचार के संभ्रम से । मिलता परब्रह्म ॥२५॥ ब्रह्मांड का महाकारण । वह मूलमाया जान । अपूर्ण को कहते ब्रह्म पूर्ण । विवेकहीन ॥२६॥ सृष्टि में बहुजन । कोई भोगता नृपासन । कोई करते विष्ठा विसर्जन । जानें प्रत्यक्ष अब ॥२७॥ ऐसे उदंड लोग रहते । स्वयं को महान कहते । परंतु वह विवेकी जानते । सभी कुछ ॥२८॥ ऐसा है समाचार । इस कारण चाहिये विचार । बहुतों के कहने से यह ससार । नष्ट ना होये ॥२९॥पुस्तक ज्ञान से निश्चय धरना । फिर गुरु किस कारण करना । इस कारण विवरण करना । अपने प्रत्यय से ॥३०॥ जो बहुतों की बातों में आया । वह जानें निश्चित डूबा । एक साहब न होते मुशारा । किससे मांगे ॥३१॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सृष्टिक्रमनिरूपणनाम समास छठवा ॥६॥ N/A References : N/A Last Updated : December 08, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP