हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|ज्ञानदशक मायोद्भवनाम| ॥ समास चौथा - सूक्ष्मपंचभूतनिरूपणनाम ॥ ज्ञानदशक मायोद्भवनाम ॥ समास पहला - देवदर्शननाम ॥ ॥ समास पहला - देवदर्शननाम ॥ ॥ समास दूसरा - सूक्ष्मआशंकानाम ॥ ॥ समास तीसरा - सूक्ष्मआशंकानाम ॥ ॥ समास चौथा - सूक्ष्मपंचभूतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवा - स्थूलपंचमहाभूत स्वरूपाकाशभेदो नाम ॥ ॥ समास छठवां - दुश्चितनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - मोक्षलक्षणनाम ॥ ॥ समास आठवां - आत्मदर्शननाम ॥ ॥ समास नववां - सिद्धलक्षणनाम ॥ ॥ समास दसवां - शून्यत्वनिरसननाम ।! ज्ञानदशक मायोद्भवनाम - ॥ समास चौथा - सूक्ष्मपंचभूतनिरूपणनाम ॥ ३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास चौथा - सूक्ष्मपंचभूतनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पिछले आशका का मूल । अब होगा प्रांजल । वृत्ति करें शांत । निमिष एक ॥१॥ ब्रह्म में मूलमाया हुई । उसके गर्भ से माया आई । फिर वह गुण प्रसवित हुई। इसलिये गुणक्षोभिणी ॥२॥आगे उससे कौन । सतत्त्वरजोतमोगुण । तमोगुण से निर्माण । हुये पंचभूत ॥३॥ ऐसे भूत उद्भव हुये । आगे तत्त्व विस्तारित हुये । एवं तमोगुण से हुये । पंचमहाभूत ॥४॥ मूलमाया गुणों से परे । वहां भूत कैसे होते । ऐसी आशंका पीछे । ली है श्रोताओं ने ॥५॥ और एक एक भूत में । पंचभूत रहते । उनकी भी स्थिति है कैसे । प्रांजल करूं ॥६॥ सूक्ष्मदृष्टि के कौतुक । मूलमाया पंचभौतिक । श्रोता ने विमल विवेक । करना चाहिये ॥७॥ पहले उन भूतों को जानें । रूप कैसे पहचानें । तब उन्हें खोजकर देखें । सूक्ष्म दृष्टि से ॥८॥ पहचान नहीं भीतर । उन्हें पहचानें किस प्रकार । इस कारण भूतों की पहचान चतुर । नाम से सुनें ॥९॥जो जो जड़ और कठिन । वे सब पृथ्वी के लक्षण । मृदु और गीलापन । वह आप ॥१०॥ जो जो उष्ण और सतेज । वह सब जानें तेज । अब वायु भी सहज । निरूपित है ॥११॥ चैतन्य और चंचल । वह यह वायु ही केवल । शून्य अवकाश निश्चल । आकाश जानें ॥१२॥ ऐसे पंचमहाभूत । पहचान के लिये धरें संकेत । अब एक में पांच भूत । सावधानी से सुनो ॥१३॥ जो त्रिगुण से भी पार । उसका सूक्ष्म विचार । इसकारण अतितत्पर । होकर सुनें ॥१४॥ सूक्ष्म आकाश में पृथ्वी कैसे । वही निरूपित करुं पहले। यहां धारणा धरें । श्रोतेजन ॥१५॥आकाश याने अवकाश शून्य । शून्य याने वह अज्ञान । अज्ञान याने जडत्व जान । वही पृथ्वी ॥१६॥आकाश स्वयं है मृद । वही आप स्वतः सिद्ध । अब तेज वह भी विशद । करके दिखायें ॥१७॥ अज्ञान से भासित जो भास । वही तेज का प्रकाश । अब वायु सावकाश । संपूर्ण कहेंगे ॥१८॥वायु आकाश में नहीं भेद। आकाश जितना ही वह स्तब्ध । तथापि आकाश में जो निरोध । वही वायु ॥१९॥ आकाश में आकाश का मिश्रण । इसका तो नहीं लगे कथन। इस प्रकार किया निरूपण । आकाश पंचभूत ॥२०॥ वायु में पंचभूत । वे भी सुनें एकचित्त । कहते हैं वे समस्त । यथान्वय ॥२१॥ हल्का फूल फिर भी जड़। मंद वायु फिर भी कठिन । वायु चलने से कड़ाकड़ । टूटते पेड़ ॥२२॥ वजन बिन पेड़ टूटे। ऐसा तो कहीं भी ना घटे । वजन वही उसकी जड़ता है । पृथ्वी का अंश ॥२३॥ यहा श्रोता आक्षेप लेते । वहां पेड़ कहां से आये थे । पेड़ न थे फिर भी शक्ति है । कठिन रूप ॥२४॥बन्हि स्फुलिंग सूक्ष्म । अल्पांश से रहता उष्ण । वैसे सूक्ष्म में जडत्व । सूक्ष्म रूप से ॥२५॥ मृदुपन वही आप । भासे तेज का स्वरूप । वायु वहां चंचलरूप । सहज ही रहे ॥२६॥ सभी से मिलकर आकाश । सहज ही रहे अवकाश । पंचभूतों के अंश । वायु में निरूपित किये ॥२७॥ अब तेज के लक्षण । भासित होना वह कठिन । तेज में ऐसी पहचान । पृथ्वी की ॥२८॥ भासित भास लगे मृद । तेज में आप वही प्रसिद्ध । तेज में तेज स्वतः सिद्ध । कहना ना पड़े ॥२९॥ तेज में वायु वह चंचल । तेज में आकाश निश्चल । तेज के पंच वे सकल । निरूपित किये ॥३०॥ अब आप के लक्षण । आप वही जिसमें मृदपन । मृदपन जो कठिन । वही पृथ्वी ॥३१॥ आप में आप सहज ही रहे । तेज मृदपन से भासे । वायु स्तब्धता से दिखे। मृदत्व में ॥३२॥ आकाश का न लगे कथन । व्यापकता उसका सहज गुण। आप में पंचभूतों के नाम । सूक्ष्मता से निरूपित किये ॥३३॥ अब पृथ्वी के लक्षण । पृथ्वी स्वयं कठिन । कठिनता में जो मृदपन । वही आप ॥३४॥ कठिनता का जो भास । वही तेज का प्रकाश । कठिनता में निरोधांश । वही वायु ॥३५॥ आकाश सभी को व्यापक । यह तो प्रकट ही विवेक । आकाश में ही कुछेक । भास भासे ॥३६॥ आकाश तोड़ने पर टूटेना । आकाश फोडने पर फूटेना । आकाश दूर हटे ना । तिलमात्र ॥३७॥ अस्तु अब पृथ्वी के अंतर्गत । दिखाया भूतों का संकेत । एक भूत में पंचभूत । वे भी निरूपित किये ॥३८॥ परंतु यूं ही देखने से ना समझे । बलात् ही मन में संदेह उठे । भ्रांतिरूप में अहंता चढे । अकस्मात् ॥३९॥सूक्ष्म दृष्टि से यदि देखा जाता । वायु ही लगे तत्त्वता । सूक्ष्म वायु को ढूंढा जाता। पंचभूत दिखते ॥४०॥एवं पंचभौतिक पवन । वही मूलमाया जान । माया और सूक्ष्म त्रिगुण । वे भी पंचभौतिक ॥४१॥ भूतों में गुणों को मिलाइये । उसको अष्टधा कहिये । पंचभौतिक जानिये । अष्टधा प्रकृति ॥४२॥ खोजकर देखे बिन । संदेह करना मूर्खपन । इसकी देखें पहचान । सूक्ष्म दृष्टि से ॥४३॥ गुणों से आये भूत । पाये दशा वे स्पष्ट । जडत्त्व में आकर समस्त । तत्त्व हो गये ॥४४॥आगे तत्त्व विंवचना । पिंडब्रह्मांड तत्त्वरचना । जनों में हुआ जो कहना । प्रकट ही है ॥४५॥ यह भूतकर्दम कहा गया । सूक्ष्म संकेत से दिखलाया । ब्रह्मांडगोल उभारा गया । तत्पूर्वी ॥४६॥ कथा इस ब्रह्मांडपार की । जब हुई नहीं थी सृष्टि । मूलमाया सूक्ष्मदृष्टि । से पहचानें ॥४७॥ सप्तकंचुक प्रचंड ! नहीं हुआ था ब्रह्मांड । माया अविद्या के विद्रोह। इस ओर ॥४८॥ब्रह्मा विष्णु महेश्वर । यह इस ओर का विचार । पृथ्वी मेरू सप्तसागर । इसी ओर ॥४९॥ नाना लोक नाना स्थान । चंद्र सूर्य तारांगण । सप्त द्वीप चौदह भुवन । इस ओर ॥५०॥ शेष कूर्म सप्त पाताल । इक्कीस स्वर्ग अष्ट दिक्पाल । तैंतीस कोटि देव सकल । इस ओर ॥५१॥ बारह आदित्य ग्यारह रूद्र । नव नाग सप्त ऋषेश्वर । नाना देवों के अवतार । इसी ओर ॥५२॥ मेघ मनु चक्रवर्ती । नाना जीवों की उत्पत्ति । अब रहने दो कहूं कितनी । विस्तृति यह ॥५३॥ सकल विस्तारों का मूल । वह यह मूलमाया ही केवल । पीछे निरूपित की सकल । पंचभूतिक ॥५४॥सूक्ष्म भूत जो कहे गये । वे ही आगे जडत्व में आये। वे सारे ही हैं कहे। अगले समास में ॥५५॥ पंचभूत पृथगाकार से । आगे निरूपित है विस्तार से । पहचानने कारण अत्यादर से । श्रोतां श्रवण करें । ॥५६॥ पंचभौतिक ब्रह्मगोल । जिन्हें समझे यह प्रांजल । दृश्य त्यागकर केवल । वस्तु ही पाते ॥५७॥ महाद्वार पार कीजिये । तब देवदर्शन पाईये। वैसे ही दृश्य यह त्यागिये । जान कर ॥५८॥ इसकारण दृश्य के गर्भ में । पंचभूत है घने । एकता वश आलिंगन पड जाये । दृश्य पंचभूत में ॥५९॥एवं पंचभूतों के ही दृश्य । सृष्टि रची सावकाश । श्रोता कर अवकाश । श्रवण करें ॥६०॥ इति श्रीदासबोधेगुरुशिष्यसंवादे सूक्ष्मपंचभूतनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : December 06, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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