हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|भीमदशक| ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥ भीमदशक ॥ समास पहला - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - चत्वारदेवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - सिकवणनिरूपणनामः ॥ ॥ समास चौथा - विवेकनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - महंतलक्षणनाम ॥ ॥ समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अंतरात्माविवरणनाम ॥ ॥ समास नववां - उपदेशनाम ॥ ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥ भीमदशक - ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥ ३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ मूर्ख एकदेशी रहता । चतुर सर्वत्र देखता । जैसे बहुधा होकर भोगता । नाना सुख ॥१॥ वही अंतरात्मा महंत । वह क्यों होगा संकुचित । प्रशस्त जानकार समस्त । विख्यात योगी ॥२॥ कर्ता भोक्ता तत्त्वता । भूमंडल पर सर्व सत्ता । उससे अलग उसका ज्ञाता । देखो तो कौन ॥३॥ महंत हों इस प्रकार । खोजकर लें सर्व सार । न मिले खोजने पर । एकाएक ॥४॥ कीर्तिरूप में उदंड ख्यात । जानते छोटे बड़े समस्त । वेष देखें तो शाश्वत । एक भी नहीं ॥५॥ प्रगट कीर्ति ढलेना । बहुत लोगों को समझेना । देखने जाओ तो मिलेना । क्या है कैसा ॥६॥ वेषभूषण वह दूषण । कीर्तिभूषण वह भूषण । मंथन बिन एक भी क्षण । गवायें ना ॥७॥ त्यागें परिचित जन । सर्वकाल नित्यनूतन । लोग खोजकर देखते मन । मगर इच्छा दिखेना ॥८॥ पूर्ता किसी को देखे ना । पूर्ता किसी से बोले ना । पूर्ता एक स्थल पर रहे ना । जाता उठकर ॥९॥गंतव्य स्थल वह कहे ना । कहे तो फिर वहां जाये ना । निज स्थिति का अनुमान भी ना । होने दे ॥१०॥लोगों ने किये वह गलत ठहराये । लोगों को भाये वह पलटाये । लोगों के तर्क को दिखाये । निर्फल बनाकर ॥११॥ लोगों को दर्शन का आदर । वहां इसका अनादर । लोग सर्वकाल तत्पर । वहां इसकी अनिच्छा ॥१२॥ एंव कल्पना में कल्पेना । तर्क में तर्के ना । कदापि भाव में भावे ना । योगेश्वर ॥१३॥ ऐसा अंतरंग मिलेना । शरीर से एक जगह पर रहेना । क्षण एक थमे ना । कथाकीर्तन ॥१४॥ लोग संकल्पविकल्प करते । वे सारे ही निर्फल होते । जनों से जनों की वृत्ति लजाये । तब योगेश्वर ॥१५॥बहुतों ने ढूंढकर देखा । बहुतों के मन को भाया । तभी फिर जानो साधा । महत्कृत्य ॥१६॥ अखंड एकांत सेवन करें । अभ्यास करते ही जायें । काल सार्थक ही करें । जनों के साथ ॥१७॥ उत्तम गुण उतने लें । लेकर जनों को सिखलायें । उदंड समुदाय करें । मगर गुप्त रूप में ॥१८॥ कार्य की तत्परता अखंड । उपासना में लगाये जग । लोग समझकर तब । चाहते आज्ञा ॥१९॥ पहले कष्ट फिर फल । कष्ट ही नहीं वह निर्फल । उद्योग बिना केवल । वृथा पुष्ट ॥२०॥ लोग बहुत ढूंढे । उनके अधिकार जानें । जान जानकर रखें । निकट दूर ॥२१॥ अधिकारानुसार कार्य होता । अधिकार बिना व्यर्थ जाता । जानकर खोजें चित्त । नाना प्रकार से ॥२२॥अधिकार देख कार्य सौंपे । साक्षेप देख विश्वास करें । अपना मगज रखें । कुछ तो ॥२३॥ यह प्रचिति का बोला गया । पहले किया फिर कहा । मानें तो फिर लेना । चाहिये किसी एक ने ॥२४॥महंत मंहत करें । युक्ति बुद्धि से भरें । ज्ञाता वितरित करें । नाना देशों में ॥२५॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे निस्पृहवर्तणुकनाम समास दसवां ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : December 05, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP