हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|भीमदशक| ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥ भीमदशक ॥ समास पहला - सिद्धांतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - चत्वारदेवनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - सिकवणनिरूपणनामः ॥ ॥ समास चौथा - विवेकनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - महंतलक्षणनाम ॥ ॥ समास सातवां - चंचलनदीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अंतरात्माविवरणनाम ॥ ॥ समास नववां - उपदेशनाम ॥ ॥ समास दसवां - निस्पृहवर्तणुकनाम ॥ भीमदशक - ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥ ३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पाचवा - राजकारणनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ कर्म किया हुआ ही करें । ध्यान धरा हुआ ही धरें । विवरण किया हुआ करें । पुनः निरूपण में ॥१॥ वैसे ही हमारे साथ हुआ । कहा हुआ ही कहना पड़ा । क्योंकि जो बिगड़ा वही पाना । चाहिये समाधान ॥२॥ अनन्य रहे समुदाय । इतर जनों में उपजे भाव । ऐसा है अभिप्राय । उपाय का ॥३॥ मुख्य हरिकथानिरूपण । दूसरा बह राजकारण । तीसरा वह सावधपन । सर्वविषयक ॥४॥ चौथा अत्यंत साक्षेप । निरसन करें नाना आक्षेप । अन्याय बडा अथवा अल्प । क्षमा करते रहें ॥५॥जानिये परों का अंतर । उदासीनता निरंतर । नीतिन्याय से अंतर । होने ही न दें ॥६॥ संकेत से लोग आकृष्ट करें । हर एक को प्रबोधित करें । प्रपंच भी सवारें । यथानुशक्ति ॥७॥ प्रपंच समय पहचानें । धीरज बहुत रखें । संबंध बढ़ने ना दें । अति परिचय से ॥८॥ उपाधि का विस्तार करें । उपाधि में न फंसें । नीचत्व पहले ही स्वीकार करें । और मूर्खता भी ॥९॥ दोष देखकर ढाँके । अवगुण अखंड ना कहें । दुर्जन दिखें तो छोड़ दें । परोपकार करके ॥१०॥ सनकी ना ही बनें । नाना उपाय सोचें । असंभव कार्य संभव करें । दीर्घ प्रयत्नों सें ॥११॥ समुदाय टूटने से बचायें । प्रसंग आने पर सवारें । अतिवाद ना करें। किसी से भी ॥१२॥ दूसरों का अभीष्ट' जानें । बहुतों का बहुत सहें । सहन ना हो फिर प्रयाण करें । दिगंतर में ॥१३॥ दुःख दूसरों के जानें । सुनकर फिर बांट लें । भला बुरा सहन करें । समुदाय का ॥१४॥ पठन करें अपार । सन्निध ही रहें विचार । सदा सर्वदा तत्पर । परोपकार के लिये ॥१५॥ शांति करके करवायें । सनक छोड़कर छुडवायें । क्रिया करके करवायें । बहुतों से ॥१६॥ करना हो अगर अपाय । फिर भी बोलकर न दिखायें । परस्पर ही प्रत्यय । प्रचीति में लायें ॥१७॥ जो बहुतों का सहे ना । उसे बहुत लोग मिलेना । सारा ही सहने पर भी रहेना । महत्त्व अपना ॥१८॥राजकारण बहुत करें । मगर पता ही न लगने दें । परपीडा पर ना रहें । अंतःकरण ॥१९॥ लोग परखकर त्यागें । चतुराई से अभिमान दूर करें । पुनः उन्हें जोड लें । जिनसे हुआ अंतर ॥२०॥चिढ़खोर को दूर धरें । बकवासी से बात ना करें । संबंध आने पर छोड़कर जायें । दूसरी जगह ॥२१॥ ऐसा है राजकारण । कहने के लिये वह असाधारण । सुचित रहे अंतःकरण । तभी राजकारण समझे ॥२२॥ वृक्षारुढ को उठायें । युद्धकर्ता को ढकेल दें । कारोबार का कैसे कहे । उचित ढंग ॥२३॥ खोजने पर मिलेना । कीर्ति बताने पर भी ठहरेना । मिले वैभव की अभिलाषा धरेना । कभी भी ॥२४॥एक का पक्ष लें । दूसरों का द्वेष करे । नहीं लक्षण ये । चातुर्य के ॥२५॥ न्याय कहने पर भी मानेना । आत्महित समझेना । यहां कुछ भी चलेना । त्याग के बिना ॥२६॥श्रोताओं ने समझकर आक्षेप किया । इस कारण कहा हुआ ही कहा । न्यूनपूर्ण क्षमा करना । चाहिये श्रोताओं ने ॥२७॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे राजकारणनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : December 05, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP