भीमदशक - ॥ समास तीसरा - सिकवणनिरूपणनामः ॥

३५० वर्ष पूर्व मानव की अत्यंत हीन दीन अवस्था देख, उससे उसकी मुक्तता हो इस उदार हेतु से श्रीसमर्थ ने मानव को शिक्षा दी ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
बहुत जन्मों का अंत । नरदेह मिले अकस्मात् । यहां आचरण करें नेक । नीतिन्याय से ॥१॥
प्रपंच करें नेमस्त । देखें परमार्थ विवेक । जिससे उभय लोक । संतुष्ट होते ॥२॥
शत वर्षों की आयु की निश्चित । उसमें बचपन अज्ञान में बीता । तारुण्य सारा व्यतीत हुआ । विषयों में ॥३॥
वृद्धायु में नाना रोग । भोगने पडे कर्मभोग । अब भगवान का योग । आयेगा कब ॥४॥
राजिक दैविक उद्वेग चिंता । अन्न वस्त्र देह ममता । नाना प्रसंगों में अचानक बीता । जन्म सारा ॥५॥
लोग मरते ही रहते । पितृजन गये यह प्रचिती । जानते जानते भी शाश्वति । किस बात की माने ॥६॥
अग्नि गृह में लगा । और निश्चिंत सोता रहा। उसे कैसे कहें भला । आत्महत्यारा ॥७॥
पुण्यमार्ग सारा डूबा । पापसंग्रह उदंड हुआ । यमयातना का झटका । है कठिन ॥८॥
फिर अब ना करें ऐसे । आचरण करें बहुत विवेक से । इहलोक और परलोक सधे जिससे । दोनों ओर ॥९॥
आलस्य का फल नकद । जंभाई देकर आये नींद । सुख समझ आलस पसंद । करते हैं लोग ॥१०॥
उद्योग करते कष्ट होते । मगर आगे सुख पाते । खाते पीते सुखी होते । यत्न करके ॥११॥
आलस उदास घात करता । आलस प्रयत्नों को डुबाता । आलस से प्रकट होता । अभागेपन के चिन्ह ॥१२॥
इस कारण आलस न करें । तभी वैभव प्राप्त करें । जीव को अरत्र परत्र में । समाधान होता ॥१३॥
करें प्रयत्न । इसका सुनो निरूपण । सावध कर अंतःकरण । निमिष एक ॥१४॥
प्रातःकाल में उठें । कुछ पठन करें । यथानुशक्ति स्मरण करें । सर्वोत्तम का ॥१५॥
फिर दिशा की ओर जायें । जो किसी को भी पता ना होये । शौच्य आचमन करें । निर्मल जल से ॥१६॥
मुखमार्जन प्रातः स्नान । संध्यातर्पण देवतार्चन । आगे वैश्वदेवउपासन । यथाकथन ॥१७॥
कुछ फलाहार करें। फिर संसार धंधा करें । सुशब्दों से राजी रखें । सकल लोक ॥१८॥
जिसका हो जो व्यापार । उसमें रहें खबरदार । दुश्चित रहे अगर । तो बच्चा भी चक्कर में डाले ॥१९॥
चूके फंसे भूले खोये । चिढता जब याद आये । दुश्चित और आलस की ये । रोकडी प्रचीत ॥२०॥
इस कारण सावधान । सदा एकाग्र रखें मन । तभी किया भोजन । मीठा लगे ॥२१॥
फिर पश्चात भोजन के । कुछ पढ़ें चर्चा करें । एकांत में जाकर विवरण करें । नाना ग्रंथों का ॥२२॥
तभी प्राणी सयाना बनता । अन्यथा मूर्ख ही रहता । लोग खाते स्वयं देखता । दीनता से ॥२३॥
सुनो सदैवपन के लक्षण । रिक्त जाने न दें एक क्षण । प्रपंचव्यवसाय का ज्ञान । देखें अच्छी तरह ॥२४॥
कुछ कमाता फिर खाता । उलझे लोगों को सुलझाता । शरीर का सार्थक करता । कुछ तो ॥२५॥
कुछ धर्मचर्चा पुराण । हरिकथा निरूपण । व्यर्थ ना जाने दें एक क्षण । दोनों ओर ॥२६॥
ऐसा जो सर्वसावध । उसे कैसा होगा खेद । विवेक से टूटा संबंध । देहबुद्धि का ॥२७॥
जो है सारा देव का । ऐसा वर्तन निश्चय का । मूल टूटे उद्वेग का । इस प्रकार ॥२८॥
प्रपंच में चाहिये सुवर्ण । परमार्थ में पंचीकरण । महावाक्य का विवरण । करते ही हो मुक्त ॥२९॥
कर्म उपासना और ज्ञान । इससे रहे समाधान । परमार्थ का जो साधन । वहीं सुनते जायें ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सिकवणनिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥

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Last Updated : December 05, 2023

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