सगुणपरीक्षा - ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥

श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
आगे विदेश गया । प्राणी व्यासंग में लगा । अपने जीव से सहा । नाना श्रम ॥१॥
ऐसा दुस्तर संसार । करते हुये कष्ट अपार । आगे दो । चार संवत्सर । कमाया द्रव्य ॥२॥
फिर से देश आया वापस । देश बना था सूखाग्रस्त । मनुष्यों को उस कारणवश । हुये बहुत कष्ट ॥३॥
एक के गाल चपक गये । किसी के नेत्र मिट गये । कोई थरथर कांपने लगे । दीनता से ॥४॥
कोई बैठे दीन रूप । एक सूजा एक हुआ मृत । ऐसे दिखे कन्यापुत्र । दृष्टि से अकस्मात् ॥५॥
इससे बहुत दुःखी हुआ । देखने पर कंठ अवरुद्ध हुआ । प्राणी आक्रोश करने लगा । दीन होकर ॥६॥
तब वे सब सचेत हुये । बाबा बाबा खाना दो कहने लगे । अन्न के लिये तडपने लगे । झपटे उस पर ॥७॥
गठरी खोलकर देखते । जो लगा हांथ वही खाते । कुछ मुंह में कुछ हाथ में । प्राण निकल जाते ॥८॥
तत्परता से खाना खिलाये । तो खाते खाते कुछ मर गये । जो ज्यादा खाये । वे भी मर गये अजीर्णता से ॥९॥
ऐसे बहुतेक मर गये । एक दो बच्चे बच गये । वे भी अनाथ हो गये । अपने मां के बिना ॥१०॥
ऐसा अकाल आया । जिससे घर ही डूब गया । आगे देश में सुकाल आया । अत्याधिक ॥११॥
बच्चों का नहीं कोई पालनकर्ता । अन्न अपने हाथ से पकाता । चित्त में बहुत दुःख होता । रसोई का ॥१२॥
लोगों ने आग्रह किया । तब पुनः विवाह किया । जो था द्रव्य खर्च किया । विवाह के लिये ॥१३॥
पुनः विदेश में गया । द्रव्य कमाकर लाया । तब घर में कलह शुरू हुआ । सौतेले बच्चों से ॥१४॥
स्त्री हुई रजवंती । मगर बच्चों से नहीं पटती । भर्तार की गई शक्ति । हो गया वृद्ध ॥१५॥
सदा झगड़ा बच्चों का । कोई न सुने किसी का । अत्यंत प्रीति की वनिता । प्रीतिपात्र ॥१६॥
मन में बैठा किंत । रह ना पाये एकसाथ । पांच जनों को किया एकत्रित । इस कारण ॥१७॥
पंच बंटवारा करते । मगर पुत्र उसे ना मानते । न्याय ना हुआ अंत में । झगडने लगे ॥१८॥
बाप बेटों में हुआ झगड़ा । बेटों ने बाप को पीटा । तब जोर जोर से माता । चिल्लाने लगी ॥१९॥
सुनकर आये लोग । खडे देखते कौतुक । काम में आये देख । बेटे बाप के ॥२०॥
मन्नत मांगी जिनके कारण । कष्ट किये जिनके कारण । पिता को वह संतान । मारती देखो ॥२१॥
हुआ ऐसा पाप कलह । सभी करते आश्चर्य । नगरलोगों ने छुडाया कलह । खड़े वहां ॥२२॥
आगे बैठकर पांच जन । किया बंटवारा तत्समान । बाप बेटों के बीच अनबन । वह भी मिटा दी ॥२३॥
बाप को अलग किया । झोपडा बांधकर दिया । मन कांता का लग गया । स्वार्थबुद्धि में ॥२४॥
कांता तरुण पुरुष वृद्ध । दोनों में हुआ संबंध । खेद त्यागकर आनंद । मान लिया उसे भी ॥२५॥
मिली स्त्री सुंदर । गुणवती और चतुर । कहे मेरा भाग्य अपार । वृद्धावस्था में ॥२६॥
ऐसा आनंद मान लिया । दुःख सब ही बिसर गया । तब बलवा हुआ । आया परचक्र ॥२७॥
अकस्मात् पडा डाका । बंदी बनाकर ले गये कांता । गहने और सामान भी लूटा । प्राणी का ॥२८॥
दुःख भारी उस से । करे रूदन जोर जोर से । मन में याद आते ही जैसे । सुंदरी गुणवती की ॥२९॥
तब उसकी आई वार्ता । भ्रष्ट हुई तुम्हारी कांता । सुनकर देह गिरता । पृथ्वी पर ॥३०॥
दायें बायें तड़पता । आंखों से पानी झरता । याद आते ही चित्त दग्ध होता । दुःखानल से ॥३१॥
द्रव्य था कमाया । वह भी विवाह में खर्च हुआ । पत्नी को भी बंदी बनाया। दुराचारियों ने ॥३२॥
मुझे भी बुढापा आया । लडकों ने अलग किया । हे ईश्वर मुझपर छाया । अदृष्ट कैसा ॥३३॥
द्रव्य नहीं कांता नहीं । ठौर नहीं शक्ति नहीं । हे ईश्वर मेरा कोई भी नहीं । तुम्हारे बिन ॥३४॥
पहले ईश्वर नहीं पूजा । वैभव देखकर भूला । प्राणी आखिर पछताया । वृद्धावस्था में ॥३५॥
हुई देह अति जर्जर । सर्वांग रहा सूखा होकर । वात पित्त उभर कर । रुद्ध हुआ कंठ कफ से ॥३६॥
बोलते जिव्हा लडखडाये । कफ से कण्ठ घरघराये । मुख से दुर्गंधि आये । नाक से बहे श्लेष्मा ॥३७॥
गर्दन डुगडुग हिलती । आंखें झर झर गलती । वृद्धावस्था में अवनति । निःसंदेह ॥३८॥
उखड़ी दंत पंक्ति । उससे मुख की हुई पोपली । मुख से लार टपकती । दुर्गंध भरी ॥३९॥
न देख सके आखों से । न सुन सके शब्द कानों से । न बोल सके दीर्घ स्वर से । फूले सांस ॥४०॥
गई पैरों की शक्ति । न बैठ सकते उकडू की स्थिति । अपान द्वार से बजती सीटी । मुंह से जैसे ॥४१॥
क्षुधा सह पाये ना । अन्न समय पर मिले ना । मिले भी तो चबा सकेना । दांत नहीं रहे ॥४२॥
पित्त से पचे ना अन्न । खाते ही करे वमन । वैसे ही जाता निकल । अपान द्वार से ॥४३॥
विष्ठा मूत्र और कफ । वमन किया चारों तरफ । दूर से जाता घुटती सांस । विश्वजनों की ॥४४॥
नाना दुःख नाना व्याधि । बुढापे में भ्रमित बुद्धि । तब भी पूरी ना होती अवधि । आयु की ॥४५॥
पलक भृकुटि के केश । पक कर झड़े निःशेष । सर्वांग में लटकता मांस । चीथड़ों जैसा ॥४६॥
देह सब से परास्त हुई । साथी न रहा कोई । प्राणी मात्र कहते सभी यही । मरता क्यों न ॥४७॥
जिन्हें पोसा जन्म देकर । वे चले गये मुंह मोडकर । आया विषम समय आखिर । प्राणी पर ॥४८॥
बीता तारुण्य गया बल । संसार की इच्छा हुई विकल । हुआ नष्ट भ्रष्ट सकल । शरीर और संपत्ति ॥४९॥
जन्मभर स्वार्थ किया । वह सब व्यर्थ गया । कैसा विषम समय आया । अंतकाल में ॥५०॥
सुख के कारण जूझा । अंत में दुःख से त्रस्त हुआ । आगे फिर धोखा आया । यम यातना का ॥५१॥
जन्म समस्त दुःख का मूल । लगते दुःख के चटके जहल । इस कारण तत्काल । स्वहित करें ॥५२॥
अस्तु ऐसा है वृद्धपन । सकलों को है दारूण । इस कारण जायें शरण । भगवंत को ॥५३॥
वृद्धि समय तत्त्वतः । गर्भ में जो पछतावा था । वहीं फिर से आता । अंतकाल में ॥५४॥
इसलिये पुनः जन्मांतर । प्राप्त माता का उदर । संसार यह अति दुस्तर । वही सम्मुख खडा हुआ ॥५५॥
भगवद्भजन के बिना । जन्मयोनि टले ना । तापत्रयों की वेदना । कही आगे ॥५६॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानिरुपणनाम समास पांचवां ॥५७॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 30, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP