हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|स्वगुणपरीक्षा| ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥ स्वगुणपरीक्षा अनुक्रमणिका ॥ समास पहला - जन्मदुःखनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास चौथा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - आध्यात्मिकताप निरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - आधिभौतिकताप निरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - आधिदैविकतापनाम ॥ ॥ समास नववा - मृत्युनिरुपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - बैराग्यनिरूपणनाम ॥ सगुणपरीक्षा - ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥ श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ आगे विदेश गया । प्राणी व्यासंग में लगा । अपने जीव से सहा । नाना श्रम ॥१॥ ऐसा दुस्तर संसार । करते हुये कष्ट अपार । आगे दो । चार संवत्सर । कमाया द्रव्य ॥२॥ फिर से देश आया वापस । देश बना था सूखाग्रस्त । मनुष्यों को उस कारणवश । हुये बहुत कष्ट ॥३॥एक के गाल चपक गये । किसी के नेत्र मिट गये । कोई थरथर कांपने लगे । दीनता से ॥४॥ कोई बैठे दीन रूप । एक सूजा एक हुआ मृत । ऐसे दिखे कन्यापुत्र । दृष्टि से अकस्मात् ॥५॥ इससे बहुत दुःखी हुआ । देखने पर कंठ अवरुद्ध हुआ । प्राणी आक्रोश करने लगा । दीन होकर ॥६॥ तब वे सब सचेत हुये । बाबा बाबा खाना दो कहने लगे । अन्न के लिये तडपने लगे । झपटे उस पर ॥७॥ गठरी खोलकर देखते । जो लगा हांथ वही खाते । कुछ मुंह में कुछ हाथ में । प्राण निकल जाते ॥८॥ तत्परता से खाना खिलाये । तो खाते खाते कुछ मर गये । जो ज्यादा खाये । वे भी मर गये अजीर्णता से ॥९॥ ऐसे बहुतेक मर गये । एक दो बच्चे बच गये । वे भी अनाथ हो गये । अपने मां के बिना ॥१०॥ ऐसा अकाल आया । जिससे घर ही डूब गया । आगे देश में सुकाल आया । अत्याधिक ॥११॥ बच्चों का नहीं कोई पालनकर्ता । अन्न अपने हाथ से पकाता । चित्त में बहुत दुःख होता । रसोई का ॥१२॥ लोगों ने आग्रह किया । तब पुनः विवाह किया । जो था द्रव्य खर्च किया । विवाह के लिये ॥१३॥ पुनः विदेश में गया । द्रव्य कमाकर लाया । तब घर में कलह शुरू हुआ । सौतेले बच्चों से ॥१४॥ स्त्री हुई रजवंती । मगर बच्चों से नहीं पटती । भर्तार की गई शक्ति । हो गया वृद्ध ॥१५॥ सदा झगड़ा बच्चों का । कोई न सुने किसी का । अत्यंत प्रीति की वनिता । प्रीतिपात्र ॥१६॥ मन में बैठा किंत । रह ना पाये एकसाथ । पांच जनों को किया एकत्रित । इस कारण ॥१७॥ पंच बंटवारा करते । मगर पुत्र उसे ना मानते । न्याय ना हुआ अंत में । झगडने लगे ॥१८॥ बाप बेटों में हुआ झगड़ा । बेटों ने बाप को पीटा । तब जोर जोर से माता । चिल्लाने लगी ॥१९॥ सुनकर आये लोग । खडे देखते कौतुक । काम में आये देख । बेटे बाप के ॥२०॥ मन्नत मांगी जिनके कारण । कष्ट किये जिनके कारण । पिता को वह संतान । मारती देखो ॥२१॥ हुआ ऐसा पाप कलह । सभी करते आश्चर्य । नगरलोगों ने छुडाया कलह । खड़े वहां ॥२२॥ आगे बैठकर पांच जन । किया बंटवारा तत्समान । बाप बेटों के बीच अनबन । वह भी मिटा दी ॥२३॥ बाप को अलग किया । झोपडा बांधकर दिया । मन कांता का लग गया । स्वार्थबुद्धि में ॥२४॥ कांता तरुण पुरुष वृद्ध । दोनों में हुआ संबंध । खेद त्यागकर आनंद । मान लिया उसे भी ॥२५॥ मिली स्त्री सुंदर । गुणवती और चतुर । कहे मेरा भाग्य अपार । वृद्धावस्था में ॥२६॥ ऐसा आनंद मान लिया । दुःख सब ही बिसर गया । तब बलवा हुआ । आया परचक्र ॥२७॥ अकस्मात् पडा डाका । बंदी बनाकर ले गये कांता । गहने और सामान भी लूटा । प्राणी का ॥२८॥ दुःख भारी उस से । करे रूदन जोर जोर से । मन में याद आते ही जैसे । सुंदरी गुणवती की ॥२९॥ तब उसकी आई वार्ता । भ्रष्ट हुई तुम्हारी कांता । सुनकर देह गिरता । पृथ्वी पर ॥३०॥ दायें बायें तड़पता । आंखों से पानी झरता । याद आते ही चित्त दग्ध होता । दुःखानल से ॥३१॥ द्रव्य था कमाया । वह भी विवाह में खर्च हुआ । पत्नी को भी बंदी बनाया। दुराचारियों ने ॥३२॥ मुझे भी बुढापा आया । लडकों ने अलग किया । हे ईश्वर मुझपर छाया । अदृष्ट कैसा ॥३३॥ द्रव्य नहीं कांता नहीं । ठौर नहीं शक्ति नहीं । हे ईश्वर मेरा कोई भी नहीं । तुम्हारे बिन ॥३४॥ पहले ईश्वर नहीं पूजा । वैभव देखकर भूला । प्राणी आखिर पछताया । वृद्धावस्था में ॥३५॥ हुई देह अति जर्जर । सर्वांग रहा सूखा होकर । वात पित्त उभर कर । रुद्ध हुआ कंठ कफ से ॥३६॥ बोलते जिव्हा लडखडाये । कफ से कण्ठ घरघराये । मुख से दुर्गंधि आये । नाक से बहे श्लेष्मा ॥३७॥गर्दन डुगडुग हिलती । आंखें झर झर गलती । वृद्धावस्था में अवनति । निःसंदेह ॥३८॥ उखड़ी दंत पंक्ति । उससे मुख की हुई पोपली । मुख से लार टपकती । दुर्गंध भरी ॥३९॥ न देख सके आखों से । न सुन सके शब्द कानों से । न बोल सके दीर्घ स्वर से । फूले सांस ॥४०॥ गई पैरों की शक्ति । न बैठ सकते उकडू की स्थिति । अपान द्वार से बजती सीटी । मुंह से जैसे ॥४१॥क्षुधा सह पाये ना । अन्न समय पर मिले ना । मिले भी तो चबा सकेना । दांत नहीं रहे ॥४२॥ पित्त से पचे ना अन्न । खाते ही करे वमन । वैसे ही जाता निकल । अपान द्वार से ॥४३॥ विष्ठा मूत्र और कफ । वमन किया चारों तरफ । दूर से जाता घुटती सांस । विश्वजनों की ॥४४॥ नाना दुःख नाना व्याधि । बुढापे में भ्रमित बुद्धि । तब भी पूरी ना होती अवधि । आयु की ॥४५॥ पलक भृकुटि के केश । पक कर झड़े निःशेष । सर्वांग में लटकता मांस । चीथड़ों जैसा ॥४६॥ देह सब से परास्त हुई । साथी न रहा कोई । प्राणी मात्र कहते सभी यही । मरता क्यों न ॥४७॥ जिन्हें पोसा जन्म देकर । वे चले गये मुंह मोडकर । आया विषम समय आखिर । प्राणी पर ॥४८॥ बीता तारुण्य गया बल । संसार की इच्छा हुई विकल । हुआ नष्ट भ्रष्ट सकल । शरीर और संपत्ति ॥४९॥जन्मभर स्वार्थ किया । वह सब व्यर्थ गया । कैसा विषम समय आया । अंतकाल में ॥५०॥ सुख के कारण जूझा । अंत में दुःख से त्रस्त हुआ । आगे फिर धोखा आया । यम यातना का ॥५१॥ जन्म समस्त दुःख का मूल । लगते दुःख के चटके जहल । इस कारण तत्काल । स्वहित करें ॥५२॥अस्तु ऐसा है वृद्धपन । सकलों को है दारूण । इस कारण जायें शरण । भगवंत को ॥५३॥ वृद्धि समय तत्त्वतः । गर्भ में जो पछतावा था । वहीं फिर से आता । अंतकाल में ॥५४॥ इसलिये पुनः जन्मांतर । प्राप्त माता का उदर । संसार यह अति दुस्तर । वही सम्मुख खडा हुआ ॥५५॥भगवद्भजन के बिना । जन्मयोनि टले ना । तापत्रयों की वेदना । कही आगे ॥५६॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानिरुपणनाम समास पांचवां ॥५७॥ N/A References : N/A Last Updated : November 30, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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