सगुणपरीक्षा - ॥ समास दूसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥

श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।

॥ श्रीरामसमर्थ ॥
संसार यही दुःखमूल । लगते दुःख के चटके जहल । पीछे कही तलमल । गर्भवास की ॥१॥
गर्भवास में दुःख हुआ । वह बालक भूल गया । आगे बड़ा होता गया । दिन पर दिन ॥२॥
बचपन में त्वचा कोमल । दुःख होते ही व्याकुल । वाचा नहीं उस काल । सुख दुःख कहने को ॥३॥
देह को हुआ कुछ दुःख । अथवा क्षुधा से पीड़ित । तो वह रोये अत्यंत । परंतु अंतरंग ना समझ पाये ॥४॥
माता करे दुलार ऊपर ऊपर । मगर जो पीडा हुई अंदर । माता समझ न पाये अभ्यंतर । दुःख होता बालक को ॥५॥
रोये सिसक सिसक कर । माता समझाये गोद में लेकर । बेचारे की व्यथा न समझने पर । तडपे है जीव ॥६॥
नाना व्याधियों का जोर । उनसे होता दुःख अपार । रोता गिरता या जलकर । आग से ॥७॥
शरीर की रक्षा ना कर पाये । होते अनेक अपाय । मस्ती करते करते होये । बालक अवयवहीन ॥८॥
अथवा अपाय चूका । तो पूर्वपुण्य सम्मुख आया । माता को पहचानने लगा । दिनों दिन ॥९॥
क्षणभर भी ना दिखे माता । तो चिल्लाये दुःख से रुदन करता । उस समय माता सरीखा । कोई नहीं सिवा माता के ॥१०॥
आशा से बाट जोहे । माता बिन कदा न रहे । पलभर वियोग न सहे । स्मरण होने पर ॥११॥
अगर ब्रह्मादि देव आये । अथवा लक्ष्मी अवलोकन करे । तो भी ना सांत्वन होये । अपनी माता के बिन ॥१२॥
कुरुप अथवा कुलक्षण । या सर्वाधिक अभागापन । तो भी नहीं उस समान । भूमंडल में कोई ॥१३॥
ऐसा वह हीन दीन । दिखे लाचार माता बिन । दुत्कारे अगर क्रोध के कारण । फिर भी रोकर लिपटे उससे ॥१४॥
माता के पास सुख पाता । दूर करते ही तड़पता । उस समय करता । प्रीति अत्यंत माता पर ॥१५॥
तब मृत हुई माता । प्राणी अनाथ हुआ । दुःख से झुरने लगा । माता माता कहकर ॥१६॥
माता ना दिखे दृष्टि से । देखे लोगों को दीनता से । बैठा मन में आस लगा के ऐसे । की माता आयेगी ॥१७॥
माता समझ मुख देखे । तब उसे अपनी माता ना दिखे । तब रहे निरूत्साह से । दीनहीन ॥१८॥
माता वियोग से कष्ट हुआ । उससे मन को दुःख हुआ । देह भी अशक्त हुआ । अत्यंत ॥१९॥
अथवा माता भी बच गई । माता बालक की भेंट हुई । बाल्यावस्था अब पीछे रही । दिनों दिन ॥२०॥
बाल्यावस्था हुई पूर्ण । हुआ सयाना दिनों दिन । तब माता का वह अति आकर्षण । कम हुआ ॥२१॥
आगे छंद लगा खेल का । किया जमघट लडकों का । जीत हार के दांव का । होने लगा आनंद शोक ॥२२॥
मां बाप सिखातें जी जान से । परम दुःख होता उससे । चस्का लगा न छूटे । बाल संगति का ॥२३॥
बच्चों में जब खेलता । न याद आये माता पिता । मगर वहां भी सहसा । आये दुःख ॥२४॥
आंख फूटी दांत टूटा । हुआ लूला पांव टूटा । गई मस्ती आई कुरूपता । निसंदेह ॥२५॥
निकली चेचक और गौर । हुआ कपालशूल आया ज्वर । उदरशूल निरंतर । वायुगोला ॥२६॥
लगे भूत हुई झड़पणी । जल की रानी मायरानी । मुंज्या झोटिंग की करनी । म्हैसोबा की ॥२७॥
बेताल कंकाल' की हुई बाधा । ब्रह्मप्रेत संचार हुआ । अथवा अन्जाने टोटका लांघा । कुछ ना समझे ॥२८॥
बीरदेव कोई कहे । खंडेराव कोई कहे । सब झूठ कोई कहे । यह ब्राह्मणसंमध ॥२९॥
किसी ने की करनी कोई कहे । आई शरीर में देवता कहे । गलती हुई कोई कहे । षटविधि में ॥३०॥
कोई कहे कर्मभोग । शरीर में जडे नाना रोग । वैद्य पंचाक्षरी कुशाग्र । बुलाकर लाये ॥३१॥
यह ना बचेगा कोई कहता । यह ना मरेगा कोई कहता । भोग यातना भोगता । पाप के कारण ॥३२॥
गर्भदुःख भूल गया । त्रिविध तापों से उबल गया । प्राणी बहुत त्रस्त हुआ । संसार दुःख से ॥३३॥
इतना होकर भी बच गया । तो मार मार कर सयाना बनाया । लौकिक दृष्टि से भला बन गया । नाम लेने योग्य ॥३४॥
तब मां बाप लोभ में आकर । विवाह सुझाते संभ्रम में पड़कर । सारा वैभव दिखाकर । दुल्हन देखी ॥३५॥
बाराती हुये एकत्रित । देखकर पाया परम सुख । मन यह हुआ रत । ससुराल में ॥३६॥
मां बाप रहे ऐसे वैसे । मगर ससुराल जाये ठाठ से । द्रव्य न हो तो भी लें । ऋण व्याज से ॥३७॥
अंर्तभाव वह ससुराल में । मां बाप रह गये बेचारे । रहे दुःख में सभी ओर से । उतना ही कार्य उनका ॥३८॥
दुल्हन आने पर घर में । सदा व्यस्त उसके ही विचार में । कहे मेरे जैसा दुनिया में । कोई भी नहीं ॥३९॥
मां बाप भाई बहन । लगते अप्रिय वधू-बिन । हुआ अत्यंत लंपट हीन । अविद्या भुला दिया ॥४०॥
संभोग न होते प्रेम इतना । योग्य होने पर लांघे सीमा । प्रीति बढाये काम वासना । में प्राणी लिप्त हुआ ॥४१॥
न दिखे आखों से पल एक अगर । तभी जीव होता व्यग्र । प्रीतिपात्र अंतर्कला लेकर । गई साथ में ॥४२॥
कोमल कोमल शब्द मंजुल । मर्यादा लज्जा मुखकमल । वक्र अवलोकन से केवल । ग्राम्यता जागृत होयें ॥४३॥
लहर आते ही सम्हले ना । शरीर विकल सवरे ना । अन्यत्र व्यवसाय सूझे ना । हुरहुर होती ॥४४॥
व्यवसाय जब करता बाहर । मन लगा रहता घर पर । क्षण क्षण हो अभ्यंतर । में कामिनी स्मरण ॥४५॥
तुम्हीं मेरे जी में जीव । इस कारण अत्यंत लाघव । प्रस्तुत कर चित्त सर्व । चुरा लिया ॥४६॥
ठग दिखाते अपनापन । फंदा लगाकर लेते प्राण । वैसे आयु के अंतिम क्षण । प्राणी का हाल होता ॥४७॥
प्रीति लगी कामिनी से । अगर उसपर क्रोध करे । तो परम क्षति माने । मन ही मन में ॥४८॥
भार्या का पक्ष लेकर । मां बाप को नीच उत्तर । तिरस्कार से देकर । होता अलग ॥४९॥
स्त्री कारण छोड़ी लाज । स्त्री कारण त्यागे मित्र । स्त्री कारण बिगाड़े संबंध । सभी आप्तजनों से ॥५०॥
स्त्री कारण शरीर बेचा । स्त्री कारण सेवक हुआ । स्त्री कारण छोड़ दिया । विवेक भी ॥५१॥
स्त्री कारण लंपटता । स्त्री कारण अतिनम्रता । स्त्री कारण पराधीनता । अंगीकार ली ॥५२॥
स्त्री कारण लोभी हुआ । स्त्री कारण धर्म छोड़ा । दूर हुआ स्त्री कारण । तीर्थ । यात्रा स्वधर्म से ॥५३॥
स्त्री कारण सर्वथा कभी । शुभाशुभ विचार किया नहीं । तन मन धन सर्व ही । किया अर्पित अनन्यभाव से ॥५४॥
स्त्री कारण परमार्थ डुबाया । प्राणी ने स्वहित छोड़ा । ईश्वर से विमुख हुआ । स्त्री कारण कामबुद्धि से ॥५५॥
स्त्री कारण छोड़ी भक्ति । स्त्री कारण छोडी विरक्ति । स्त्री कारण सायुज्यमुक्ति । वह भी तुच्छ मान ली ॥५६॥
एक स्त्री के कारण। ब्रह्मांड को भी माना हीन । आप्तजन भी शत्रु समान । लगने लगे ॥५७॥
जड़ी ऐसी अंतरप्रीत । किया सर्वस्व का त्याग । तब अकस्मात् देहांत । हुआ उस भार्या का ॥५८॥
जिससे मन में शोक बढ़ा । कहे बडा आघात हुआ । हाय कैसा डूब गया । संसार मेरा ॥५९॥
आप्तजनों का छोडा संग । अकस्मात् हुआ घरभंग । अब करूं मायात्याग । कहे दुःख से ॥६०॥
स्त्री को करके आड़े । छाती पीटे पेट पीटे । लज्जा छोड कर गुण गाये । लोग देखते ॥६१॥
कहे उजड़ गया मेरा घर । अब न करूंगा संसार । दुःख से आक्रोश अपार । घोर घोष करे ॥६२॥
उससे जीव भ्रमिष्ट हुआ । सर्वस्य से उब गया । उस दुःख से बन गया । जोगी या महात्मा ॥६३॥
अथवा घर छोड़ना चूक गया । तो पुनः वैसे ही विवाह किया । तब अत्यंत मग्न हुआ । मन दूसरे संबंध में ॥६४॥
हुआ द्वितीय संबंध जब । मनाया सब ने आनंद । श्रोताओं होना सचेत । अगले समास के लिये ॥६५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानाम समास दूसरा ॥२॥

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Last Updated : November 30, 2023

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