हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|स्वगुणपरीक्षा| ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ स्वगुणपरीक्षा अनुक्रमणिका ॥ समास पहला - जन्मदुःखनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास चौथा - सगुणपरीक्षानाम ॥ ॥ समास पांचवा - सगुणपरीक्षानिरुपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - आध्यात्मिकताप निरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - आधिभौतिकताप निरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवा - आधिदैविकतापनाम ॥ ॥ समास नववा - मृत्युनिरुपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - बैराग्यनिरूपणनाम ॥ सगुणपरीक्षा - ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ दूसरा संबंध हुआ । विगत दुःख भूला । सुख मानकर रहा । संसार का ॥१॥ बना अत्यंत कृपण । न खाये पेटभर अन्न । पैसों के कारण त्यागे प्राण । एकसाथ ॥२॥ न खर्च करे कभी कल्पांत में । संचित हुआ पुनः संचित करे । कैसी होगी मन में । सद्वासना ॥३॥ स्वयं धर्म ना करे । धर्म कर्ताओं को भी दूर करे । सर्वकाल निंदा करे । साधुजनों की ॥४॥ न जाने तीर्थ न जाने व्रत । ना जाने अतिथि अभ्यागत । चींटी के मुख का जो संचित । उसका भी संचय करे ॥५॥ स्वयं पुण्य करे ना । करे कोई तो देख सके ना । उपहास करे मन माने ना । इस कारण ॥६॥ देव भक्तों का करे उच्छेद । शरीर बल से दे सब को खेद । निष्ठुर शब्दों से अंतर भेद । करे प्राणि मात्रों के ॥७॥ नीति छोड़कर पीछे । अनीति का व्यवहार करे । गर्व धरकर फूले । सर्वकाल ॥८॥ पूर्वजों को धोखा देता । पक्ष श्राद्ध भी न करता । कुलदेवता को भी ठगाता । किसी भी तरह से ॥९॥ बहन की बनाये सुहागन । जीजा को बनाये ब्राह्मण । आया था जो बनके मेहमान । स्त्री को ले जाने के लिये ॥१०॥प्रिय न लगे कभी हरिकथा । देव न चाहे सर्वथा । कहे स्नान संध्या वृथा । क्यों करे ॥११॥ अभिलाषा से जमाये वित्त । करे स्वयं विश्वासघात । मद से हुआ अति उन्मत्त । यौवनवश ॥१२॥ शरीर पर यौवन छाया । अनुचित धैर्य धारण किया । अकरनी जी वही किया । महापाप ॥१३॥स्त्री बनाई अल्पवयस्क । धीरज ना रख पाये मन । अंत में विषय लोभ के कारण । पहचान भूल गया ॥१४॥ मां बहन का न करे विचार । हुआ पापी परद्वार पर । दंडित हुआ राजद्वार पर । तब भी सुधरे ना ॥१५॥परस्त्री को देखते ही दृष्टि से । अभिलाषा जगे मन में ऐसे । उसे ना पाने से । दुःखी होता पुनः ॥१६॥ ऐसे पाप उदंड किये । शुभाशुभ नहीं रहे । ऐसे दोषों से दुःख भरे । शरीर में अकस्मात् ॥१७॥ व्याधिग्रस्त हुआ सर्वाग ही । प्राणि हुआ क्षयरोगी । किये दोष भोगे स्वयं ही । शीघ्र काल में ॥१८॥ दुःख से सर्वांग फूटा । नाक पूरा झड़ गया। सुलक्षणों का अंत हुआ । हुआ कुलक्षणी ॥१९॥ देह हुआ क्षीण । नाना व्यथा हुई निर्माण । तारुण्य शक्ति हो गई कम । हुआ कमजोर प्राणी ॥२०॥वेदनाग्रस्त सारा शरीर । देह हो गई जर्जर । प्राणि कांपे थरथर । शक्तिहीन हुआ ॥२१॥ हस्तपादादि गल गये । सर्वांग में कीडे भर गये । देखकर थूकने लगे । छोटे बडे ॥२२॥ विष्ठा होने लगी बारबार । उससे उठे दुर्गंध अपार । प्राणि हुआ अति जर्जर । न बचे जीव ॥२३॥ अब मृत्यु दो हे ईश्वर । हुये कष्ट जीव को अपार । मेरे पापों का ढेर । खत्म नहीं हुआ क्या ॥२४॥ दुःख से रोये फूट फूटकर । ज्यों ज्यों देखे अपना शरीर । तब बेचारा दीन होकर । तडपने लगा ॥२५॥ ऐसे कष्ट हुये बहुत । सभी हुआ हताहत । डाका डालकर वित्त । चोर ले गयें ॥२६॥ न मिला अरत्र ना परत्र । हुआ प्रारब्ध विचित्र । स्वयं ही अपना मल मूत्र । करे सेवन दुःख से ॥२७॥ पाप सामग्री खत्म हुई । दिनों दिन व्यथा कम हुई । वैद्य ने औषधि दी । उपचार हुआ ॥२८॥ मरते मरते बच गया । इसका पुनर्जन्म हुआ । लोग कहे लौट आया । मनुष्यों में ॥२९॥ दुसरी स्त्री ले आया । पुनः घर संसार बसाया । अति स्वार्थबुद्धि में फंस गया । पहले की तरह ॥३०॥ कुछ धन कमाया । पुनः सकल संचित हुआ । परंतु घर डूब गया । संतान नहीं ॥३१॥ पुत्र संतान न होने से दुःख । बांझ कहने लगे लोग । वह न मिटे इस कारण कन्या एक । तो भी हो अब ॥३२॥ इसलिये नाना मेहनत खटपट । बहुत देवों से मांगी मन्नत । तीर्थ उपवास व्रत । धरना पारणा करने लगा ॥३३॥ विषयसुख तो गया । बांझपन ने दुखी किया । तब देव प्रसन्न हुआ । वृद्धि हुई ॥३४॥ उस बालक पर अत्यंत प्रीति । दोनो ना भूलते एक क्षण भी । रोने लगते होने से कुछ भी । दीर्घ स्वर से ॥३५॥ ऐसे वे होकर दुखित । पूजा करते नाना दैवत । तब वह भी मरे अकस्मात् । पूर्व पाप के कारण ॥३६॥ उससे बहुत दुःख हुआ । घर में अधेरा छा गया । कहे हमें क्यों रखा । हे ईश्वर बांझ करके ॥३७॥ हम द्रव्य का क्या करें । वह जाये पर संतान आये । छोडेंगे संतान के लिये । सब कुछ ॥३८॥ बांझपन अभी तो गया । तो मरतबांझ नाम हुआ । कुछ भी करो वह ना मिटा । आक्रोश करते दुःख से ॥३९॥ हमारी वंशबेल क्यों टूटी । हे ईश्वर डूबी वृत्ति । कुलस्वामिनि क्यों रूठी । बुझ गया कुलदीपक ॥४०॥ अब पुत्र मुख देखूंगा । तो खुशी से अंगारो पर चलूंगा । और जिव्हा भी गल से छेदूंगा । कुलस्वामिनि समक्ष ॥४१॥ माता तेरी पूजा करूंगा । केरपूजा नाम रखूंगा । उसकी नाक में नकेल पहनाऊंगा । मनोरथ पूर्ण करो ॥४२॥ बहुत देवताओं से मांगी मन्नत । बहुत ढूंढे साधु संत । निगल गया गटागट । सारे बिच्छु ॥४३॥ किये राक्षसी उपाय । बहुत पूजे देव । ब्राह्मण को केले नारियल । आम्रदान किये ॥४४॥ किये नाना तंत्र मंत्र । पुत्र लोभ से किये प्रयत्न । फिर भी भाग्य विपरीत । पुत्र नहीं ॥४५॥ वृक्षतले किया स्नान । फलते पेड़ों को लगाया अग्न । ऐसे नाना पाप कर्म । किये पुत्र लोभ के कारण ॥४६॥ छोड़कर सकल वैभव । उसके धुन में पागल जीव । तब प्रसन्न वह खंडेराव । और कुलस्वामिनी ॥४७॥ पूर्ण हुये मनोरथ । स्त्री पुरुष हुये आनंदित । होकर श्रोता सावध । आगे अवधान दें ॥४८॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : November 30, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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