सगुणपरीक्षा - ॥ समास तीसरा - सगुणपरीक्षानाम ॥

श्रीमत्दासबोध के प्रत्येक छंद को श्रीसमर्थ ने श्रीमत्से लिखी है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
दूसरा संबंध हुआ । विगत दुःख भूला । सुख मानकर रहा । संसार का ॥१॥
बना अत्यंत कृपण । न खाये पेटभर अन्न । पैसों के कारण त्यागे प्राण । एकसाथ ॥२॥
न खर्च करे कभी कल्पांत में । संचित हुआ पुनः संचित करे । कैसी होगी मन में । सद्वासना ॥३॥
स्वयं धर्म ना करे । धर्म कर्ताओं को भी दूर करे । सर्वकाल निंदा करे । साधुजनों की ॥४॥
न जाने तीर्थ न जाने व्रत । ना जाने अतिथि अभ्यागत । चींटी के मुख का जो संचित । उसका भी संचय करे ॥५॥
स्वयं पुण्य करे ना । करे कोई तो देख सके ना । उपहास करे मन माने ना । इस कारण ॥६॥
देव भक्तों का करे उच्छेद । शरीर बल से दे सब को खेद । निष्ठुर शब्दों से अंतर भेद । करे प्राणि मात्रों के ॥७॥
नीति छोड़कर पीछे । अनीति का व्यवहार करे । गर्व धरकर फूले । सर्वकाल ॥८॥
पूर्वजों को धोखा देता । पक्ष श्राद्ध भी न करता । कुलदेवता को भी ठगाता । किसी भी तरह से ॥९॥
बहन की बनाये सुहागन । जीजा को बनाये ब्राह्मण । आया था जो बनके मेहमान । स्त्री को ले जाने के लिये ॥१०॥
प्रिय न लगे कभी हरिकथा । देव न चाहे सर्वथा । कहे स्नान संध्या वृथा । क्यों करे ॥११॥
अभिलाषा से जमाये वित्त । करे स्वयं विश्वासघात । मद से हुआ अति उन्मत्त । यौवनवश ॥१२॥
शरीर पर यौवन छाया । अनुचित धैर्य धारण किया । अकरनी जी वही किया । महापाप ॥१३॥
स्त्री बनाई अल्पवयस्क । धीरज ना रख पाये मन । अंत में विषय लोभ के कारण । पहचान भूल गया ॥१४॥
मां बहन का न करे विचार । हुआ पापी परद्वार पर । दंडित हुआ राजद्वार पर । तब भी सुधरे ना ॥१५॥
परस्त्री को देखते ही दृष्टि से । अभिलाषा जगे मन में ऐसे । उसे ना पाने से । दुःखी होता पुनः ॥१६॥
ऐसे पाप उदंड किये । शुभाशुभ नहीं रहे । ऐसे दोषों से दुःख भरे । शरीर में अकस्मात् ॥१७॥
व्याधिग्रस्त हुआ सर्वाग ही । प्राणि हुआ क्षयरोगी । किये दोष भोगे स्वयं ही । शीघ्र काल में ॥१८॥
दुःख से सर्वांग फूटा । नाक पूरा झड़ गया। सुलक्षणों का अंत हुआ । हुआ कुलक्षणी ॥१९॥
देह हुआ क्षीण । नाना व्यथा हुई निर्माण । तारुण्य शक्ति हो गई कम । हुआ कमजोर प्राणी ॥२०॥
वेदनाग्रस्त सारा शरीर । देह हो गई जर्जर । प्राणि कांपे थरथर । शक्तिहीन हुआ ॥२१॥
हस्तपादादि गल गये । सर्वांग में कीडे भर गये । देखकर थूकने लगे । छोटे बडे ॥२२॥
विष्ठा होने लगी बारबार । उससे उठे दुर्गंध अपार । प्राणि हुआ अति जर्जर । न बचे जीव ॥२३॥
अब मृत्यु दो हे ईश्वर । हुये कष्ट जीव को अपार । मेरे पापों का ढेर । खत्म नहीं हुआ क्या ॥२४॥
दुःख से रोये फूट फूटकर । ज्यों ज्यों देखे अपना शरीर । तब बेचारा दीन होकर । तडपने लगा ॥२५॥
ऐसे कष्ट हुये बहुत । सभी हुआ हताहत । डाका डालकर वित्त । चोर ले गयें ॥२६॥
न मिला अरत्र ना परत्र । हुआ प्रारब्ध विचित्र । स्वयं ही अपना मल मूत्र । करे सेवन दुःख से ॥२७॥
पाप सामग्री खत्म हुई । दिनों दिन व्यथा कम हुई । वैद्य ने औषधि दी । उपचार हुआ ॥२८॥
मरते मरते बच गया । इसका पुनर्जन्म हुआ । लोग कहे लौट आया । मनुष्यों में ॥२९॥
दुसरी स्त्री ले आया । पुनः घर संसार बसाया । अति स्वार्थबुद्धि में फंस गया । पहले की तरह ॥३०॥
कुछ धन कमाया । पुनः सकल संचित हुआ । परंतु घर डूब गया । संतान नहीं ॥३१॥
पुत्र संतान न होने से दुःख । बांझ कहने लगे लोग । वह न मिटे इस कारण कन्या एक । तो भी हो अब ॥३२॥
इसलिये नाना मेहनत खटपट । बहुत देवों से मांगी मन्नत । तीर्थ उपवास व्रत । धरना पारणा करने लगा ॥३३॥
विषयसुख तो गया । बांझपन ने दुखी किया । तब देव प्रसन्न हुआ । वृद्धि हुई ॥३४॥
उस बालक पर अत्यंत प्रीति । दोनो ना भूलते एक क्षण भी । रोने लगते होने से कुछ भी । दीर्घ स्वर से ॥३५॥
ऐसे वे होकर दुखित । पूजा करते नाना दैवत । तब वह भी मरे अकस्मात् । पूर्व पाप के कारण ॥३६॥
उससे बहुत दुःख हुआ । घर में अधेरा छा गया । कहे हमें क्यों रखा । हे ईश्वर बांझ करके ॥३७॥
हम द्रव्य का क्या करें । वह जाये पर संतान आये । छोडेंगे संतान के लिये । सब कुछ ॥३८॥
बांझपन अभी तो गया । तो मरतबांझ नाम हुआ । कुछ भी करो वह ना मिटा । आक्रोश करते दुःख से ॥३९॥
हमारी वंशबेल क्यों टूटी । हे ईश्वर डूबी वृत्ति । कुलस्वामिनि क्यों रूठी । बुझ गया कुलदीपक ॥४०॥
अब पुत्र मुख देखूंगा । तो खुशी से अंगारो पर चलूंगा । और जिव्हा भी गल से छेदूंगा । कुलस्वामिनि समक्ष ॥४१॥
माता तेरी पूजा करूंगा । केरपूजा नाम रखूंगा । उसकी नाक में नकेल पहनाऊंगा । मनोरथ पूर्ण करो ॥४२॥
बहुत देवताओं से मांगी मन्नत । बहुत ढूंढे साधु संत । निगल गया गटागट । सारे बिच्छु ॥४३॥
किये राक्षसी उपाय । बहुत पूजे देव । ब्राह्मण को केले नारियल । आम्रदान किये ॥४४॥
किये नाना तंत्र मंत्र । पुत्र लोभ से किये प्रयत्न । फिर भी भाग्य विपरीत । पुत्र नहीं ॥४५॥
वृक्षतले किया स्नान । फलते पेड़ों को लगाया अग्न । ऐसे नाना पाप कर्म । किये पुत्र लोभ के कारण ॥४६॥
छोड़कर सकल वैभव । उसके धुन में पागल जीव । तब प्रसन्न वह खंडेराव । और कुलस्वामिनी ॥४७॥
पूर्ण हुये मनोरथ । स्त्री पुरुष हुये आनंदित । होकर श्रोता सावध । आगे अवधान दें ॥४८॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणपरीक्षानाम समास तीसरा ॥३॥

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Last Updated : November 30, 2023

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