मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास सातवा - सत्वगुणनाम ॥

इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे कहा तमोगुण । जो दुःखदायक दारुण । अब सुनो सत्वगुण । परम दुर्लभ जो ॥१॥
जो भजन का आधार । जो योगियों का ठौर । जो निरसन करे संसार । दुःख मूल जो ॥२॥
जिससे मिले उत्तम गति । भगवंत की राह खुलती । जिससे प्राप्त हो मुक्ति । सायुज्यता वो ॥३॥
जो भक्तों का आधार । भवार्ण में भरोसा जिस पर । मोक्षलक्ष्मी की धरोहर । यह सत्यगुण ॥४॥
जो परमार्थ का मंडन । जो महंतों का भूषण । रजतम का निरसन । होता जिससे हो ॥५॥
जो परमसुखकारी । जो आनंद की लहरी । देकर बने निवारणकारी । जन्ममृत्यु का ॥६॥
जो अज्ञान का अंत । जो पुण्य का मूलपीठ । जिससे मिलता हो पंथ । परलोक का ॥७॥
ऐसा यह सत्वगुण । देह में प्रकट होते ही स्वयं।  उसके क्रिया के लक्षण । है ऐसे ॥८॥
ईश्वर से प्रेम अधिक। प्रपंच में संपादे लौकिक । सदा सन्निघ विवेक । वह सत्वगुण ॥९॥
संसार दुःख भुलाये । भक्तिमार्ग विमल दिखाये । भजनक्रिया उपजाये । वह सत्वगुण ॥१०॥
परमार्थ प्रति आस्था । उठे भावार्थ की मधुरता । परोपकार में तत्परता । वह सत्वगुण ॥११॥
स्नानसंध्या पुण्यशील । अभ्यंतर से निर्मल । शरीर वस्त्र उज्ज्वल । वह सत्वगुण ॥१२॥
यजन और याजन । अध्ययन और अध्यापन । करे स्वयं दानपुण्य । वह सत्वगुण ॥१३॥
निरुपण प्रति आस्था । जिसे हरिकथा की मधुरता । क्रिया प्रत्यक्ष पलटाता । वह सत्वगुण ॥१४॥
अश्वदान गजदान । गोदान भूमिदान । नाना रत्नों का दान । करे वह सत्वगुण ॥१५॥
धनदान वस्त्रदान । अन्नदान उदकदान । करे ब्राह्मण संतर्पण । वह सत्वगुण ॥१६॥
कार्तिकस्नान माघस्नान । व्रत उद्यापन दान । निष्काम तीर्थ उपोषण । वह सत्वगुण ॥१७॥
सहस्त्रभोजन लक्षभोजन । विविधा प्रकार के दान । निष्कामता से करे सो सत्वगुण । कामना रजोगुण ॥१८॥
तीर्थों में अर्पे जो अग्रार । बांधे कूप सरोवर । बांधे देवालय के शिखर । वह सत्वगुण ॥१९॥
देवद्वार पर धर्मशाला । सीढियां दीपमाला। वृंदावन पीपल चबूतरा । बांधे वह सत्वगुण ॥२०॥
लगाये वन उपवन । पुष्पवाटिका जीवन । शांत करे तपस्वियों का मन । वह सत्वगुण ॥२१॥
संध्यामठ और कंदर । सीढियां नदीतीर पर । भांडारगृह देवद्वार पर । बांध वह सत्वगुण ॥२२॥
नाना देवताओं के जो स्थान । वहां करे नंदादीप प्रज्वलन । करे अर्पण अलंकार आभूषण । वह सत्वगुण ॥२३॥
थाली मृदंग ताल । दमामे नगाड़े ढोल । नाना वाद्यों का कोलाहल । सुस्वरादि ॥२४॥
नाना साम्रगी सुंदर । देवालय में दे जो नर । हरिभजन में जो तत्पर । वह सत्वगुण ॥२५॥
छत्र और सुखासन । ध्वजा पताका निशान । चंवर सूर्यपान करे अर्पण । वह सत्वगुण ॥२६॥
वृंदावन तुलसीवन । रंगमाला सम्मार्जन । ऐसी प्रीति जिसके मन । वह सत्वगुण ॥२७॥
सुंदर नाना उपकरण । मंडप छत्र आसन । देवालय में करे समर्पण । वह सत्वगुण ॥२८॥
देवकारण से खाद्य । नाना प्रकार के नैवेद्य । अपूर्व फल अर्पण करे सद्य । वह सत्वगुण ॥२९॥
ऐसे भक्ति की लगन । नीच दास्यत्व में होये मगन । देवद्वार झाडे स्वयं । वह सत्वगुण ॥३०॥
तिथि पर्व महोत्सव । जिसका वहां अंतर्भाव । काया वाचा मन से सर्व । करे अर्पण वह सत्वगुण ॥३१॥
हरिकथा को तत्पर । गंध माला और बुक्का चूर । लेकर खड़ा निरंतर । वह सत्वगुण ॥३२॥
नर अथवा नारी । यथानुशक्ति सामग्री । खडा देवद्वारी। वह सत्वगुणः ॥३३॥
महत्कृत्य पीछे छोडके । देव समीप दौड़कर आये । भक्ति निकट अंतरंग में । वह सत्वगुण ॥३४॥
बडप्पन को दूर त्यागकर । नीच कृत्यों का करे अंगिकार । बाट जोहता देवद्वार पर । वह सत्वगुण ॥३५॥
देव के लिये उपोषण । बर्जित करे ताम्बूल भाजन । नित्य नेम जप ध्यान । करे वह सदगुण ॥३६॥
शब्द कठिन न बोले । अति नेम से चले । योगी जिसने संतुष्ट कर लिये । वह सत्वगुण ॥३७॥
त्याग कर अभिमान । करे निःकाम कीर्तन । स्वेद रोमांच आता पूर्ण । वह सत्वगुण ॥३८॥
अंदर देव का ध्यान । जिससे हुये साश्रु नयन । हुआ देह का विस्मरण । वह सत्वगुण ॥३९॥
हरिकथा में अत्यंत प्रीति । नहीं कदा विकृति । आदि अंत बढ़ती प्रीति । वह सत्वगुण ॥४०॥
मुख में नाम हांथ से ताली । नाचते गाये बिरुदावली । लेकर लगाये चरण धूलि । यह सत्वगुण ॥४१॥
देहाभिमान जाता गल । विषय वैराग्य प्रबल । मिथ्या माया लगती सकल । वह सत्वगुण ॥४२॥
कुछ तो करें उपाय । संसार में उलझने से क्या होय । ऐसा कहे जिसका हृदय । वह सत्वगुण ॥४३॥
संसार से त्रस्त हो मन । कुछ तो करें भजन । ऐसा उठे मन में ज्ञान । वह सत्वगुण ॥४४॥
रहकर अपने आश्रम । अत्यादर से नित्यनेम । सदा प्रिय लगे राम । वह सत्वगुण ॥४५॥
सभी का आया क्लांत । परमार्थ के जो निकट । आघात से उपजे धीरत्व । यह सत्वगुण ॥४६॥
सर्वकाल उदासीन । नाना भोगों से ऊबे मन । याद करे भगवद्भजन । वह सत्वगुण ॥४७॥
पदार्थों में ना लगे चित्त । मन को स्मरे भगवंत । ऐसा दृढ भावार्थ । वह सत्वगुण ॥४८॥
लोक विकारी कहते । तो भी अधिक प्रेम धरे । निश्चय की दृढता अंतरंग में । यह सत्वगुण ॥४९॥
अंतरंग में स्फूर्ति स्फुरे । सस्वरूपी तर्क भरे । नष्ट संदेह निवारे । वह सत्वगुण ॥५०॥
शरीर लगाये सत्कारण में । उठे साक्षेप अंतःकरण में । कार्य सत्यगुण के । ऐसे हैं ॥५१॥
शांति क्षमा और दया । निश्चय जिसमें उपजा । समझो सत्वगुण आया । अंतरंग में उसके ॥५२॥
आते अतिथि अभ्यागत । उन्हें ना जाने दे क्षुधिस्त । दान देता यथानुशक्त । वह सत्वगुण ॥५३॥
तपस्वी बैरागी दीन । आते आश्रम के शरण । देता उन्हें स्थान । वह सत्वगुण ॥५४॥
आश्रम में अन्न की आपदा । पर विन्मुख ना होते कदा । शक्तिनुसार दे सर्वदा । वह सत्वगुण ॥५५॥
जिसने जीती रसना तृप्त जिसकी वासना । नहीं जिसे कामना । यह सत्वगुण ॥५६॥
होनी तो होकर ही रहती । प्रपंच में आये आपत्ति । डगमगाये ना जिसकी चित्तस्थिति । यह सत्वगुण ॥५७॥
एक ईश्वर के लिये । जिसने सर्व सुख त्याग दिये । देह की ममता छोड़े । वह सत्वगुण ॥५८॥
विषयों में दौड़े वासना । मगर वह कभी डगमगाये ना । धीरज जिसका ढले ना । वह सत्वगुण ॥५९॥
देह आपदा से पीड़ित । क्षुधा तृष्णा से ग्रस्त । तब भी निश्चय में स्थित । वह सत्वगुण ॥६०॥
श्रवण और मनन । निजध्यास से समाधान । हुआ शुद्ध आत्मज्ञान । वह सत्वगुण ॥६१॥
नहीं अहंकार जिसे । नैराश्यता विलसे । जिसके पास कृपा बसे । वह सत्वगुण ॥६२॥
समस्तों से नम्र बोले । मर्यादा से चले । सर्व जनों को संतुष्ट करे । वह सत्वगुण ॥६३॥
सभी जनों से आर्जव । नही विरोध का ठांव । परोपकार में रहता जीव । वह सत्वगुण ॥६४॥
अपने कार्य से जीव ये । परकार्य सिद्धि कराये । मरकर कीर्ति रह जाये । वह सत्वगुण ॥६५॥
औरों के दोषगुण । दृष्टि से देखे स्वयं । संचय समुद्रसमान । वह सत्वगुण ॥६६॥
नीच उत्तर सहना । प्रत्योत्तर ना देना । क्रोध काबू में रखना । वह सत्वगुण ॥६७॥
अन्याय बिन छलते । नाना तरह से पीडा देते । ये सारा चित्त में रखे । वह सत्वगुण ॥६८॥
शारीरिक कष्ट सहे । दुर्जनों से मिलजुल कर रहे । निंदक पर उपकार करे । वह सत्वगुण ॥६९॥
इधर उधर मन दौड़े । उसका विवेक से संवारे । इंद्रिय दमन करे । वह सत्वगुण ॥७०॥
सत्क्रिया का आचरण करे । असत्क्रिया का त्याग करे । भक्ति की राह धरे । वह सत्वगुण ॥७१॥
जिसे प्रिय प्रातः स्नान । भाये पुराण श्रवण । नाना मंत्रों से देवतार्चन । करे वह सत्वगुण ॥७२॥
पर्वकाल में अति सादर । वसंतपूजा में तत्पर । जयंतियों पर प्रीति अपार । वह सत्यगुण ॥७३॥
विदेश में कोई मरे । तो उसका संस्कार करे । अथवा सादर रहे । वह सत्वगुण ॥७४॥
कोई किसी को मारे । जाकर उसे संवारे । जीव बंधनमुक्त करे । वह सत्वगुण ॥७५॥
लिंग पर लक्ष अभिषेक । नामस्मरण में विश्वास । देवदर्शन के लिये अवकाश । वह सत्वगुण ॥७६॥
संत देख कर दौड़े । परम सुख से डोले । करे नमस्कार सर्व भाव से । वह सत्वगुण ॥७७॥
संतकृपा हो जिस पर । उसने उद्वरा वंश । ईश्वर का वह अंश । सत्वगुण से ॥७८॥
दिखाये सन्मार्ग जनों को । जो प्रेरित करे हरिभजन को । ज्ञान सिखाये अज्ञानियों को । वह सत्वगुण ॥७९॥
भाये पुण्यसंस्कार । प्रदक्षणा नमस्कार । स्मरण में रहे जिसके भीतर । वह सत्वगुण ॥८०॥
भक्ति की चाह भारी । करे जो ग्रंथ सामग्री । नाना प्रकार की धातु मूर्ति । पूजे वह सत्वगुण ॥८१॥
जगमगातें उपकरण । माला गोमुखी आसन । पवित्र उज्ज्वल वस्त्र । वह सत्वगुण ॥८२॥
परपीडा का करे दुःख । परसंतोष का सुख । वैराग्य देखकर हर्ष । माने वह सत्वगुण ॥८३॥
परभूषण में भूषण । परदूषण में दूषण । परदुःख से दुःखी जान । वह सत्वगुण ॥८४॥
अस्तु अब हुआ यह बहुत । देव धर्म में जिस का चित्त । करे भजन कामनारहित । वह सत्वगुण ॥८५॥
‍ऐसा यह सत्वगुण सात्विक । संसारसागर में तारक । इससे उपजे विवेक । ज्ञानमार्ग का ॥८६॥ ‍
सत्वगुण से भगवद्भक्ति । सत्वगुण से ज्ञानप्राप्ति । सत्वगुण से सायुज्युमुक्ति । प्राप्त होती ॥८७॥
ऐसी सत्वगुण की स्थिति । स्वल्प कही यथामति । श्रोता सावधान पद्धति । में आगे अवधान दें ॥८८॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सत्वगुणनाम समास सातवा ॥७॥

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Last Updated : November 30, 2023

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