हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|मूर्खलक्षणनाम| ॥ समास आठवां - सद्विद्यानिरुपणनाम ॥ मूर्खलक्षणनाम ॥ समास पहला - मूर्खलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - उत्तमलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - कुविद्यालक्षणनाम ॥ ॥ समास चौथा - भक्तिनिरुपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - रजोगुणलक्षणनाम ॥ ॥ समास छठवां - तमोगुणलक्षणनाम ॥ ॥ समास सातवा - सत्वगुणनाम ॥ ॥ समास आठवां - सद्विद्यानिरुपणनाम ॥ ॥ समास नववां - विरक्तलक्षणनाम ॥ ॥ समास दसवां - पढतमूर्खलक्षणनिरूपणनाम ॥ अनुक्रमणिका मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास आठवां - सद्विद्यानिरुपणनाम ॥ इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास आठवां - सद्विद्यानिरुपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ सुनो सद्विद्या के लक्षण । परमशुद्ध सुलक्षण । विचार ग्रहण से बलिष्ठ बने । सद्विद्या शरीर में ॥१॥ सद्विद्या का जो पुरुष । वह उत्तम क्षणों में विशेष । उसके गुण सुनकर संतोष । परम होता ॥२॥ भाविक सात्विक प्रीतिवान । शांति क्षमा दयावान । केवल तत्पर लीन । अमृत वचनी ॥३॥ परम सुंदर और चतुर । परम सबल और धीर । परम संपन्न और उदार । आत्यंतिक ॥४॥ परम ज्ञाता और भक्त । महापंडित और विरक्त । महातपस्वी और शांत । आत्यंतिक ॥५॥ वक्ता और नैराश्यता । सर्वज्ञ और सादरता । श्रेष्ठ और विनम्रता । सब के प्रति ॥६॥ राजा और धार्मिक । शूर और विवेक । तारुण्य और नियामक । आत्यंतिक ॥७॥ वृद्धाचारी कुलाचारी । युक्ताहारी निर्विकारी । धन्वंतरी परोपकारी । पद्महस्ती ॥८॥ कार्यकर्ता निराभिमानी । गायक और वैष्णवजनी । वैभव और भगवद्भजनी । अत्यादर से ॥९॥ तत्त्वज्ञ और उदासीन । बहुश्रुत और सज्जन । मंत्री और सगुण । नीतिवंत ॥१०॥ साधु पवित्र पुण्यशील । अंतरशुद्ध धर्मात्मा कृपाल । कर्मनिष्ठ स्वधर्म में निर्मल । निर्लोभ अनुतापी ॥११॥ चाह रुचि परमार्थ में प्रीति । सन्मार्ग सत्क्रिया धारणा धृति । श्रुति स्मृति लीला युक्ति । स्तुति मती परीक्षा ॥१२॥ दक्ष धूर्त योग्य तार्किक । सत्य साहित्य नेमक भेदक । कुशल चपल चमत्कारिक । नाना प्रकार से ॥१३॥ आदर सम्मान तारतम्य जाने । प्रयोग समय प्रसंग जाने । कार्यकारण संकेत जाने । विचक्षण वक्ता ॥१४॥ सतर्क उद्योगी साधक । आगमनिगम शोधक । ज्ञानविज्ञानबोधक । निश्चयात्मक ॥१५॥पुरश्चरणी तीर्थवासी । दृढव्रती कायाक्लेशी उपासक निग्रह भी । करना जाने ॥१६॥ सत्यवचनी शुभवचनी । कोमलवचनी एकवचनी । निश्चयवचनी सौख्यवचनी । सर्वकाल ॥१७॥ वासनातृप्त सखोलयोगी । भव्य सुप्रसन्न बीतरागी । सौम्य सात्विक शुद्धमार्गी । निः कपट निर्व्यसनी ॥१८॥ चतुर संगीत गुणग्राही । अनपेक्षी लोकसंग्रही । आर्जव सौख्य सर्व ही । प्राणिमात्र से ॥१९॥ द्रव्यशुचि दाराशुचि । न्यायशुचि अंतरशुचि । प्रवृत्तिशुचि निवृत्तिशुचि । सर्वशुचि निःसंगता से ॥२०॥ मित्रता से परहितकारी । वाग्माधुर्य परशोकहारी । सामर्थ्य से दण्डधारी । पुरुषार्थ जगमित्र ॥२१॥ संशयछेदक विशाल वक्ता । समस्त चातुर्य होकर भी श्रोता । कथा निरुपण में शब्दार्थ । को खोनें ही ना दें ॥२२॥ विवादरहित संवादी । संग रहित निरुपाधि । दुराशारहित अक्रोधी । निर्दोष निर्मत्सरी ॥२३॥ विमलज्ञानी निश्चयात्मक समाधानी और भजक । सिद्ध होकर भी साधक । करे साधन रक्षा ॥२४॥ सुखरूप संतोषरूप । आनंदरूप हास्यरूप । ऐक्यरूप आत्मरूप । सभी से ॥२५॥ भाग्यवंत जयवंत । रूपवंत गुणवंत । आचारवंत क्रियावंत । विचारवंत स्थिति ॥२६॥ यशवंत कीर्तिवंत । शक्तिवंत सामर्थ्यवंत । वीर्यवंत वरदवंत । सत्यवंत सुकृति ॥२७॥ विद्यावंत कलावंत । लक्ष्मीवंत लक्षणवंत । कुलवंत शुचिष्मंत । बलवंत दयालु ॥२८॥ युक्तिवंत गुणवंत वरिष्ठ । बुद्धिवंत बहुधीरत्व । दीक्षावंत सदा संतुष्ट । निस्पृह वितरागी ॥२९॥ अस्तु ऐसे उत्तम गुण । ये सद्विद्या के लक्षण । निरुपित अभ्यास के कारण । अल्पमात्र कहे ॥३०॥ रूप लावण्य का अभ्यास ना होय । सहज गुण के लिये न चले उपाय । कुछ तो करे व्यवस्था । आगंतुक गुणों की ॥३१॥ ऐसी श्रेष्ठ सद्विद्या ये । सर्वत्रों के पास रहे । परंतु विरवत पुरुष अभ्यास करे । अगत्यरूप ॥३२॥ इति श्रीदासबोध गुरुशिष्यसंवादे सद्विद्यानिरुपणनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : November 30, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP