मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास आठवां - सद्विद्यानिरुपणनाम ॥

इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
सुनो सद्विद्या के लक्षण । परमशुद्ध सुलक्षण । विचार ग्रहण से बलिष्ठ बने । सद्विद्या शरीर में ॥१॥
सद्विद्या का जो पुरुष । वह उत्तम क्षणों में विशेष । उसके गुण सुनकर संतोष । परम होता ॥२॥
भाविक सात्विक प्रीतिवान । शांति क्षमा दयावान । केवल तत्पर लीन । अमृत वचनी ॥३॥
परम सुंदर और चतुर । परम सबल और धीर । परम संपन्न और उदार । आत्यंतिक ॥४॥
परम ज्ञाता और भक्त । महापंडित और विरक्त । महातपस्वी और शांत । आत्यंतिक ॥५॥
वक्ता और नैराश्यता । सर्वज्ञ और सादरता । श्रेष्ठ और विनम्रता । सब के प्रति ॥६॥
राजा और धार्मिक । शूर और विवेक । तारुण्य और नियामक । आत्यंतिक ॥७॥
वृद्धाचारी कुलाचारी । युक्ताहारी निर्विकारी । धन्वंतरी परोपकारी । पद्महस्ती ॥८॥
कार्यकर्ता निराभिमानी । गायक और वैष्णवजनी । वैभव और भगवद्भजनी । अत्यादर से ॥९॥
तत्त्वज्ञ और उदासीन । बहुश्रुत और सज्जन । मंत्री और सगुण । नीतिवंत ॥१०॥
साधु पवित्र पुण्यशील । अंतरशुद्ध धर्मात्मा कृपाल । कर्मनिष्ठ स्वधर्म में निर्मल । निर्लोभ अनुतापी ॥११॥
चाह रुचि परमार्थ में प्रीति । सन्मार्ग सत्क्रिया धारणा धृति । श्रुति स्मृति लीला युक्ति । स्तुति मती परीक्षा ॥१२॥
दक्ष धूर्त योग्य तार्किक । सत्य साहित्य नेमक भेदक । कुशल चपल चमत्कारिक । नाना प्रकार से ॥१३॥
आदर सम्मान तारतम्य जाने । प्रयोग समय प्रसंग जाने । कार्यकारण संकेत जाने । विचक्षण वक्ता ॥१४॥
सतर्क उद्योगी साधक । आगमनिगम शोधक । ज्ञानविज्ञानबोधक । निश्चयात्मक ॥१५॥
पुरश्चरणी तीर्थवासी । दृढव्रती कायाक्लेशी उपासक निग्रह भी । करना जाने ॥१६॥
सत्यवचनी शुभवचनी । कोमलवचनी एकवचनी । निश्चयवचनी सौख्यवचनी । सर्वकाल ॥१७॥
वासनातृप्त सखोलयोगी । भव्य सुप्रसन्न बीतरागी । सौम्य सात्विक शुद्धमार्गी । निः कपट निर्व्यसनी ॥१८॥
चतुर संगीत गुणग्राही । अनपेक्षी लोकसंग्रही । आर्जव सौख्य सर्व ही । प्राणिमात्र से ॥१९॥
द्रव्यशुचि दाराशुचि । न्यायशुचि अंतरशुचि । प्रवृत्तिशुचि निवृत्तिशुचि । सर्वशुचि निःसंगता से ॥२०॥
मित्रता से परहितकारी । वाग्माधुर्य परशोकहारी । सामर्थ्य से दण्डधारी । पुरुषार्थ जगमित्र ॥२१॥
संशयछेदक विशाल वक्ता । समस्त चातुर्य होकर भी श्रोता । कथा निरुपण में शब्दार्थ । को खोनें ही ना दें ॥२२॥
विवादरहित संवादी । संग रहित निरुपाधि । दुराशारहित अक्रोधी । निर्दोष निर्मत्सरी ॥२३॥
विमलज्ञानी निश्चयात्मक समाधानी और भजक । सिद्ध होकर भी साधक । करे साधन रक्षा ॥२४॥
सुखरूप संतोषरूप । आनंदरूप हास्यरूप । ऐक्यरूप आत्मरूप । सभी से ॥२५॥
भाग्यवंत जयवंत । रूपवंत गुणवंत । आचारवंत क्रियावंत । विचारवंत स्थिति ॥२६॥
यशवंत कीर्तिवंत । शक्तिवंत सामर्थ्यवंत । वीर्यवंत वरदवंत । सत्यवंत सुकृति ॥२७॥
विद्यावंत कलावंत । लक्ष्मीवंत लक्षणवंत । कुलवंत शुचिष्मंत । बलवंत दयालु ॥२८॥
युक्तिवंत गुणवंत वरिष्ठ । बुद्धिवंत बहुधीरत्व । दीक्षावंत सदा संतुष्ट । निस्पृह वितरागी ॥२९॥
अस्तु ऐसे उत्तम गुण । ये सद्विद्या के लक्षण । निरुपित अभ्यास के कारण । अल्पमात्र कहे ॥३०॥
रूप लावण्य का अभ्यास ना होय । सहज गुण के लिये न चले उपाय । कुछ तो करे व्यवस्था । आगंतुक गुणों की ॥३१॥
ऐसी श्रेष्ठ सद्विद्या ये । सर्वत्रों के पास रहे । परंतु विरवत पुरुष अभ्यास करे । अगत्यरूप ॥३२॥
इति श्रीदासबोध गुरुशिष्यसंवादे सद्विद्यानिरुपणनाम समास आठवां ॥८॥

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Last Updated : November 30, 2023

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