मूर्खलक्षणनाम - ॥ समास छठवां - तमोगुणलक्षणनाम ॥

इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
पीछे कहा रजोगुण । क्रियासहित लक्षण । अब ऐसा तमोगुण । वह भी कहा जाता ॥१॥
संसार में दुःख संबंध । प्राप्त होने पर उठे खेद । अथवा आये अद्भुत क्रोध । वह तमोगुण ॥२॥
जब शरीर क्रोध से भरता । ना पहचाने माता न पहचाने पिता । बंधु बहन कांता । को ताड़ना दे वह तमोगुण ॥३॥
दूसरों के प्राण ले । अथवा स्वयं के दे । आप्त जनों को भुला दे । वह तमोगुण ॥४॥
क्रोध का होते संचार । करे पिशाचसमान व्यवहार । ना सम्हले नाना उपाय करनेपर । वह तमोगुण ॥५॥
अपना स्वयं शस्त्रपात । करे परायों का घात । समय ऐसा जो करे व्यतीत । वह तमोगुण ॥६॥
आंखों से युद्ध ही देखे । रणभूमि पर जायें । ऐसी इच्छा जीव में । वह तमोगुण ॥७॥
अखंड भ्रांति में पडे । किया निश्चय तोडे । निद्रा अत्यंत प्रिय लगे । वह तमोगुण ॥८॥
क्षुधा जिसकी बहुत । न जाने मिठास अथवा कडवाहट । जो है अत्यंत मूढ । वह तमोगुण ॥९॥
प्रीति पात्र का हुआ मरण । उसके लिये त्यागे प्राण । आत्महत्या करे स्वयं । वह तमोगुण ॥१०॥
कीडा चींटी और श्वापद । करना चाहे इनका वध । अत्यंत जो कृपामंद। वह तमोगुण ॥११॥
स्त्रीहत्या बालहत्या । द्रव्य के लिये ब्रह्महत्या । प्रिय लगे गोहत्या । वह तमोगुण ॥१२॥
ईर्षा के कारण । करना चाहे विष सेवन । परवध करना चाहे मन । यह तमोगुण ॥१३॥
अंतरंग में रख कपट । करे दूसरों का अहित । सदा मस्त सदा उद्घट । वह तमोगुण ॥१४॥
कलह की चाह लगे । लड़ने-झगड़ने की इच्छा उठे । अंतरंग में द्वेष प्रकटे । वह तमोगुण ॥१५॥
युद्ध देखे सुने । स्वयं युद्ध ही करे । मरे अथवा मारे । वह तमोगुण ॥१६॥
मत्सर से भक्ति छोड़े । देवालय बिगाड़े । फलते वृक्ष तोड़े । वह तमोगुण ॥१७॥
सत्कर्म लगते अप्रिय । नाना दोष लगते प्रिय । चित्त में नहीं पापभय । वह तमोगुण ॥१८॥
ब्रह्मवृत्ति का उच्छेद । जीवमात्रों को दे खेद । करना चाहे अप्रमाद । वह तमोगुण ॥१९॥
अग्निप्रलय शस्त्रप्रलय । भूतप्रलय विषप्रलय । मत्सर से करे जीवक्षय । वह तमोगुण ॥२०॥
परपीड़ा का संतोष । निष्ठुरता की आस । संसार का न माने त्रास । वह तमोगुण ॥२१॥
झगड़ा लगा दे । स्वयं कौतुक से देखे । जी में कुबुद्धि रखे । वह तमोगुण ॥२२॥
संपत्ति होते ही प्राप्त । दूसरों को करे पीडित । करुणा न आती जिसके चित्त । वह तमोगुण ॥२३॥
ना चाहे भक्ति ना चाहे भाव । ना चाहे तीर्थ ना चाहे देव । वेदशास्त्र ना चाहे सर्व । वह तमोगुण ॥२४॥
स्नान संध्या नहीं नियम । भ्रष्ट दिखे जिसका स्वधर्म । करे अनुचित कर्म । वह तमोगुण ॥२५॥
जेष्ठ बंधु बाप माता । उनके वचन न सहता । शीघ्र कोप कर निकल जाता । वह तमोगुण ॥२६॥
अकारण खाये अकारण ही रहे । स्तब्ध होकर बैठा रहे । सहज कुछ भी ना स्मरण रहे । वह तमोगुण ॥२७॥
चेटकविद्या का अभ्यास । शस्त्रविद्या की अभिलाषा । जिसे मल्लविद्या की आस । वह तमोगुण ॥२८॥
कांटा लटकाने की मन्नत । बेडी बंधन के सायास । काष्ठयंत्र से जिव्हा छेदन । करे वह तमोगुण ॥२९॥
मस्तक पर जलता खप्पर रखे । मशाल से शरीर जलाये । स्वयं शरीर में शस्त्र चुभाये । वह तमोगुण ॥३०॥
देव को सिर करे अर्पण । अथवा शरीर करे समर्पण । ऊपर से लगाये छलांग । वह तमोगुण ॥३१॥
निग्रह से धरना घरे । अथवा देह टांग कर रखे । देवद्वार पर प्राणार्पण करे । वह तमोगुण ॥३२॥
निराहार उपोषण । पंचाग्नि धूम्रपान । स्वयं को करे दफन । वह तमोगुण ॥३३॥
सकामता का जो अनुष्ठान । अथवा जो वायुनिरोधन । अथवा पड़ा रहे जो अकारण । वह तमोगुण ॥३४॥
नख केश बढाये । हांथ ही ऊपर उठाये । अथवा वाक्शून्य बन जाये । वह तमोगुण ॥३५॥
नाना निग्रहों पीड़ित होये । देहदुःख से चिडचिडा बने । क्रोध से करे देव को फोडे । वह तमोगुण ॥३६॥
देव की जो निंदा करे। यह आशाबद्ध अघोरी । जो संतसंग ना धरे । वह तमोगुण ॥३७॥
ऐसा यह तमोगुण । बोले वह असाधारण । मगर त्यागार्थ निरुपण । किया कुछ ॥३८॥
ऐसा जो करता वह तमोगुण । मगर यह पतन का कारण । मोक्षप्राप्ति के लक्षण । नहीं इस में ॥३९॥
किये कर्मों के फल । प्राप्त होगे सकल । जन्मदुःख का मूल । टूटे नहीं ॥४०॥
होना अगर जन्म का खंडन । चाहिये वह सत्वगुण । उसका ही है निरूपण । अगले समास में ॥४१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे तमोगुणलक्षणनाम समास छठवां ॥६॥

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Last Updated : November 29, 2023

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