फाल्गुन शुक्लपक्ष व्रत - पापनाशिनी द्वादशी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


पापनाशिनी द्वादशी

( ब्रह्माण्डपुराण ) - फाल्गुन शुक्ल एकादशीको प्रातःस्त्रानादिके पश्चात् हाथमेम जल लेकर ' द्वादश्यां तु निराहारः स्थित्वाहमपरेऽहनि । भोक्ष्यामि जामदग्न्येश शरणं मे भवाच्युत ॥' - इस मन्त्नके उच्चारणसे व्रत ग्रहण करे । फिर आँवलेके वृक्षके नीचे एक वेदी बनाकर उसपर कलश स्थापन करके उसीपर ताँबे या बाँसके पात्रमें लाजा ( खील ) भरकर रखे और उसमें सुवर्णनिर्मित परशुरामकी मूर्ति रखकर ' क्षत्रान्तकरणं घोरमुद्वहन् परशुं करे । जामदग्न्यः प्रकर्तव्यो रामो रोषारुणेक्षणः ॥' से ध्यान करे और उनको पञ्चामृतसे स्त्रान कराकर षोडशोपचार पूजन करे । इसके अतिरिक्त ' पादयोर्विशोकाय ', ' जान्वोः सर्वरुपिणे ', ' नासिकायां शोकनाशाय ', ' ललाटे वामनाय ', ' भ्रुवो रामाय ' और ' शिरसि सर्वात्मने नमः' से अङ्गपूजा और नाममन्त्नसे आयुध - पूजा करे । फिर ' नमस्ते देवदेवेश जामदग्न्य नमोऽस्तु ते । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं मालत्या सहितो हरे ॥ ' से अर्घ्य देकर ' माता पितामहश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिणः । ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूले सदा पयः ॥' से आँवलेका अभिषेक करके १०८, २८ या ८ परिक्रमा करे और ब्राह्मण - भोजनादिसे पीछे व्रतका विसर्जन करे ।

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Last Updated : January 02, 2002

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