फाल्गुन शुक्लपक्ष व्रत - द्वादशसप्तमी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


द्वादशसप्तमी

( हेमाद्रि ) - यह व्रत माघ शुक्ल सूर्यसप्तमीसे आरम्भ किया जाता है । विधान यह है कि १ माघमें ' भानवे ', २ फाल्गुनमें ' सूर्याय ', ३ चैत्रमें ' वेदांशवे ', ४ वैशाखामें ' धात्रे ', ५ ज्येष्ठमें ' इन्द्राय ', ६ आषाढ़में ' दिवाकराय ', ७ श्रावणमें ' आतपिने ', ८ भाद्रपदमें ' रवये ', ९ आश्विनमें ' सवित्रे ', १० कार्तिकमें ' सप्ताश्वाय ', ११ मार्गशीर्षमें ' भानवे ', और १२ पौचमें ' भास्कराय नमः ' - इन नामोंसे सूर्यनारायणका पूजन करके उपवास करे और माघ कृष्ण सप्तमीके शुद्ध भूमिके प्राङ्गणमें लाल चन्दनका लेप करके उसपर एक, दो या चार हाथके विस्तारका सिन्दूरसे सूर्यमण्डल बनाये और उसपर लाल वस्त्रोंसे ढके हुए तिलपूर्ण और दक्षिणासहित बारह कलश स्थापन करके लाल गन्ध - पुष्पादिसे उनमें सूर्यका पूजन करे और ' आकृष्णेन०' से हवन करके ब्राह्मणोंको भोजन कराये और उक्त कलशादि ब्राह्मणोंको दे । इस प्रकार एक वर्षपर्यन्त करनेसे सूर्यलोककी प्राप्ति होती हैं ।

N/A

References : N/A
Last Updated : January 02, 2002

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP