अथ जलंधरी पावजी की सबदी

सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः हा ग्रंथ गोरक्षनाथांनी हठ योगावर लिहीला आहे.
The Siddha Siddhanta Paddhati is a very early extant Hatha Yoga Sanskrit text attributed to Gorakshanath.


सुनि मंडल मैं मनका बासा । जहां प्रेम जोति प्रकासा ।
आपे पूछै आपै कहै । सत गुरु मिलै तै प्रेमपद लहै ॥१॥
ऐक अचंभा ऐसा हूवा । गागर मांहि उसास्या कूव ।
वो छीनेज पहूचै नांही । लोक पयासा मरि मरि जांही ॥२॥
आसा पासा दूरि करि । पसरंती निवारि ।
स्पध साधिक सूं संग करि । कै गुरमुष ग्यान विचारि ॥३॥
धरती आकास पवन अर पांणी । चंदसूरषट दरसण जाणी ।
ॐ कार का जाणै मंत । ऐसा सिधा अलष अनंत ॥४॥
गोपीचंद कहै स्वामीजी । बस्ती रहूं तौ कद्रंपब्यापै ।
जंवलि जाऊं तौ षुध्या संतापै । आसाणी रहूं तौ व्यापै माया ॥
पंथ चलूं तौ छीजै काया । मीठौ षांड तौ ब्यापै रोग ।
कहौ कासी प्रसांधू जोग ॥५॥
सांभलि अवधू तत विचार । ऐनिज सकल सिरोमणि सार ।
संजम अहार कंद्रप नही ब्यापै । बाई अहारषु ध्यान संतापै ।
सिध आसन नहि लागै माया । नाद पयानैं नहि छीजै काया ।
जिभ्या स्वाद न कीजै भोग । मन पवनां ले साधौ जोग ॥६॥
मरदने केसस थामि लै अवधू । पवना थामि लै काया ।
अत्सेजु राम रन थांभि लै । विचार त्याग लै माया ॥७॥
सत सिध मते पार । न मरै जोगी न ले अवतार ।
सुनि समावै बावै बीनां । अलष पुरष तहां ल्यौ लीना ॥८॥
जोग न जोग्या भोग न भोग्या । अहला गथा ज मारा ।
गांमे गधा जंगल सूकर । फिरि फिरि ले अवतारा ॥९॥
इह संसौ पाई ऐ षैले । अब बोई ऐ ते आगैं फलै ।
इह संसार करम की बारी । जबलग सरधा सक्ति संसारी ॥१०॥
पहलै कीया स अब भुगतावै । जो अब करै स आगैं पावै ।
जैसा दीजै तैसा लीजै । तातै तन धरनी कां कीजै ॥११॥
अजपा जपनां तपबिन तपनां । धुनि गहै धरिबा ध्यानं ।
जोग सहारं पाप प्रहारं । ऐसा अद्भुत ग्यान ॥१२॥
॥ इति जलंधरी पावजी की सबदी ॥

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Last Updated : November 25, 2016

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