अथ गोपीचंद जी की सबदी

सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः हा ग्रंथ गोरक्षनाथांनी हठ योगावर लिहीला आहे.
The Siddha Siddhanta Paddhati is a very early extant Hatha Yoga Sanskrit text attributed to Gorakshanath.


रज तजिलै पूता पाट तजिलै । तजिलै हस्ती घोडा ।
सति सति भाषत माता मैणावती रे पूता । कलि मैं जीवन थोडा ॥१॥
राजा कै घरि राणी होती माता । हमारै होती माई जी ।
सवषणै भौ बारै बैठती माता । यहु - ग्यान कहां तैल्याईजी ॥२॥
गुरु हमारै गोरष बोलीऐ । चरपट है गुरुभाई जी ।
एक सबद हमकूं गुरु गोरषनाथ दीया । सो वो ल्यष्या मैणांवती माई जी ॥३॥
सोलासैं राणीमैं बारासै कन्या । बंगाल देस बड भोगीजी ।
बारा बरस मोनै राज्यकरण दे । पिछे होऊंगा जोगीजी ॥४॥
आजि आजि करता पूता काल्हि काल्हि करंता ।
काया झरै कलाल की भाठीजी ।
सति सति भाषंत माता मैणावती रे पूता ।
यौ तन जलिबलि हिइ मसांण की माटीजी ॥५॥
जोग न होसी रे पूता भोगन होसी । न सीझि सो जल विंब की काया ।
सति सति भांषत माता मैणावती रे पूता । भूमि भूल्यै रे भाया जी ॥६॥
मरौगे मरिजाहू गेरे । फिरि हो हूगे मासांणकी छारंगंजी ।
कबहूकू परम तत चीन्है जेरे पूता । ज्यूं उतरौ संसार भौ पारंजी ॥७॥
कूंण हमकू भात पुलावै । कूंण पषाले पाईजी ।
कहा सूं मेरै मैडी मंदिर । कहां तू मैणावती माईजी ॥८॥
अलष तुमकूं मात पुलावै । गंग पषालै पाई जी ।
रूंषे बिरषे तेरैमेडी मंदिर । घरिघरि मणावती माईजी ॥९॥
माता कै उपदेश तजीला । देस बंगाल जी ।
गोपीचंद गुरु कै सरणै । भेटत भागा काल जी ॥१०॥
छाद्या राजपाट पाणी छाड्या । छाद्याभोग विलासजी ।
गोपीचंद धीलाघर सबदी । छादि भया बनवासजी ॥११॥
राणी सकल कन्या सब ही । है है कार भईलाजी ।
रावत रैति तुरी गज गलबल । राजा गोपीचंद कहां गईलाजी ॥१२॥
जलंधरी पाव हाथि दे डीबी । गोपीचंद षंदाया जी ।
मंदर महल पौलि जहां भीतरी । तहां अलेष जगाया जी ॥१३॥
माइ बहन करि भिष्या मांगी । पूरया सींगी नांदजी ।
सांमलि साद मिली जब राणी । आइ किया संवादजी ॥१४॥
मन राजा मन प्रजा । मन सकलका बंधजी ।
मनकूं चीन्हे पारग्रींमी भया । राजा गोपीचंदजी ॥१५॥
ग्रहवे कूं नांही देषिबे कूं लषि । चंदसूर विवरजित पषि ।
जलमैं बिब द्रपन मैं छाया । ऐसा अचिंत पद गोपीचंद पाया ॥१६॥
पाया लो भल पायालो । सरबंथा न सहेती थिति ।
रूप सहेती दीसण लागा । पिंड भई प्रतिति ॥१७॥
मन थिरंता पवन थिर । पवन थिरंता बिंद ।
बिंद थिरंता जिंदा थिर । यूं भाषै गोपीचंद ॥१८॥
मन चलंता पवन चलै । पवन चलता बिंद ।
बिंद चलंता कंध पडै । यूं भाषै गोपीचंद ॥१९॥

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Last Updated : November 25, 2016

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