हिंदुस्थानीं पदें - पदे ४१ ते ४५

वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्‍चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते.


पद ४१
हारम दत्त गुरू गुरू कहना ॥धृ॥
सोधे लूच्चे भडवे गाढु पास खडे नहि रहना ।
ओही आकर बात कहे तो जबाब कछु नहि देना ॥१॥
दुनियाके मैदान बीचमो नेक चलनसे चलना ।
पूरा संतसमागम करकर सेवाकू नहि टकला ॥२॥
नशेसेब बढे तो दौलत सबसे बाटबाटकर खाना ।
नहि तो भली फकीरी लेकर बहुत खुसीसे रहना ॥३॥
नीरंजन रघुनाथ पुकारे दत्तगुरू है सच्चा ।
ठौर ठौर पर वोहि भरा है खूब सबसमजले बच्चा ॥४॥

पद ४२
मेरा दत्तगुरू कैवारी । दिन दुनियाकु नहि गनते
हं करते फकत् फकीरी ॥धृ॥
सहज मिले वो लेकर उनमे करते गुजरा गुजरी ॥१॥
सदा खुसीसे रहते दिलमे नहि रखते दिलगीरी ।
सुखदु:ख समसमान लेखे आशा तृष्णा मारी ॥२॥
नही भरोसा किनका रखते किस्से नहि है यारी ।
और नही मीठा कछु लगता गुरुभगत है प्यारी ॥३॥
निरंजनरघुनाथ गुरुनें यही राहा सुमधारी ।
यही गैलसे चलते है हं बडी पकड दिलदारी ॥४॥

पद ४३
हातमो दत्तगुरुके नौकर ॥धृ॥
गुरुमेहरका सिले टोप सिर चिन्मय पेहरा बखतर ।
शांतिक्षमाकी ढाल बिराजे बोध फरश है खडतर ॥१॥
मनघोडेकी बाग उटाई हुवे चढाईत ऊपर ।
तोडदिये दुसमान झडाझड कामक्रोध मदमात्सर ॥२॥
प्रेमभगत दर्रोज मुशारा पावत है अब भरपूर ।
नहि खाडा नहि नागा करते नहि रहते है बेकर ॥३॥
निरंजनरघुनाथ शिफारस हुजुर हुव्वा हाजर ।
बडी मेहर साहेबकी हंपर बिचनहि है नाजर ॥४॥

पद ४४
श्रीरामनामका महिमा जाने वोहि और नही कोई ॥धृ॥
सबदेवनमो शंकर भोला पिया उठाकर बिखका प्याला ।
हिंमत छांड हुवा जब ढीला रामनाम तब मुखसे बोला । ब्याद मिटाई ॥१॥
प्रर्‍हादोका बाप हटेला । कीई बेटेऊपर हल्ला । पिलाया कहर जहरका प्याला ।
साहेब उनसे रखनेवाला । भूलनहि आई ॥२॥
कलजुगम्याने मीराबाई । रामनामसे प्रीत लगाई । बुरा कहने लागे भाई ।
खिलाइ उनकू बिखकी लोई । साच बचाई ॥३॥
निरंजनघुबिरका बेटा । उनकू बडे सापने काटा । रामनामका किया चपेटा ।
मंतर जंतर सबही झूटा । राम दुहाई ॥४॥

पद ४५
नरतनु ये अछी पाई समजले भाई ॥धृ॥
जलदी संतसमागम करना । बचन कहेसे सो दिलमो धरना ।
उनके चाल चलनसे चलना । हरदम सेवाकू नहि टलना । छांड बढाई ॥१॥
राम नामसे प्रीत लगाना । अच्छी मूरत मनमो लाना ।
भाव भगतसे खूब रिझाना । बडी कमाई ॥२॥
भरपुर साहेब सब घट म्यानें । उनकू खूब तर्‍हे पैछाने ।
झूटा जग सच्चा नहि माने । अपनेकू दुजा मत गीने । बुरी जुदाई ॥३॥
गुरुमेहरका पेहरे अंजन । हो रहे मुक्त सदा नीरंजन । इसी तर्‍हेसे समजे निजधन ।
देह रह्या प्रारब्धो आधिन । करे अदाई ॥४॥

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Last Updated : November 25, 2016

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