मराठी मुख्य सूची|मराठी साहित्य|अभंग संग्रह आणि पदे|श्री निरंजन रघुनाथांचे ग्रंथ|निरंजनकृत हिंदुस्थानीं पदें| पदे ३१ ते ३५ निरंजनकृत हिंदुस्थानीं पदें पदे १ ते ५ पदे ६ ते १० पदे ११ ते १५ पदे १६ ते २० पदे २१ ते २५ पदे २६ ते ३० पदे ३१ ते ३५ पदे ३६ ते ४० पदे ४१ ते ४५ पदे ४६ ते ५० हिंदुस्थानीं पदें - पदे ३१ ते ३५ वेदान्तशास्त्र हे नुसते बुध्दिगम्य व वाक्चातुर्यदर्शक शास्त्र नसून प्रत्यक्ष अनुभवगम्य शास्त्र आहे हे या ग्रन्थातून स्पष्ट होते. Tags : hindiniranjam raghunathनिरंजन रघुनाथहिन्दी पदे ३१ ते ३५ Translation - भाषांतर पद ३१साइजी साच बताया राम ॥धृ॥निरखत ज्याकी चिन्मय छबजब होगय पूरन काम ॥१॥अलखसे लख लाग गई अब नहि देखनकि फाम ॥२॥आपहि राम बने सबलेकर छांड दियोरुपनाम ॥३॥निरंजन रघुनाथ मेंहरसे होरहै खूब आराम ॥४॥पद ३२धनदौलतके भरोसे क्या सुस्त रह्या है ।तेरे सिरपर दिनरेणूका लखडा है ॥धृ॥पलपलसे चळी उमर तेरि खबर नहि है ।जिस घडिमो राम सुमर बोहि सही है ॥१॥नरतनुबिन औरठौर बख्त नहि है ।साधुनकें संग भुगतनत्ख हाई है ॥२॥निरंजन बात कहत जलदी समजले ।आप कौन कैसे हैं येहि उमजले ॥३॥पद ३३वाहवा गनपति सिद्धि - विनायक अजब तुमारी लीला जी ।चिदाकाश स्व - प्रकाश तुमतो जगज्योत उजियाला जी ॥धृ०॥बाजीगीर तुंबडे गुसय्या दरखत किया पैदा जी ॥उस दर्खत के उपर खलकत फैलि उचा आधा जी ॥१॥सत्व और रजतम ये तीन्हों फांद्या बनगई जिनपर जी ॥वेद - शास्त्र सब पात उन्होके विषय बेल जिनपर जी ॥२॥दृष्टी बंदसे जगत् भुला है साचा दरखत देखे जी ॥बारबार पैदास पावकर पापपुण्य फल चाखे जी ॥३॥बिद्याधर तूं निरंजन पर बडि मेहर आब किया जी ॥माया दरखत बिलकुल काट आसंग खाडा पाया जी ॥४॥पद ३४वाहवा गुरुपिर मुरसद मौला बडा किया यहसानजी ॥तन - मन - धन सब कदमोंपरसे करडालू कुर्बान जी ॥धृ०॥बहोत दिनोसे भूलेथे हं अपनेसे बेहाल जी ॥सहज तुह्मारा आवाज सुनकर पाये आपना माल जी ॥१॥छोटे थे हं बडे बने अब प्यादा हूवा फजी जी ।देह धारीकू ब्रह्म बनाया सुनकर मेरी अर्जीं जी ॥२॥काम क्रोधकी गर्दन काटी तोडदिया कूफ रानाजी ॥शांति क्षमाकी फौज रखी अबी अचल बिठाया ठानाजी ॥३॥मेहेर तुह्मारी साइ अखिया चढाविया ज्ञानांजन जी ॥सब खल्कत अब देखन लागे एकहि एक गिरंजनजी ॥४॥पद ३५अवधूत येहि अरज मेरीरे । दे बे परवा फकीरी ।क्या राजा क्या परजा शाहु गरज नही है कोनशे ।देन लेन का काज नही है क्या मागे अब किनसे ॥१॥ऊचा महाल बडी मठमन्या बडा महंति कुरा ।मेरे मनकू भावत नहि है झूटा ढोंग धतूरा ॥२॥सूकी रोटी फटी लंगोटी झाडाके तल बासा ।दौलत औरत कछुनहि चाहि सबही झूट तमाशा ॥३॥नीरंजन मन यही फकीरी सदा फकत् मिल रहना ।दत्त गुरू तूं दाता मेरो बारबार ये कहना ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : November 25, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP