अध्याय पाँचवा - श्लोक १८१ से २००

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


फ़िर शुध्दजलोंसे यजमानको अभिषेक करावे फ़िर वास्तुमण्डलले विप्र ब्रम्हाके स्थानमें उस पृथ्वीका पुजन करे ॥१८१॥

जिसका सुन्दररुप जो दिव्यरुप और आभरणोंसे युक्त है जो स्त्रीरुप है और प्रमदावेषको धारण कररही है और जो भली प्रकार मनोहर है ॥१८२॥

महाध्याह्रति है पूर्व जिसके ऎसे उस मंत्रसे पृथ्वीका पूजन करे और धारय०- इस मन्त्रसे भली प्रकार प्रार्थना करके ॥१८३॥

वास्तु सब देवतारुप है वास्ति देवतारुप परमेश्वर है फ़िर अपने अपने नाममन्त्रोंसे ध्यान करके पूजन करे ॥१८४॥

प्रजाके ईश्वर चतुर्मुख देवका आवाहन करै फ़िर गग्धाअदिसे उसका बारम्बार पूजन और प्रणाम करके कहै ॥१८५॥

हे वास्तुपुरुष ! हे भूमिशय्यामें रत ! हे प्रभो ! आपको नमस्कार है मेरे घरमें धन धान्य आदिके वृध्दिको सदैव करो ॥१८६॥

फ़िर स्वस्तिवाचन कराकर और कर्क ( करवा ) को ग्रहण करके सूत्रके मार्गसे और प्रदक्षिण क्रमसे जलकी धारको ॥१८७॥

यजमानसे गिरावे उसीमार्गसे सर्व बीजोंको गिरवावे और सर्व बीजके जलोंको उसी मार्गसे गिरवावे और यजमानभी उसी मार्गसे गमन करै ॥१८८॥

इस प्रकार वास्तुविधानको गुणोंसे युक्त सुत्रधार उस शिलाको शिलाम्ण्डपसे भली प्रकार लाकर भलीप्रकार साधन कियेहुए घरके मध्यमें दिशाका साधन करै अर्थात शिलास्थापनके देशका निश्चय करे, ईशान आदि दिशाओंके क्रमसे सुवर्णके कुद्दाल ( खुदाला ) से ॥१८९-१९१॥

कोणभागमें ऐर विशेषकर मध्यभागमें खोदकर नाभिपर्यन्त गर्तमें शिलाका स्थापन शुभ है ॥१९२॥

शिलास्थापन समयमें सूत्रका छेद हो जाय तो मृत्यु और कीलक अधोमुख होजाय तो रोग, स्कंधसे गिरे तो शिरका रोग, हाथसे गिरजाय तो गृहके स्वामीका नाश होता है ॥१९३॥

यदि गृहके स्वामी और स्थपतिको स्मरणका लोप होजाय तो मृत्युको देता है यदि विसर्जनसे पहिले घटका भंग होजाय तो कुलकी कीर्तिका नाश होता है ॥१९४॥

यदि सूत्रके फ़ैलाने समयमें गर्दभ शब्द करै तो उस स्थानमें शल्यको जाने कुत्ता श्रृगाल सूत्रको लंघ जाय तोभी दु:खको जाने ॥१९५॥

सूर्यसे प्रकाशित जो दिशा है उसमें कठोर शब्द होय तो जिस अंगसे सूत्रका स्पर्श होय उसके समान अंगमें शल्यको कहे ॥१९६॥

शिलाके स्थापनके समयमें हस्ती आदि शब्द करे तो वास्तुके देहमें उत्पन्न हुए अस्थिका शल्यको कहै ॥१९७॥

कुब्ज वामन भिक्षु वैद्य रोगी सूत्र रखनेके समयमें इनके दर्श नको भी लक्ष्मीका अभिलाषी मनुष्य त्यागकरे ॥१९८॥

हुलहुल शब्दोंके सुननेपर, मेघके गर्जनेपर गर्जतेहुए सिंहोंका जो शब्द है ये सूत्र रखनेके समयमें होय तो धनका दाता होता है ॥१९९॥

सूत्रके फ़ैलानेके समयमें यदि जलती हुई अग्नि दीखे अथवा घोटक ( घोडे ) पर चढाहुआ पुरुष दीखे तो निष्कंटक राज्य होता है ॥२००॥

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Last Updated : January 20, 2012

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