अध्याय पाँचवा - श्लोक ६१ से ८०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


वायव्यमें एक पदका राजयक्ष्मा कहा है, उत्तरमें त्रिपदा और धराय एक पदके कहे हैं ॥६१॥

मध्यमें नौ ९ पदका ब्रम्हा पीत श्र्वेत और चतुर्भुजी कहा है, उसकी पूजाका मन्त्र आबाह्मन्ब्राम्हण:० यह कहा है ॥६२॥

अर्यमा कृष्णवर्णका और अर्यमणं बृहस्पतिम यह उसका मंत्र कहा है, सविता ( सूर्य ) रक्त वर्ण और उपयाम गृहीत:० यह उसका मंत्र कहा है ॥६३॥

विवस्नान शुक्ल वर्ण और विवस्वन्नादित्य० यह उसका मंत्र रक्त और इंद्र सुत्रामा० यह उसका मन्त्र कहा है ॥६४॥

मित्र श्वेत और तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे० यह उसका मंत्र कहा हैं और राजयक्ष्मा रक्तवर्णं और अभिगोत्राणि० यह उसका मन्त्र कहा है ॥६५॥

पृथ्वीधर रक्तवर्ण और पृथ्वीछन्द यह उसका मन्त्र कहा है आपवत्स शुक्ल वर्ण और भवतन्न० यह उसका मन्त्र कहा है ॥६६॥

और उसके बाह्य देशमे आप शुक्ल वर्ण और आपोस्मान्मातर: यह उसका मंत्र कहा है और सवित्रा० अग्निकोणमे दिग्भागमें शुक्लवर्णका एकपद कहा है ॥६७॥

और उपयाम गृहीतोसि० और सवितात्वा ये उसके मंत्र कहे है और जयंत श्वेत मर्माणि० इस मंत्रसे कहा है ॥६८॥

रुद्र रक्त वायव्यदिशामें सुत्रामाणम इस ऋचासे कहा है ईशानमें रक्तवर्णका शिखी तमीशानम० इस मंत्रसे कहा है ॥६९॥

पीतवर्णका पर्जय महाइंद्र० मंत्रसे कहा है जयंत पीतवर्णका धन्वनागा० इस मंत्रसे कहाहै ॥७०॥

कुलिशायुध पीत वर्णंकामहांइंद्र० इस मंत्रसे कहा है सूर्य रक्तवर्णका और सूर्यरश्मि हरिकेश इस मंत्रसे कहा है ॥७१॥

सत्य कृष्णवर्णका व्रतेनदीक्षामाप्नोति० इस मत्रसे कहा है, भृश कृष्णवर्णका और इसक मंत्र भद्रं कर्णोभि:० यह कहा है ॥७२॥

अंतरिक्ष कृष्णवर्णका और वयंसोम० यह उसका मंत्र कहा है, वायु धूमवर्णका और आवायो० यह उसका मंत्र कहा है ॥७३॥

पूषा रक्तवर्णका और पूषनतव० यह उसका मंत्र कहा है, वितथ शुक्लवर्ण सविता प्रथम० यह उसका मंन्त्र कहा है ॥७४॥

गृहक्षत पीतवर्णका सवितात्वा० यह उसका मंन्त्र कहा है और यम दक्षिणमें कृष्णशरीर यमाय त्वा मखाय० इस मंत्रसे कहा है ॥७५॥

गन्धर्व रक्तवर्णका और पृतद्वोव: इस मन्त्रसे कहा है, भृंगराज कृष्णवर्णका ( मृत्यु: ) सुपर्ण० इस मंत्रसे कहा है ॥७६॥

मृगपीतवर्णका तद्विष्णो:० इस मंत्रसे नैऋत दिशामें स्थित है पितरोंके गण रक्तवर्णके पितृभ्यश्व० इस मन्त्रसे पुजित करने ॥७७॥

दौवारिक रक्तवर्ण द्रविणोदा: पिपीषति० यह उसका मंत्र कहा है सुग्रीव शुक्लवर्ण सुषुम्न: सूर्यरश्मि० इस मंत्रसे पूजित करना ॥७८॥

पुष्पदन्त रक्तवर्ण नक्षत्रेभ्य:० इस मत्रसे पूजित करना, वरुण शुक्ल इतरो मित्रावरुणाभ्यां० इस मंत्रसे पूजित करना ॥७९॥

आसुर पीतरक्त ये रुपाणि० इस मन्त्रसे पूजित करना, शोक कृष्णवर्णका उसका असवे स्वाहा इस मंत्रसे आवाहन करे ॥८०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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