अध्याय पहला - श्लोक ८१ से १००

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


इनके दो भेदोंको, बलती हुई दग्ध तथा जिनमें धूआ उठ रहाहो उन दिशाओंमे देखता हुआ पुरुष जो गृहप्रवेश करे तो उसका मरण बुध्दिमान मनुष्य कहे और उस भूमिमें दु:ख कहे ॥८१॥

जिस मनुष्यको अपशशुन हों उस मनुष्यको दु:ख होताहै इससे उस धरमवास न करे और न ऎसी भूमिमें घर बनावे ॥८२॥

अब खननकी विधिको कहते हैं कि, ज्योति:शास्त्रके अनुसार शोभन दिन और शुभ वार सुन्दर लग्न और अच्छे मुहूर्तमें भलीप्रकार स्नान करके गृह्स्थी पुरुष पूर्वको मुखकरके बैठे ॥८३॥

और फ़िर गणपति कलशके ऊपर स्थापन किये नवग्रह इनका पूजन्करे, फ़िर पूर्वोक्त प्रकारसे परीक्षा कीहुई उसी पृथ्वीमें किसी जगह गौके गोबरले लीपै ॥८४॥

वहा ब्राम्हण और ज्योतिषीका पूजन करै, जितनी भूमिमें गृह बनाना हो उतनी भूमिको ॥८५॥

गृही पुरुष पंचगव्य सर्वोषधिका जल पंचामृत इनसे सींचे और तथा फ़िर शुध्दिकी कामनासे भूसंस्कारोंको करे ॥८६॥

और उस जगह पूर्व सुवर्ण जिसके गर्भसे और फ़लोंसे युक्त समस्त धान्यों सहित तथा समस्त गन्ध और सर्वोषधिसहित ॥८७॥

पुष्पोंसे सुशोभित रक्त जिसका वर्ण वस्त्र जिसके ऊपर लिपटा हो मन्त्रोंसे अभिमंत्रित ऎसे घटका प्रथम स्थापन करके उसमें नवग्रह वरुण ॥८८॥

पर्वत वन कानन नदी नद कर्णिका और समेद्रोंसहित पृथ्वीका आवाहन करके ॥८९॥

पूजन करे दिक्पाल कुलदेवी देव यक्ष और उरग इनकी प्रार्थना कर और बलिको देकर ‘जलाय’ इस मन्त्रको जपै और षड्डच और रुद्री इनका विधिपूर्वक जप करै ॥९०॥९१॥

फ़िर उसी घटमें वास्तुकी पूजा और प्रार्थन करै ‘ॐनमोभगवते वास्तुपुरुषाय कपिलाय ॥९२॥

पृथ्वीधराय देवाय प्रधानपुरुषाय च’ इसप्रकार कहकर नमस्कार करै और कि, समस्त गृह महल पुष्कर उद्यान आदि कर्म और गृहारंभके प्रथम समयमें सब सिध्दियोंको देनेवाला और सिध्द देवता मनुष्य ये जिसकी दिन रात सेवा करते है ॥९३॥९४॥

ऐसे वास्तुपुरुष आप इस समय इस प्रजापति क्षेत्रमे आनकर स्थित हो और यहां आकर पूजाको ग्रहण करो और वरको दो ॥९५॥

हे वास्तुपुरुष ! हे भूमिरुपी शय्यापर सोनेमें तत्पर ! हे प्रभो ! आपको नमस्कार है, मेरे गृहको धन धान्य आदि करके समृध्द ( युक्त ) सदैव करो ॥९६॥

इस प्रकार प्रार्थना करके फ़िर भूमिमें पिट्टी वा चावलोंसे नागरुप धारण किये हुए समस्त वास्तुपुरुषको लिखे ॥९७॥

और वेदके मंत्रोंसे आवाहन करे और अपनी शक्तिके अनुसार पूजन करै कि, भूमिके विषे स्थित और अधोमुख वास्तुका मै आवाहन करता हूं ॥९८॥

जो वास्तुके नाथ हैं जो जगतके प्राण हैं और जो प्रथम पूर्वदिशामें स्थित हैं ऎसे सबके स्वामी वास्तुपुरुषका ‘ विष्णोरराट’ इस मन्त्रसे पूजन करे ॥९९॥

अथवा अपनी शक्तिके अनुसार ‘ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो इस मन्त्रसे पूजन करै और पूर्वोक्त मंत्रको पढकर वास्तुनागकी कुक्षिके स्थान पर खनन करै ( खोदे ) ॥१००॥

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Last Updated : January 20, 2012

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