अध्याय पहला - श्लोक ६१ से ८०

देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।


और जिस भूमिमें बहुतसे गढेहों उसमें जलकी प्यास और कच्छपके समान भूमिमें धनका नाश होता है । इसमे अनन्तर भूमिकी परीक्षाको कहतेहै- हस्तमात्र भूमिको खोदकर फ़िर उसी मिट्टीसे भरे. यदि मिट्टी अधिक मध्यम और न्यून हो जाय तो क्रमसे श्रेष्ठ मध्यम अधम फ़ल जानना ॥६१॥

अथवा हस्तमात्रके गढेको जलसे भरदे और शीघ्र सौ १०० पैंड चलकर और उसी प्रकार आनकर देखे यदि जल कम होजाय तो भूमि शुभ न समझनी अथवा वितस्त भर गढेको चारों तरफ़ लीपकर ॥६२॥

कच्चे शरावेमें घीकरके चारों दिशाओंको पृथ्वीकी परीक्षाके लिये चार बत्ती वाले ॥६३॥

यदि चारों बत्ती जलती रहें तो ब्राम्हण आदि वर्णोंके क्रमसे पूर्व आदि दिशाकी भूमिको ग्रहण करें अथवा हलसे जोतेहुए देशमें सब प्रकारके बीजोंको बो दे ॥६४॥

तीन पांचं सात रात्रिमें बीजमें क्रमसे यह फ़ल जानना यदि तीन रातमें बोयेहुए बीजोंमें अंकुर जम आवे तो पृथ्वी उत्तम समझनी ॥६५॥

पांच रातमें जमैं तो मध्यम और सात रातमें जमैं तो अधम समझनी अथवा उस तिल जौ सरसों इनको बोवे ॥६६॥

अथवा गृहकी भूमिकी सब दिशाओंमें सब बोवे जहां वे संपूर्ण बीज न जमें उस भूमिको यत्न्रसे वर्जदे ॥६७॥

व्रीही शाली मूंग गेहुं सरसों तिल जौं ये सात सर्वोषधी और सब बीज कहाते है ॥६८॥

सुवर्ण ताम्बेके रंगके पुष्प गढेके मध्यमें रखेहुए जिसके नामके आ जाय वह भूमि उसके लिये उत्तम कही है ॥६९॥

भूमिकी धूलकी रेणुको आकाशमें फ़ेंककर देखे यदि वे अधोभाग मध्यभाग उर्ध्वभागमे प्राप्त होजायँ तो अधोगति मध्यगति ऊर्ध्वगति देनेवाली वह भूमि होती है ॥७०॥

जुती हुई जिस भुमिमें बीज जमें हो अथवा जिसमें गौ और ब्राम्हण वसे ऎसी भूमिमें वर्षादिनके कहेहुए मुहुर्तमें घरका स्वामी गमन करे ( वसे ) ॥७१॥

इसके अनन्तर शकुनोंके कहते हैं कि, गृहमें प्रवेश होनेके समय पुण्याहवाचन शंख और अध्ययनका शब्द जलका घट ब्राम्हणोंका समुदाय वीणा और ढोलका शब्द पुत्र करके सहित स्त्री गुरु ( माता पिता आदि ) मृदंग आदि बाजोंका शब्द और भेरीका शब्द ये उत्तम शकुन है ॥७२॥

अच्छे शुक्ल वस्त्रोंको धारण किये हुए कन्या अच्छी रसीली और सुगन्धित मिट्टी पुष्प सुवर्ण चांदी मोती मूंगा और अच्छे उत्तम भक्ष्य पदार्थ ये गृहप्रवेशके समय कल्याणके देनेवाले है ॥७३॥ मृग और अंजन ( सुरमा ) बँधा हुआ एकपशु पगडी चन्दन दर्पण बीजना और वर्द्वमान ( कड्ड’ ) ये भी कल्याणके करनेवाले है ॥७४॥

मांस दही दुग्ध नृयान ( पालकी आदि ) छत्र मीन और मनुष्योंका मिथुन ( जोडा ) ये भी गृहप्रवेशके समय अवस्था और आरोग्यकी वृध्दी देनेवाले होते है ॥७५॥

निर्मल कमलका पुष्प गीतोंके शब्द सुफ़ेद वृष मृग ब्राम्हण ये यदि घरमें जानेके समय मनुष्यके सम्मुख हों उस मनुष्यको धन्य है अर्थात ये उत्तमोत्तम फ़लके देनेवाले है । तथा गृहकर्मक करनेमें हाथी घोडा और सौभाग्यवती स्त्री और श्रेष्ठ स्त्री ये धन पुत्र और सुख आरोग्य इनके देनेवाली होती हैं ॥७६॥

वेश्या अंकुश दीपक माला और वर्षा ये गृहारंभके वा गृहप्रवेशके समय होंय तो ये अच्छी तरह अभीष्ट फ़लके देनेवाली होते हैं ॥७७॥

अब खोटे शकुनोंको कहते हैं कि, खोटी वाणी शत्रुकी वाणी मद्द चर्म हाड पूले आदि तृण तुष ( तुस ) सांपकी चर्म अंगार ॥७८॥

कपास लवण कीच नपुंसक तेल औषध विष्ठा काले अन्नें रोगी तैल आदिसे अभ्यक्त ॥७९॥

पतित जटाधारी उन्मत्त शिरमुण्डाये हुए ( नंगे शिर ) इन्धन विराव ( खोटा शब्द ) इनको तथा पक्षी मृग मनुष्य ॥८०॥

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Last Updated : January 20, 2012

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