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तीर्थोदकं च वन्हिश्र्च नान्यतः शुद्धिमर्हतः।

   
Script: Devanagari

तीर्थोदकं च वन्हिश्र्च नान्यतः शुद्धिमर्हतः।

   (उत्तररामचरित्र १.१३.) तीर्थक्षेत्रांतील पाणी व अग्‍नि यांना शुद्ध करण्यास दुसरे कोण आहे? ते स्‍वतःच नेहमी शुद्ध व पुनीत असतात. कधीहि अपवित्र होत नाहीत. -एकच प्याला २.३.

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