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राम भरोसा राखिये , ऊनित न...

भजन - राम भरोसा राखिये , ऊनित न...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


राम भरोसा राखिये, ऊनित नहिं काई ।

पूरनहारा पूरसी, कलाइ मत भाई !

जल दिखै आकाससे कहो कहाँसे आवै ?

बिन जतना ही चहुँ दिसा, दह चाल चलावै ।

चात्रिक भू-जल ना पिवै, बिन अहार न जीवै ।

हर वाहीको पूरवै, अन्तरगत पीवै ।

राजहंस मुकता चुगै, कछु गाँठ न बाँधै,

ताको साहब देत है, अपनों ब्रत साधै ।

गरभ-बासमें जाय करि, जिव उद्यम न करही;

जानराय जानै सबै, उनको वहिं भरही ।

तीन लोक चौदह भुवन, करै सहज प्रकासा ।

जाके सिर समरथ धनी, सोचै क्या दासा?

जबसे यह बाना बना, सब समझ बनाई ।

'दरिया' बिकलप मैटिके, भज राम सहाई ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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