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मुरली कौन बजावै हो , गगन ...

भजन - मुरली कौन बजावै हो , गगन ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मुरली कौन बजावै हो, गगन-मँडलके बीच ॥

त्रिकुटी-संगम होयकर, गंग-जमुनके घाट ।

या मुरलीके सब्दसे, सहज रचा बैराट ॥

गंग-जमुन-बिच मुरली बाजै, उत्तम दिसि धुन होहि ।

वा मुरलीको टेरहि सुन-सुन रहीं गोपिका मोहि ॥

जहँ अधर डाली हंसा बैठा, चूगत मुक्ता हीर ।

आनँद चकवा केल करत है, मानसरोवर-तीर ॥

सब्द धुन मिरदंग बजत है; बारह मास बसंत ।

अनहद ध्यान अखंड आतुर वै, धारत सब ही संत ॥

कान्ह गोपी करत नृत्यहिं, चरन बपु ही बिना ।

नैन बिन 'दरियाव' देखै, आनँदरुप घना ।

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Last Updated : December 25, 2007

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