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चल -चल रे हंसा , राम -सिं...

भजन - चल -चल रे हंसा , राम -सिं...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


चल-चल रे हंसा, राम-सिंध, बागड़में क्या तू रह्यो बन्ध ॥

जहँ निर्जल धरती, बहुत धूर, जहँ साकित बस्ती दूर-दूर ।

ग्रीषम ऋतुमेम तपै भौम, जहँ आतम दुखिया रोम-रोम ॥

भूख प्यास दुख सहै आन, जहँ मुक्ताहल नहि खान-पान ।

जउवा नारू दुखित रोग, जहँ मैं तैं बानी हरष-सोग ॥

माया बागड़ बरनी येह, अब राम-सिन्ध बरनूँ सुन लेह ।

अगम अगोचर कथ्या न जाय, अब अनुभवमाहीं कहूँ सुनाय ॥

अगम पंथ है राम-नाम, गिरह बसौ जाय परम धाम ।

मानसरोवर बिमल नीर, जहँ हंस-समागम तीर-तीर ॥

जहँ मुक्ताहल बहु खान-पान, जहँ अवगत तीरथ नित सनान ।

पाप-पुन्यकी नहीं छोत, जहँ गुरु-सिष-मेला सहज होत ॥

गुन इन्द्री मन रहे थाक, जहँ पहुँच न सकते बेद-बाद ।

अगम देस जहँ अभयराय, जन दरिया, सुरत अकेली जाय ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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