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जो सुमुरूँ तौ पूरन राम , ...

भजन - जो सुमुरूँ तौ पूरन राम , ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जो सुमुरूँ तौ पूरन राम,

अगम अपार, पार नहिं जाको, है सब संतनका बिसराम ।

कोटि बिस्नु जाके अगवानी, संख चक्र सत सारँगपानी ॥

कोटि कारकुन बिधि कर्मधार, परजापति मुनि बहु बिस्तार ।

कोटि काल संकर कोतवाल, भैरव दुर्गा धरम बिचार ॥

अनंत संत ठाढ़े दरबार, आठ सिधि नौ निधि द्वारपाल ।

कोटि बेद जाको जस गावैं, विद्या कोति जाको पार न पावैं ॥

कोटि अकास जाके भवन दुवारे, पवन कोटि जाके चँवर ढुरावै ।

कोटि तेज जाके तपै रसोय, बरुन कोटि जाके नीर समोय ॥

पृथी कोटि फुलबारि गंध, सुरत कोटि जाके लाया ब्म्ध ।

चंद सूर जाके कोटि चिराग, लक्षमी कोटि जाके राँधै पाग ॥

अनंत संत और खिलवत खाना, लख-चौरासी पलै दिवाना ।

कोटि पाप काँपैं बल छीन, कोटि धरम आगे आधीन ॥

सागर कोटि जाके कलसधार, छपन कोटि जाके पनिहार ।

कोटि सन्तोष जाके भरा भंडार, कोटि कुबेर जाके मायाधार ॥

कोटि स्वर्ग जाके सुखरूप, कोटि नर्क जाके अंधकूप ।

कोटि करम जाके उत्पतिकार, किला कोटि बरतावनहार ॥

आदि अंत मद्ध नहिं जाको, कोई पार न पावै ताको ।

जन दरियाका साहब सोई, तापर और न दुजा कोई ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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