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आदि अनादी मेरा साईं ॥ द...

भजन - आदि अनादी मेरा साईं ॥ द...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


आदि अनादी मेरा साईं ॥

दृष्ट न मुष्ट है, अगम, अगोचर, यह सब माया उनहीं माईं ।

जो बनमाली सीचै मूल, सहजै पिवै डाल फल फूल ॥

जो नरपतिको गिरह बुलावै, सेना सकल सहज ही आवै ।

जो कोई कर भानु प्रकासै, तौ निसि तारा सहजहि नासै ॥

गरुड़-पंख जो घरमें लावै, सर्प जाति रहने नहिं पावै ।

'दरिया' सुमरौ एकहि राम, एक राम सारै सब काम ॥

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Last Updated : December 25, 2007

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