तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २१

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


परमार्थप्राप्तिके चार उपाय

कै जूझीबो कै बूझिबो दान कि काय कलेस ।
चारि चारु परलोक पथ जथा जोग उपदेस ॥

विवेककी आवश्यकता

पात पात को सींचिबो न करु सरग तरु हेत ।
कुटिल कटुक फर फरैगो तुलसी करत अचेत ॥

विश्वासकी महिमा

गठिबँध ते परतीति बड़ि जेहिं सबको सब काज ।
कहब थोर समुझब बहुत गाड़े बढ़त अनाज ॥
अपनो ऐपन निज हथा तिय पूजहिं निज भीति ।
फरइ सकल मन कामना तुलसी प्रीति प्रतीति ॥
बरषत करषत आपु जल हरषत अरघनि भानु ।
तुलसी चाहत साधु सुर सब सनेह सनमानु ॥

बारह नक्षत्र व्यापारके लिये अच्छे हैं

श्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हर रेवती सखाउ ।
देहि लेहि धन धरनि धरु गएहुँ न जाइहि काउ ॥

चौदह नक्षत्रोंमें हाथसे गया हुआ धन वापस नहीं मिलता

ऊगुन पूगुन बि अज कृ म आ भ अ मू गुनु साथ ।
हरो धरो गाड़ो दियो धन फिरि चढ़इ न हाथ ॥

कौन-सी तिथियाँ कब हानिकारक होती हैं ?

रबि हर दिसि गुन रस नयन मुनि प्रथमादिक बार ।
तिथि सब काज नसावनी होइ कुजोग बिचार ॥

कौन-सा चन्द्रमा घातक समझना चाहिये ?

ससि सर नव दुइ छ दस गुन मुनि फल बसु हर भानु ।
मेषादिक क्रम तें गनहिं घात चंद्र जियँ जानु ॥

किन-किन वस्तुओंका दर्शन शुभ है ?

नकुल सुदरसनु दरसनी छेमकरी चक चाष ।
दस दिसि देखत सगुन सुभ पूजहिं मन अभिलाष ॥

सात वस्तुएँ सदा मङ्गलकारी हैं

सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात ।
तुलसी सीतापति भगति सगुन सुमंगल सात ॥


श्रीरघुनाथजीका स्मरण सारे मङ्गलोंकी जड़ है

भरत सत्रुसूदन लखन सहित सुमिरि रघुनाथ ।
करहु काज सुभ साज सब मिलिहि सुमंगल साथ ॥

यात्राके समयका शुभ स्मरण

राम लखन कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान ।
लच्छि लाभ लै जगत जसु मंगल सगुन प्रमान ॥

वेदकी अपार महिमा

अतुलित महिमा बेद की तुलसी किएँ बिचार ।
जो निंदत निंदित भयो बिदित बुद्ध अवतार ॥
बुध किसान सर बेद निज मतें खेत सब सींच ।
तुलसी कृषि लखि जानिबो उत्तम मध्यम नीच ॥

धर्मका परित्याग किसी भी हालतमें नही करना चाहिये

सहि कुबोल साँसति सकल अँगइ अनट अपमान ।
तुलसी धरम न परिहरिअ कहि करि गए सुजान ॥

दूसरेका हित ही करना चाहिये, अहित नहीं

अनहित भय परहित किएँ पर अनहित हित हानि ।
तुलसी चारु बिचारु भल करिअ काज सुनि जानि ॥

प्रत्येक कार्यकी सिद्धिमें तीन सहायक होते हैं

पुरुषारथ पूरब करम परमेस्वर परधान ।
तुलसी पैरत सरित ज्यों सबहिं काज अनुमान ॥

नीतिका अवलम्बन और श्रीरामजीके चरणोंमें प्रेम ही श्रेष्ठ है

चलब नीति मग राम पग नेह निबाहब नीक ।
तुलसी पहिरिअ सो बसन जो न पखारें फीक ॥
दोहा चारु बिचारु चलु परिहरि बाद बिबाद ।
सुकृत सीवँ स्वारथ अवधि परमारथ मरजाद ॥

विवेकपूर्वक व्यवहार ही उत्तम है

तुलसी सो समरथ सुमति सुकृती साधु सयान ।
जो बिचारि ब्यवहरइ जग खरच लाभ अनुमान ॥
जाय जोग जग छेम बिनु तुलसी के हित राखि ।
बिनुऽपराध भृगुपति नहुष बेनु बृकासुर साखि ॥

नेमसे प्रेम बड़ा है

बड़ि प्रतीति गठिबंध तें बड़ो जोग तें छेम ।
बड़ो सुसेवक साइँ तें बड़ो नेम तें प्रेम ॥

किस-किसका परित्याग कर देना चाहिये

सिष्य सखा सेवक सचिव सुतिय सिखावन साँच ।
सुनि समुझि पुनि परिहरिअ पर मन रंजन पाँच ॥

सात वस्तुओंको रस बिगड़नेके पहले ही छोड़ देना चाहिये

नगर नारि भोजन सचिव सेवक सखा अगार ।
सरस परिहरें रंग रस निरस बिषाद बिकार ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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