तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ६

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


सोरठा

अस बिचारि मतिधीर तजि कुतर्क संसय सकल ।
भजहु राम रघुबीर करुनाकर सुंदर सुखद ॥
भाव बस्य भगवान सुख निधान करुना भवन ।
तजि ममता मद मान भजिअ सदा सीता रवन ॥
कहहिं बिमलमति संत बेद पुरान बिचारि अस ।
द्रवहिं जानकी कंत तब छूटै संसार दुख ॥
बिनु गुरु होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु ।
गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु ॥

दोहा

रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान ।
ग्यानवंत अपि सो नर पसु बिनु पूँछ बिषान ॥
जरउ सो संपति सदन सुखु सुहृद मातु पितु भाइ ।
सनमुख होत जो रामपद करइ न सहस सहाइ ॥
सेइ साधु गुरु समुझि सिखि राम भगति थिरताइ ।
लरिकाई को पैरिबो तुलसी बिसरि न जाइ ॥

रामसेवककी महिमा

सबइ कहावत राम के सबहि राम की आस ।
राम कहहिं जेहि आपनो तेहि भजु तुलसीदास ॥
जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान ।
रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान ॥
जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान ।
पुरुषा ते सेवक भए हर ते भे हनुमान ॥
तुलसी रघुबर सेवकहि खल डाटत मन माखि ।
बाजराज के बालकहि लवा दिखावत आँखि ॥
रावन रिपुके दास तें कायर करहिं कुचालि ।
खर दूषन मारीच ज्यों नीच जाहिंगे कालि ॥
पुन्य पाप जस अजस के भावी भाजन भूरि ।
संकट तुलसीदास को राम करहिंगे दूरि ॥
खेलत बालक ब्याल सँग मेलत पावक हाथ ।
तुलसी सिसु पितु मातु ज्यों राखत सिय रघुनाथ ॥
तुलसी दिन भल साहु कहँ भली चोर कहँ राति ।
निसि बासर ता कहँ भलो मानै राम इताति ॥

राम महिमा

तुलसी जाने सुनि समुझि कृपासिंधु रघुराज ।
महँगे मनि कंचन किए सौंधे जग जल नाज ॥

रामभजनकी महिमा

सेवा सील सनेह बस करि परिहरि प्रिय लोग ।
तुलसी ते सब राम सों सुखद सँजोग बियोग ॥
चारि चहत मानस अगम चनक चारि को लाहु ।
चारि परिहरें चारि को दानि चारि चख चाहु ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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