तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १४

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


एकाङ्गी अनुरागके अन्य उदाहरण

बिबि रसना तनु स्याम है बंक चलनि बिष खानि ।
तुलसी जस श्रवननि सुन्यो सीस समरप्यो आनि ॥

मृगका उदाहरण

आपु ब्याध को रूप धरि कुहौ कुरंगहि राग ।
तुलसी जो मृग मन मुरै परै प्रेम पट दाग ॥

सर्पका उदाहरण

तुलसी मनि निज दुति फनिहि ब्याधिहि देउ दिखाइ ।
बिछुरत होइ नब आँधरो ताते प्रेम न जाइ ॥

कमलका उदाहरण

जरत तुहिन लखि बनज बन रबि दै पीठि पराउ ।
उदय बिकस अथवत सकुच मिटै न सहज सुभाउ ॥

मछलीका उदाहरण

देउ आपनें हाथ जल मीनहि माहुर घोरि ।
तुलसी जिऐ जो बारि बिनु तौ तु देहि कबि खोरि ॥
मकर उरग दादुर कमठ जल जीवन जल गेह ।
तुलसी एकै मीन को है साँचिलो सनेह ॥

मयूरशिखा बूटीका उदाहरण

तुलसी मिटे न मरि मिटेहुँ साँचो सहज सनेह ।
मोरसिखा बिनु मूरिहूँ पलुहत गरजत मेह ॥
सुलभ प्रीति प्रीतम सबै कहत करत सब कोइ ।
तुलसी मीन पुनीत ते त्रिभुवन बड़ो न कोइ ॥

अनन्यताकी महिमा

तुलसी जप तप नेम ब्रत सब सबहीं तें होइ ।
लहै बड़ाई देवता इष्टदेव जब होइ ॥

गाढ़े दिनका मित्र ही मित्र है

कुदिन हितू सो हित सुदिन हित अनहित किन होइ ।
ससि छबि हर रबि सदन तउ मित्र कहत सब कोइ ॥

बराबरीका स्नेह दुःखदायक होता है

कै लघुकै बड़ मीत भल सम सनेह दुख सोइ ।
तुलसी ज्यों घृत मधु सरिस मिलें महाबिष होइ ॥

मित्रतामें छल बाधक है

मान्य मीत सों सुख चहैं सो न छुऐ छल छाहँ ।
ससि त्रिसंकु कैकेइ गति लखि तुलसी मन माहँ ॥
कहिअ कठिन कृत कोमलहुँ हित हठि होइ सहाइ ।
पलक पानि पर ओड़िअत समुझि कुघाइ सुघाइ ॥

वैर और प्रेम अंधे होते है

तुलसी बैर सनेह दोउ रहित बिलोचन चारि ।
सुरा सेवरा आदरहिं निंदहिं सुरसरि बारि ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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