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अध्याय ३ - समाप्ती

मानसागरी - अध्याय ३ - समाप्ती

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

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जिसके सतोगुणी ग्रह बली हों वह दयावान् स्थिरता - सत्यता - श्रेष्ठताकरके युक्त और देवता ब्राह्मणका भक्त होता है और जो रजोगुणी बली हों तो वह काव्य करनेवाला, कुलस्त्री, बहुत धनकरके युक्त और बडा शूर वीर होता है । तमोगुणी अधिक हो तो वह दूसरोंको छलनेवाला, मूर्ख, आलसी, क्रोधी और बहुत निद्रावाला होता है और गुणोंकरके मिश्र फल कहना चाहिये ॥१॥२॥ इति त्रिंशांशफलम् ॥

इति श्रीमानसागरीजन्मपत्रीपद्धतौ राजपंडितवंशीधरकृतभाषाटीकायां तृतीयोऽध्यायः ॥३॥

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Last Updated : January 22, 2014

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