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अध्याय ३ - द्वादशभवनस्थचतुर्थभवनेशफल

मानसागरी - अध्याय ३ - द्वादशभवनस्थचतुर्थभवनेशफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.

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जिसके जन्मकालमें चतुर्थ भावका स्वाम्की लग्नमें स्थित होय तो पिता पुत्र दोनों परस्पर प्रीतिवाले होते हैं । पितृपक्षमें वैर करता है और पिताके नामसे प्रसिद्ध होता है । जिसके चतुर्थ भावका स्वामी दूसरे भावमें स्थित होवें और क्रूरग्रह होवै तो पितासे विरोध करता है और शुभग्रह होवे तो पिताके पालनेवाला और प्रसिद्ध होता है और जिसके धनको पिता भोगता है । जिसके साथ लडाई करनेवाला और पिताके बंधुओंका घातक होता है । जिसके चतुर्थका स्वामी चतुर्थ भावमें स्थित होय वह राजासे मान पानेवाला, प्रसिद्ध, पिताके लाभको प्राप्त, श्रेष्ठ धर्मवाला, सुखी और धनका पति होता है ॥१-४॥

जिसके चतुर्थस्थानका स्वामी पांचवेंमें होय वह पिताके श्रेष्ठ लाभवाला, बडी आयुवाला, प्रसिद्ध, श्रेष्ठ पुत्रवाला और पुत्रको पालनेवाला होता है । जिसके चतुर्थ भावका स्वामी छठे भावमें स्थित होय वह माताके अर्थका नाश करनेवाला, पिताके दोष करनेमें रत, यदि क्रूरग्रह होय तो होता है. शुभग्रह होनेसे धनसंचय करनेवाला होता है । जिसके चतुर्थ भावका स्वामी सातवें भावमें पडे उसकी स्त्री तिसके पिताको क्लेश देती है यदि क्रूरग्रह होय, और शुभग्रह होनेसे सेवा करती है और शुक्र, मंगल होय तो कुलवती ( व्यभिचारिणी ) होती है । जिसके अष्टम स्थानमें चतुर्थ भावका स्वामी क्रूर ग्रह होय वह रोग करके युक्त व दरिद्री होता है, खोटे कर्म करनेवाला और शीघ्र मृत्युको प्राप्त होता है ॥५-८॥

जिसके चतुर्थ भावका स्वामी नवम घरमें स्थित होय वह पितासे भिन्न तथा संपूर्ण विद्यावाला, पितृधर्मका संग्रह करनेवाला और पिताकी अपेक्षासे रहित होता है । जिसके दशम स्थानमें चतुर्थ भावका स्वामी होय तब तिस पुत्रकी माताको पितात्याग करता है और दूसरी स्त्रीको विवाहता है और शुभग्रह होनेसे त्याग नहीं करता है और दूसरी स्त्रीको सेवता है । जिसके ग्यारहवें भावमें चतुर्थ भावका स्वामी स्थित होय वह धर्मवान्, पिताका पालन करनेवाला, श्रेष्ठ कर्मोंवाला, पितरोंका भक्त, बडी आयुवाला और व्याधिसे रहित होता है । जिसके चतुर्थ भावका स्वामी बारहवें घरमे होय उसका पिता मृत होवे अथवा विदेशमें रहे, पापग्रह होनेसे जारजात होता है ॥९-१२॥

इति चतुर्थभवनेशफलम् ।

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Last Updated : April 06, 2009

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